अजा एकादशी – Ajaa Ekadashi 2024
भाद्रपद की एकादशी को अजा या फिर जया,आनंदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।आज श्री हरि विष्णु की उपेन्द्र रूप की पुजा की जाती है। जिससे माता लक्ष्मी और नारायण की कृपा प्राप्त होती रहती है।अजा एकादशी व्रत का महत्त्व सबसे पहले श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था।इस संबंध मे श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है,जो जीव इस व्रत को धारण करता है,व्रत रखकर माता लक्ष्मी सहित श्री हरि विष्णु की उपासना पुजन करता है। उसके जीवन के समस्त पाप कट जाते है,साथ ही उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं।
अजा एकादशी व्रत : 29 अगस्त 2024
व्रत का पारण ( समाप्ति ) : 30 अगस्त 2024 समय ( 05:51 से 08:05 तक )
अजा एकादशी का महत्व
प्रत्येक एकादशी का व्रत करने से पूर्व जैसे संकल्प करने का विधान है वैसे ही इस एकादशी को भी पहले हाथ में जल लेकर सच्चे मन एवं भावना से संकल्प करना चाहिए तथा सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान विष्णु जी का धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प एवं फलों सहित पूजन करना चाहिए। एक समय फलाहार करना चाहिए। तुलसी का रोपण, सिंचन और पूजन करने से प्रभु अति प्रसन्न हो जाते हैं और हरिनाम संकीर्तन करने से अपार कृपा का फल मिलता है। भगवान सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक हैं तथा बिना मांगे ही अपने भक्त की सारी स्थिति को जानकर उसके सभी कष्टों और चिंताओं को मिटा देते हैं। जो भक्त केवल भगवान की भक्ति ही सच्चे भाव से करते हैं उन पर भगवान वैसे ही कृपा करते हैं जैसे अपने मित्र सुदामा पर उन्होंने बिना कुछ कहे ही सब कुछ दे डाला, इसलिए भगवान से उनकी सेवा मांगने वाले भक्त सदा सुखी एवं प्रसन्न रहते हैं।
अजा एकादशी व्रत कथा
सतयुग में सूर्यवंशी चक्रवर्ती राजा हरीशचन्द्र हुए जो बड़े सत्यवादी थे। एक बार उन्होंने अपने वचन की खातिर अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया तथा दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रुप में एक चण्डाल को बेच डाला। अनेक कष्ट सहते हुए भी वह सत्य से विचलित नहीं हुए तब एक दिन उन्हें ऋषि गौतम मिले जिन्होंने उन्हें अजा एकादशी की महिमा सुनाते हुए यह व्रत करने के लिए कहा। राजा हरीशचन्द्र ने अपनी सामर्थ्यानुसार इस व्रत को किया जिसके प्रभाव से उन्हें न केवल उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ बल्कि परिवार सहित सभी प्रकार के सुख भोगते हुए अंत में वह प्रभु के परमधाम को प्राप्त हुए। अजा एकादशी व्रत के प्रभाव से ही उनके सभी पाप नष्ट हो गए तथा उन्हें अपना खोया हुआ राज्य एवं परिवार भी प्राप्त हुआ था।
भगवान को एकादशी परम प्रिय है तथा इसका व्रत करने वाले भक्त संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में प्रभु के परम धाम को प्राप्त करते हैं। एकादशी में रात्रि जागरण की अत्यधिक महत्ता है। इस दिन किए गए दान का भी कई गुणा अधिक पुण्यफल प्राप्त होता है। जिस कामना से कोई एकादशी व्रत करता है उसकी सभी कामनाएं बड़ी जल्दी पूरी हो जाती हैं।
एकादशी व्रत में अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। बहुत से भक्त तो यह व्रत केवल जल ग्रहण करके करते हैं तथापि इस व्रत में केवल एक समय फलाहार करने का विधान है। व्रत का पारण अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को विधिवत पूजन करने के पश्चात करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन तथा अपनी सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए। रात्रि में जागरण करने से प्रभु की अपार कृपा सदा भक्तों पर बनी रहती है।
एकादशी व्रत के दिन क्या करें क्या न करे ?
- एकादशी व्रत को दशमी के दिन सूर्यास्त से ही व्रत शुरु करना चाहिए.
- एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान से निपट कर श्रीहरि की पीजा करें.
- दशमी तिथि के दिन बिना नमक का भोजन ग्रहण करना होगा.
- भोग में तुलसी के पत्ते जरूर शामिल करें।
- भगवान विष्णु को प्रिय भोग लगाने चाहिए।
- विशेष चीजों का दान करना शुभ माना जाता है
- व्रत के दिन कम से कम बातचीत करें और मन में विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें.
- व्रत के दौरान ताजे फल, मेवा, चीनी, कुट्टू का आटा, नारियल, जैतून, दूध, अदरक, काली मिर्च, सेंधा नमक, आलू, साबूदाना, शकरकंद आदि ग्रहण कर सकते हैं.
- एकादशी के दिन किसी का अपमान नहीं करना चाहिए.
- व्रत करने वाले को मांस, मछली, प्याज, दाल, और शहद जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए.
- एकादशी के दिन चावल का सेवन भी वर्जित माना गया है.
- व्रत के दिन भोग विलास से दूर रहना चाहिए और पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.
- एकादशी के दिन गेहूं, मसाले और सब्जी आदि का सेवन निषेध माना गया है.
- व्रत के दिन वृक्ष से पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए. बाल नहीं कटवाने चाहिए.
- एकादशी के दिन मन में किसी प्रकार के गलत विचारों से दूर रहना चाहिए.