5. !! आनन्द के अवतार की वेला !!

कौन जानता था कि नन्द जी युवा से प्रौढ़ और प्रौढ़ावस्था से वृद्धत्व की और बढ़ चले थे…….पर सन्तान सुख इनके जीवन में अभी तक नही आया……..भगवान श्री नारायण से प्रार्थना करकरके बृजवासी भी अब थक चुके थे …….किन्तु इन नन्द दम्पति को कोई चिन्ता नही थी कि हमारे सन्तान नही हैं ।

हे तात विदुर जी ! निष्काम थे ये दोनों……नन्द जी और उनकी भार्या यशोदा जी…….दान पुण्य, अतिथि सेवा , गौ पालन, समस्त बृज को सुख देंने का प्रयास करते ही रहना…..पर अपनें लिये कुछ नही चाहिये।

“आपको भगवान सन्तान दे”

कोई वृद्ध बृजवासी हृदय से कह देता ।

तो नन्द जी हँसते ……और कहते …….भगवान जो करते हैं मंगल के लिये ही करते हैं……..मुझे सन्तान नही दीं ये भी उनका कोई मंगल विधान ही होगा ।…….फिर हँसते हुए बृजेश्वरी कहतीं – भगवन् ! क्या बृज के गोप बालक हमारे बालक नही हैं ? मैं तो सबको अपना ही बालक मानती हूँ ।

ये मात्र कहना नही था यशोदा जी का ……….उनके हृदय से वात्सल्य निरन्तर झरता रहता था समस्त बालकों के लिये ।

पर बृजवासी दुःखी थे …….कि उनके मुखिया के कोई सन्तान नही है ।

मैं आपका कुलपुरोहित शाण्डिल्य हूँ ……….किन्तु ! मेरा श्रेष्ठ ज्योतिर्विद होना भी आपके किसी काम नही आरहा इस बात का हे ब्रजेश ! मुझे दुःख है ………….

आज महर्षि शाण्डिल्य पधारे थे नन्दालय में ।

महर्षि के चरणों में अपना शीश रख दिया था नन्द जी नें ……….और यही कहा ……..आप मेरे पुरोहित नही हैं …..आप मेरे पिता हैं ……..आप मेरे सर्वस्व हैं महर्षि ! क्षमा करें ! मेरे नारायण भगवान नें मुझे जो दिया है मैं उस पर सन्तुष्ट हूँ…….पूर्ण सन्तुष्ट हूँ ।

क्या श्रेष्ठ, निष्काम हो जाना नही है ? महर्षि के मुखारविन्द की ओर देखकर ये प्रश्न किया था नन्द जी नें ।

आहा ! आनन्द से भर गए थे महर्षि शाण्डिल्य । कितनी ऊँची स्थिति को पा चुके हैं ये ब्रजपति ……….

आप मेरे कहनें से एक अनुष्ठान क्यों नही करते !

कैसा अनुष्ठान गुरुदेव ! नन्द जी नें पूछा ।

सन्तान गोपाल मन्त्र का अनुष्ठान …………

हँसे नन्दराय…….”आप की जो आज्ञा हो ……दास को स्वीकार है” ।

विनम्रता की साक्षात् प्रतिमूर्ति हैं नन्द राय तो ।

तो मैं समस्त बृज के ब्राह्मणों को निमन्त्रण भेजूँ ?

जी ! मुस्कुराते हुये ब्रजपति नें महर्षि से कहा ।

गणना की महर्षी नें ……………..फिर आँखें बन्द करके कुछ बुदबुदानें लगे थे ………..कुछ देर में नेत्रों को खोल लिया था ……..”पता नही मेरी ग्रह गणना किसी काम में नही आरही…….न मेरी भविष्य दृष्टि ही कुछ देख पा रही है …….ये क्या हो रहा है ……..कुछ समझ नही आरहा ।

हे तात विदुर जी ! ग्रह गणना क्या बता पायेंगें इस अद्भुत जन्म के बारे में ………..न भविष्य दृष्टि ही ……….क्यों की ये तो “अजन्मा के जन्म” की अद्भुत घटना है ………..इसको कोई नही समझ पायेगा ।

उद्धव नें विदुर जी को ये बात बताई ।

ब्राह्मणों का अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिया गया था …………….

बड़े बड़े ब्राह्मण आये थे …………..यमुना जी के पावन तट पर ये अनुष्ठान प्रारम्भ करवा दिया था महर्षि नें …………

मध्य में सजे धजे, स्वर्णाभूषण धारण कर यजमान की गद्दी में नन्द जी विराजमान होते …….और दाहिनें भाग में उनकी अर्धांगिनी यशोदा जी बैठतीं ।

बस…..नन्द यशोदा बैठते थे ……..ब्राह्मणों के प्रति उनकी पूरी श्रद्धा थी ……..पर संकल्प के समय वे “पुत्र प्रापत्यर्थम्” कभी नही बोलते ………वे अपनें समस्त अनुष्ठानादि कर्मों को भगवान नारायण के चरणों में समर्पित कर देते ।

किन्तु बृज के गोपों की यही कामना थी कि हमारे मुखिया के बालक होना चाहिये ……..ये अनुष्ठान छ मास का था ।

अनुष्ठान से दम्पति अत्यन्त प्रसन्न………यज्ञ हो रहा है……..दान पुण्य किया जा रहा है ….. बड़े बड़े ब्रह्मर्षि पधारे हैं हमारे यज्ञ में ….नन्द दम्पति के आल्हाद का कोई ठिकाना नही ।

पर महर्षि का कहना ये था कि यजमान जब तक अपनी कामना का मन में संकल्प न करे तब तक कामना पूरी कैसे होगी ?

नन्द राय का कहना था…….जीवन में क्या कमी है ये बात क्या मेरे भगवान नारायण नही जानते ? वे तो अन्तर्यामी हैं भगवन् !

अब इसका उत्तर क्या देते महर्षि शाण्डिल्य ….और शाण्डिल्य स्वयं भी तो निष्काम भक्ति के आचार्य हैं…………उन्होंने दुनिया को यही तो सिखाया है अपनें “शाण्डिल्य भक्ति सूत्र” में ।

अब जो करेंगें भगवान नारायण ही करेंगें …………..

तात विदुर जी ! छ मास के लिये समस्त बृज के गोपों नें भी अनुष्ठान शुरू कर दिया था ………..वे जप करते …….और उसका फल अपनें मुखिया नन्द जी को अर्पण कर देते …….पर साथ में ये भी कहते कि हमारे मुखिया जी को लाला हो ……….दान करते …..तो “मुखिया के लाला हो”………अतिथि सत्कार भी करते तो कहते ……..अतिथि से कहते ……..हमारे बृज के राजा नन्द जी के लाला हो …हे अतिथि देवता ! ये आशीर्वाद दो ……….यमुना स्नान भी करते तो यही मांगते ।

गोपियाँ व्रत करनें लगी थीं ……”हमारी बृजेश्वरी के लाला हो”………

प्रार्थना हर गोकुल के घर से यही निकल रहा था ……….हमारे नन्द राय को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो ।

सज धज करके प्रातः ही बैठ जाते नन्द जी यशोदा जी के साथ ……नित्य गौ दान करते ……….सुवर्ण दान करते ……भूमि दान करते ….विप्रों को भोजन कराते ………….और उनके चरणों की धूल माथे से लगाते ……पर नही माँगा नन्द राय नें कि हमारे पुत्र हो ।

पर आस्तित्व में कुछ घटनाएँ घटनें लगी थीं………जो अद्भुत थीं ।

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