तात विदुर जी ! ऐसा नही हैं कि द्रोण नामके वसु और उनकी अंर्धांगिनी धरा देवी ही यशोदा और नन्दराय हुए …….ये तो अनादि काल के माता पिता हैं कन्हैया के …….गोलोक से ही उतरे हैं ये ……और वापस गोलोक में ही जायेंगें ……..पर द्रोण वसु और धरा देवी का अंश भी समाहित हो गया था नन्द और यशोदा में ।
कालिन्दी के किनारे विदुर उद्धव सम्वाद चल रहा है ……जिसमें श्री कृष्ण चन्द्र के प्रियतम सखा उद्धव विदुर जी को श्रीकृष्णचरितामृत का गान करके सुना रहे हैं ।
यहाँ समय का कोई बन्धन नही है……ये कथा कब तक चलेगी कोई पता नही है……दोनों ही श्रीकृष्ण के प्रिय हैं…….इनको मात्र श्रीकृष्ण ही प्रिय हैं…….दोनों भाव रस में डूबे देहातीत हो उठे थे ।
मथुरा मण्डल के एक राजा और थे …….राजा देवमीढ़ ।
वृष्णिवंशीय हैं ये …….बड़े प्रतापी राजा हैं ।
इन्होनें दो विवाह किये….एक क्षत्रिय कन्या से और एक गोप कन्या से ।
क्षत्रिय कन्या से इनके पुत्र हुए शूरसेन……जिनके पुत्र थे वसुदेव जी ….और वसुदेव जी के यहाँ ही भगवान वासुदेव का अवतार हुआ था ।
इधर गोप कन्या से जो बालक जन्में उनका नाम हुआ पर्जन्य …….पर्जन्य युवावस्था को प्राप्त हुए तो उन्होंने “वरीयसी” नामक अत्यन्त सुन्दर एक गोप कन्या थी उनके साथ विवाह किया ……..राजा देवमीढ़ नें तभी ……मथुरा , यमुना के उस पार महावन में सम्पूर्ण गौ धन के साथ महावन की अपार भू सम्पदा पर्जन्य को दे दी थी ।
तब से ये लोग मथुरा छोड़कर “महावन” आकर रहनें लगे……यहीं गोकुल है ।
विवाह हो जानें के बाद पर्जन्य जी के ग्यारह सन्तान हुए……..नौ पुत्र थे और दो कन्याएं ……इनके नौ पुत्रों में सबसे छोटे थे “नन्द जी” ।
नन्दा और सुनन्दा, ये दो पुत्री भी जन्मीं थीं इनकी ।
हे तात ! आस्तित्व की लीला को कौन समझ पाता है………जब सबसे छोटे पर्जन्य नन्दन “नन्द जी” का जन्म हुआ था – उस समय प्रकृति आनन्दित हो उठी थी……..भूमि नें मानों अपनें रत्नागार खोल दिए थे ………गोप कुमार जब जब जहाँ भी बृज में भूमि खोदते …..उन्हें नाना प्रकार के रत्न ही प्राप्त होते ……..वृक्षों में फल लदे रहते…….अन्न की उपज कई गुना बढ़ गयी थी…….ये चमत्कार सबसे छोटे पुत्र नन्द जी के जन्म से ही प्रारम्भ हो गया था ।
आनन्दमयी मूर्ति थे नन्द जी………धीरे धीरे बड़े होनें लगे ……..हर समय इनके मुखमण्डल में प्रसन्नता ही सबनें देखी थी ।
इन्हीं के समय में ही महर्षि शाण्डिल्य नें आकर स्वयं कहा था कि मैं आपका कुल पुरोहित बनना चाहता हूँ………सहर्ष आनन्द से पर्जन्य जी नें स्वीकार कर लिया …..और अपनें समस्त पुत्रों को महर्षि के चरणों में रख दिया था ।
शान्त गम्भीर थे नन्द जी……छोटा बालक कुछ चंचल होता है…….पर इनमें गम्भीरता के और आनन्द के अद्भुत गुण थे ।
बड़े बड़े गोप कुमारों की समस्याएं ये चुटकी में ही समाधान कर देते थे ……इस बात से पर्जन्य जी बड़े प्रसन्न रहने लगे अपनें छोटे पुत्र नन्द जी से ।
“महराना” ……..बृज का ही एक गाँव ……….इस गाँव के मुखिया थे …..सुमुख नामक गोप …….इनकी पत्नी बड़ी धर्मशीला थीं……पाटला नाम था उनका…….भगवान श्री विष्णु की आराधना करके उन्होंने पुत्री की कामना की थी……….क्यों की पुत्र थे उनके ।
हे तात विदुर जी ! स्वप्न में सुमुख गोप से भगवान नें पूछा था कि आप पुत्री की कामना क्यों करते हैं ? आपके दो पुत्र तो हैं हीं ।
तब सजल नेत्रों से सुमुख गोप नें कहा था …………पुत्री का जन्म प्रकृति में उल्लास लाता है……..दो कुलों को जोड़ता है……..स्नेह को प्रकृति में फैलाता है …….और पुत्री के पिता का कितना बड़ा सौभाग्य होता है कि …..वो मात्र देता है….. देता है……..सब कुछ देता है…….लेना नही मात्र देना है पुत्रीगृह को ……इस सौभाग्य से मैं क्यों वंचित रहूँ !
हे तात विदुर जी ! भगवान नारायण भी बड़े प्रसन्न हुए थे..सुमुख गोप की बातें सुनकर… ….और कहते हैं…….उसके कुछ दिनों बाद ही पाटला देवी के कुक्षी में “यशोदा” आगयीं……..और वो समय भी सन्निकट आया…..फागुन का महीना था जब यशोदा जी नें जन्म लिया ।
उनके समान कौन सुन्दर था बृज मण्डल में ……….तीखे नयन ……गौर वर्ण ……..इतनी सुन्दर थीं कि अप्सरा भी लजा जाती थीं यशोदा जी को देखकर ………..
और तात ! क्यों न सुन्दर हों………….कन्हैया की मैया हैं ये …….कन्हैया इतना सुन्दर तो उनकी मैया में तो अपूर्व सुन्दरता होगी ही ना ………….उद्धव की बातें सुनकर मुस्कुराये विदुर जी ।
नन्दीश्वर पर्वत के पास अपनें गोप कुमारों के साथ नन्द जी गए थे …..तब सखियों के मध्य वहाँ यशोदा जी भी आयी हुयीं थीं ।
नन्द जी नें एक बार देखा था यशोदा को ………..हाँ यशोदा जी नें भी सकुचाकर एक नजर भर देख लिया था ।
पर्जन्य जी कन्या खोज ही रहे थे अपनें छोटे पुत्र नन्द जी के लिये…..महर्षि शाण्डिल्य जो .त्रिकालज्ञ हैं…….उन्होनें मुस्कुराते हुए सुमुख गोप की कन्या के बारे में सब कुछ बताया ……और ये भी कहा …..कि सुमुख की कन्या नन्द के लिये ही इस पृथ्वी में आयी हैं ।
पर्जन्य जी महर्षि की इन गूढ़ बातों को समझते हैं ………क्यों की उन्हें भी आभास हो गया था कि उनका छोटा पुत्र नन्द कोई साधारण बालक नही है ……..कोई विशेष ही है ।
उस दिन प्रकृति कितनी प्रसन्न थी तात ! पृथ्वी नें उस दिन भी रत्नों को प्रकट किया था अपनें गर्भ से ………..जब नन्द जी और यशोदा जी एक परिणय सूत्र में बंध गए थे ……….देवों नें आकाश से पुष्प बरसाए थे ……..गन्धर्वों नें नाच गान भी किया था …………सब प्रसन्न थे …….प्रसन्नता चारों और अनुभव में आरही थी ।
बड़े बड़े ऋषि मुनियों नें हिमालय की कन्दराओं को त्याग कर बृज भूमि की शरण ले ली थी……..अब तो यशोदा नन्दन का अवतार होगा …..अब तो नन्दनन्दन आवेंगें……आस्तित्व प्रतीक्षा करनें लगा था ।
और उसी समय पर्जन्य जी नें अपनें छोटे पुत्र नन्द जी को अपना मुखिया घोषित कर दिया …..यशोदा जी को सब बड़े आदर से “बृजरानी” कहनें लगे थे ……कोई कोई “ब्रजेश्वरी” कहते । …..”ब्रजेश्वर”…..”बृजेश”……नन्द जी के लिये सम्बोधन हो गया था ।
जब कोई ये सब सम्बोधन करता तो ये दम्पति संकोच से धरती की ओर ही देखते रहते ।
अपनी गद्दी देकर पर्जन्य जी चले गए भजन करनें बद्रीनाथ ।
तात विदुर जी ! अब सबको इंतज़ार था……कि कन्हैया आवेंगें ।