श्रीहित मंगलगान श्रीराधावल्लभ मंदिर में नित्य समाज में गाया जाता है ! इसे रसिक जन अपने घर पर भी गाते है
॥ 1 ॥
जै जै श्रीहरिवंश, व्यास-कुल- मण्डना ।
रसिक अनन्यनि मुख्य गुरु, जन भय खंडना ॥
श्रीवृन्दावन वास, रास रस भूमि जहाँ ।
क्रीड़त श्यामा-श्याम, पुलिन मंजुल तहाँ ॥
पुलिन मंजुल परम पावन, त्रिविध तहँ मारुत बहै ।
कुंज भवन विचित्र शोभा, मदन नित सेवत रहै ॥
तहाँ संतत व्यासनन्दन, रहत कलुष विहंडना ।
जै जै श्रीहरिवंश, व्यास-कुल- मण्डना ॥ 1 ॥
॥ 2 ॥
जै जै श्रीहरिवंश चन्द्र उद्दित सदा ।
द्विज-कुल-कुमुद प्रकाश, विपुल सुख सम्पदा ॥
पर उपकार विचार, सुमति जग विस्तरी ।
करुना-सिन्धु कृपालु, काल भय सब हरी ॥
हरी सब कलि काल की भय, कृपा रूप जु वपु धौं ।
करत जे अनसहन निन्दक, तिनहुँ पै अनुग्रह कयौं ॥
निरभिमान निर्वैर निरुपम, निष्कलंक जु सर्वदा ।
जै जै श्रीहरिवंश चन्द्र उद्दित सदा ॥ 2 ॥
॥ 3 ॥
जै जै श्रीहरिवंश, प्रशंसित सब दुनी ।
सारासार विवेकित, कोविद बहु गुनी ॥
गुप्त रीति आचरण, प्रगट सब जग दिये ।
ज्ञान- धर्म व्रत-कर्म, भक्ति-किंकर किये ॥
भक्ति हित जे शरण आये, द्वन्द दोष जु सब घटे ।
कमल कर जिन अभय दीने, कर्म-बन्धन सब कटे ॥
परम सुखद सुशील सुन्दर, पाहि स्वामिन मम धनी ।
जै जै श्रीहरिवंश, प्रशंसित सब दुनी ॥ 3 ॥
॥ 4 ॥
जै जै श्रीहरिवंश, नाम-गुण गाइहै ।
प्रेम लक्षणा भक्ति, सुदृढ़ करि पाइहै ॥
अरु बाढ़े रसरीति, प्रीति चित ना टरै ।
जीति विषम संसार, कीरति जग विस्तरै ॥
विस्तरै सब जग विमल कीरति, साधु-संगति ना टरै ।
वास वृन्दाविपिन पावै, श्रीराधिका जु कृपा करें ॥
चतुर जुगल किशोर सेवक, दिन प्रसादहिं पाइहै ।
जै जै श्रीहरिवंश, नाम – गुण गाइहै ॥ 4 ॥
मधुरितु माधव मास सुहाई ।
भाग प्रकाश व्यासनन्दन मुख,
फूल्यौ कमल अमल छबि छाई ॥
श्रवत मधुर मकरन्द सुयश निजु,
कुंज केलि सौरभ सरसाई ।
सेवत रसिक अनन्य भ्रमर मन,
जैश्रीकृष्णदास सुखसार सदाई ॥
Audio Source : जै जै श्रीहरिवंश व्यास कुल मंडना