गोपी गीत – जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः
‘श्रीमद् भगवत महापुराण जो कि योगेश्वर श्रीकृष्ण का साक्षात् वाङ्मय स्वरुप है, के दशम स्कन्ध को भगवत का हृदय माना […]
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‘श्रीमद् भगवत महापुराण जो कि योगेश्वर श्रीकृष्ण का साक्षात् वाङ्मय स्वरुप है, के दशम स्कन्ध को भगवत का हृदय माना […]
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(श्लोक – 1)व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं, स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं, अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥1॥ भावार्थ–व्रजभूमि के एकमात्र आभूषण, समस्त पापों को नष्ट करने
श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष अर्थ सहित Read Post »
(श्लोक – 1)मुनीन्दवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणी, प्रसन्नवक्त्रपंकजे निकंजभूविलासिनी।व्रजेन्दभानुनन्दिनी व्रजेन्द सूनुसंगते, कदा करिष्यसीह मां कृपा-कटाक्ष-भाजनम्॥ (१) भावार्थ : समस्त मुनिगण आपके चरणों की
श्री राधा कृपा कटाक्ष अर्थ सहित Read Post »
श्री वृन्दावन सतलीला में कुल 116 श्लोक है और यह वाणी रसिक संत श्रीहित ध्रुवदास जी महाराज द्वारा कृत है
श्री वृन्दावन सतलीला अर्थ सहित Read Post »
।।1।।जोई-जोई प्यारौ करै सोई मोहि भावै,भावै मोहि जोई सोई-सोई करै प्यारे ।मोकों तो भावती ठौर प्यारे के नैंनन में,प्यारौ भयौ
श्री हित चौरासी जी Read Post »