वरुथिनी एकादशी- Varuthini Ekadashi

वरुथिनी एकादशी व्रत : 24 अप्रैल 2025
व्रत का पारण ( समाप्ति ) : 25 अप्रैल 2025 समय ( सूर्योदय से 10 बजे के बीच )

वरुथिनी एकादशी का महत्व


वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरूथिनी एकदशी के नाम से जानते हैं। यह पुण्यदायिनी, सौभाग्य प्रदायिनी एकादशी है। यह व्रत सुख-सौभाग्य का प्रतीक है। यह व्रत करने से सभी प्रकार के पाप व ताप दूर होते हैं, अनन्त शक्ति मिलती है और स्वर्गादि उत्तम लोक प्राप्त होते हैं। सुपात्र ब्राह्मण को दान देने, करोड़ों वर्ष तक ध्यान मग्न तपस्या करने तथा कन्यादान के फल से बढ़कर ‘बरूथिनी एकादशी’ का व्रत है। हिन्दू वर्ष की तीसरी एकादशी यानी वैशाख कृष्ण एकादशी को ‘बरूथिनी एकादशी’ के नाम से जाना जाता है। ‘बरूथिनी’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘बरुथिन्’ से बना है, जिसका मतलब है–प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। वैशाख कृष्ण एकादशी का व्रत भक्तों की हर संकट से रक्षा करता है, इसलिए इसे बरूथिनी एकदशी कहा जाता हैं। पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण इस व्रत से मिलने वाले पुण्य के बारे में युधिष्ठिर को बताते हैं–‘पृथ्वी के सभी मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त भी इस व्रत के पुण्य का हिसाब-किताब रख पाने में सक्षम नहीं हैं।’

ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का फल सभी एकादशियों से बढ़कर है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि अन्न दान और कन्या दान का महत्त्व हर दान से ज़्यादा है और बरूथिनी एकादशी का व्रत रखने वाले को इन दोनों के योग के बराबर फल प्राप्त होता है। इस दिन जो पूर्ण उपवास रखते हैं, 10 हज़ार वर्षों की तपस्या के बराबर फल प्राप्त होता है। उसके सारे पाप धुल जाते हैं। जीवन सुख-सौभाग्य से भर जाता है। मनुष्य को भौतिक सुख तो प्राप्त होते ही हैं, मृत्यु के बाद उसे मोक्ष भी प्राप्त हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने वाले सभी लोकों में श्रेष्ठ बैकुण्ठ लोक में जाते हैं। पुष्टिमार्गी वैष्णवों के लिए इस एकादशी का बहुत महत्त्व है। यह महाप्रभु वल्लभाचार्य की जयन्ती है।

वरुथिनी एकादशी व्रत कथा


प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था। वह अत्यन्त दानशील तथा तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया। राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भक्तवत्सल भगवान श्री विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ। उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले–‘हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और बरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।’ भगवान की आज्ञा मान राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक इस व्रत को किया। इसके प्रभाव से वह शीघ्र ही पुन: सुन्दर और सम्पूर्ण अंगों वाला हो गया।

व्रत के दिन क्या करें क्या न करे ?


  • एकादशी व्रत को दशमी के दिन सूर्यास्त से ही व्रत शुरु करना चाहिए.
  • एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान से निपट कर श्रीहरि की पीजा करें.
  • दशमी तिथि के दिन बिना नमक का भोजन ग्रहण करना होगा.
  • भोग में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें।
  • भगवान विष्णु को प्रिय भोग लगाने चाहिए।
  • विशेष चीजों का दान करना शुभ माना जाता है
  • व्रत के दिन कम से कम बातचीत करें और मन में विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें.
  • व्रत के दौरान ताजे फल, मेवा, चीनी, कुट्टू का आटा, नारियल, जैतून, दूध, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक, आलू, साबूदाना, शकरकंद आदि ग्रहण कर सकते हैं.
  • एकादशी के दिन किसी का अपमान नहीं करना चाहिए.
  • व्रत करने वाले को मांस, मछली, प्याज, दाल, और शहद जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
  • एकादशी के दिन चावल का सेवन भी वर्जित माना गया है.
  • व्रत के दिन भोग विलास से दूर रहना चाहिए और पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
  • एकादशी के दिन गेहूं, मसाले और सब्जी आदि का सेवन निषेध माना गया है.
  • व्रत के दिन वृक्ष से पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए. बाल नहीं कटवाने चाहिए.
  • एकादशी के दिन मन में किसी प्रकार के गलत विचारों से दूर रहना चाहिए.

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