श्री बांके बिहारी जी अष्टक

श्री कुंज बिहारी भगवान कृष्ण के कई नामों में से एक है, जहाँ बिहारी शब्द कृष्ण के लिए है और कुंज वृंदावन का प्रतिनिधित्व करते हैं । Shri Baanke Bihari Ji Ashtak – श्री बांके बिहारी जी अष्टक बांके बिहारी मंदिर में प्रतिदिन गाया जाता है. इसमें आठ श्लोक है. जिसमें भक्त अलग अलग भावो से कहता है की वो श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में है।


॥1॥
य: स्तूयते श्रुतिगणैर्निपुणैरजस्रं, सम्पूज्यते क्रतुगतै: प्रणतै: क्रियाभि:।
तं सर्वकर्मफ़लदं निजसेवकानां, श्रीमद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥1॥

अर्थ:- जो वेद मन्त्रों के द्वारा नित्य स्तुत्य हैं, यज्ञों में समर्पित क्रियाओं के द्वारा जो नित्य सम्पूजित हैं, अपने भक्तों को सम्पूर्ण कर्मों का फल प्रदान करने वाले , उन श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥2॥
यं मानसे सुमतयो यतयो निधाय, सद्यो जहु: सहृदया हृदयान्धकारम्।
तं चन्द्रमण्डल-नखावलि-दीप्यमानं, श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥2॥

अर्थ:-जिन भगवान के चरणों को सात्विक मति वाले भक्त जन अपने मानस पटल पर स्थापित करके हृदय के अन्धकार को शीघ्र ही त्याग देते हैं।जिनका नख समुदाय चन्द्रमण्डल की भांति देदीप्यमान है,उन श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥3॥
येन क्षणेन समकारि विपद्वियोगो, ध्यानास्पदं सुगमितेन नुतेन विज्ञै:।
तं तापवारण-निवारण-सांकुशांकं ,श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥3॥

अर्थ:-जिनके एक क्षण के चिन्तन मात्र से अनेकों विपत्तियों का समूह नष्ट हो गया है, ज्ञानी जनों के द्वारा भलीभांति ज्ञान एवं प्रार्थना से जो परं ध्यानास्पद हैं, त्रिताप रूपी हांथी को रोकने के लिये अंकुश का चिन्ह जिनमें विराजमान है ऐसे श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥4॥
यस्मै विधाय विधिना विधिनारदाद्या:, पूजां विवेकवरदां वरदास्यभावा:।
तं दाक्षलक्षण-विलक्षण-लक्षणाढ्यं, श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥4॥

अर्थ:-जिन भगवान को पाने के लिये विधि पूर्वक ब्रह्मा नारद आदि ज्ञान एवं वरदान प्रदायक पूजा समर्पित करके उत्कृष्ट दास्य भाव की कामना करते हैं, उन परम चातुरी परिपूर्ण विशिष्ट अलौकिक लक्षण संपन्न श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥5॥
यस्मात् सुखैकसदनान्मदनारिमुख्या:, सिद्धि समीयुरतुलां सकलांगशोभाम्।
तं शुद्धबुद्धि-शुभवृद्धि-समृद्धि-हेतुं, श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥5॥

अर्थ:-एक मात्र सुखों के निवास स्वरूप जिन भगवान के श्री चरणों का आश्रय लेकर शंकर आदि देवताओं ने अतुलनीय सिद्धि एवं सम्पूर्ण शोभा को प्राप्त किया, उन सद्बुद्धि तथा शुभ समृद्धियों के दाता श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥6॥
यस्य प्रपन्नवरदस्य प्रसादत: स्यात्, तापत्रयापहरणं शरणं गतानाम्।
तं नीलनीरजनिभं जनिभंजनाय, श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥॥6॥

अर्थ:-भक्तों को श्रेष्ठ वरदान देने वाले जिन भगवान् की कृपा से शरणागतों के त्रिताप का विनाश हो जाता है उन सुनील कमल कान्ति संपन्न, भक्तों के जन्म मरण के भय को दूर करने वाले श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥7॥
यस्मिन् मनो विनिहितं भवति प्रसन्नं, खिन्नं कदिन्द्रियगणैरपि यद्विष्ण्णम्।
तं वास्तव-स्तव-निरस्त-समस्त दुखं, श्री मद्‍ विहारिचरणं शरणं प्रपद्ये॥7॥

अर्थ:-जिन भगवान् में मन लगाने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है, जो दूषित इन्द्रियों के द्वारा उत्पन्न विषयों के संग्रह से अत्यधिक उद्विग्न एवं खिन्न हैं, ऐसे जीवों के समस्त दुःखों को नष्ट करने वाले श्री बिहारी जी के चरणारविन्द की शरण में हूँ।

॥8॥
हे कृष्णपाद! शमिताति-विषादभक्त-वांछा-प्रदामर-महीरूह-पंचशाख।
संसार-सागर-समुत्तरणे वहित्र, हे चिह्न-चित्रितचरित्र नमो नमस्ते॥8॥

अर्थ:-भक्तों के अतिशय दुख को शान्त करने वाले हे श्यामल पद ! , भक्तों की मनोवाञ्छा पूर्ण करने वाले हे भूतल कल्प वृक्ष ! संसार सागर उद्धार करने वाले हे सुदृढ़ सुपोत ! विशिष्ट चिन्हों से चित्रित सर्वोत्कृष्ट चरित्र संपन्न हे भगवन् आपके लिए बारम्बार नमस्कार है।

इदं विष्णो: पादाष्टकमतिविशादाभिशमनम्, प्रणीतं यत्प्रेरणा सुकवि-जगदीशेन विदुषा।
पठेदयो वा भक्तयाऽच्युति-चरण-चेता: स मनुजो, भवे भुक्त्वा भोगानभिसरति चान्ते हरिपदम्॥९॥

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