हे अनन्त ! हे भगवान शेष ! हे संकर्षण…….आपकी जय हो !
मध्यान्ह की वेला थी……..एकाएक आकाश से पुष्प बरसनें लगे …..चारों ओर मंगल वातावरण हो उठा था ……..लग रहा था बृजवासियों को कि कोई गा रहा है ……..कोई नृत्य , कोई दिव्य वाद्य बन रहा है ……..प्रकृति कैसे झूम उठी थी …..जय जय हो ……चारों दिशाओं से यही आवाज आरही थी ।
भादौं का महीना था ……शुक्ल पक्ष…….षष्ठी तिथि थी ।
उस समय एक प्रकाश, तीव्र प्रकाश रोहिणी माँ के गर्भ में छा गया था ……माँ रोहिणी का मुख उस समय ऐसा लग रहा था कि मानों चन्द्रमा का गोला हो…..दिव्य तेज़ से युक्त था मुखमण्डल रोहिणी माँ का ।
बालक को जन्म दे दिया था रोहिणी माँ नें ………….यशोदा जी और नन्द जी अनुष्ठान में बैठे थे ………..सुना ……….तो ये नन्द दम्पति आनन्द के उत्साह में भागे…….”मित्र वसुदेव के पुत्र हो गया”……आनन्द में चिल्लाये हुये भागे ।
बहन ! रोहिणी !
यशोदा जी नें आकर रोहिणी माँ को देखा ………और मुस्कुराईं बोलीं – “बधाई हो महारानी रोहिणी” ।
वसुदेव और देवकी नें सच में बहुत दुःख पाया है………….अच्छा होता विवाह ही न करते वसुदेव देवकी से ……..पहले से ही छ रानियाँ तो थीं ना वसुदेव की …………क्यों किया विवाह देवकी के साथ ।
समाज है बोलेगा ………आप उनका मुख तो बन्द कर नही सकते ।
बृजवासी , जो लगता है इन्हें सही, वो बोल देते हैं……बिना लाग लपेट के बोलते हैं………निडर हैं ये लोग ……ग्वाले हैं …….कंस से भी नही डरते ………अरे ! कंस से क्या डर ? वो डरे हमसे ……….हम अगर दूध दही माखन न दें कंस को तो उसके मुस्तण्डे खायेगें क्या ?
कारागार में बन्द कर दिया है मथुरा में, कंस नें, अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को …………वो विवाह के समय ही आकाश वाणी हो गयी थी ना….कि “देवकी का आठवाँ बालक कंस ! तेरी मृत्यु का कारण होगा”……..बस उसी दिन से देवकी और वसुदेव को कंस नें बन्दी बनाकर कारागार में बन्द कर दिया ।
अन्य पत्नियाँ भी थीं ……सब इधर उधर चली गयीं कोई अपनें पिता के यहाँ गयीं तो कोई अरण्य में ……तब तक के लिये, जब तक ये दुःख का समय बीत न जाए ।
रोहिणी कहीं जाना नही चाहतीं ……..वो अपनें पति के पास ही रहना चाहती हैं ……..पर ये कैसे सम्भव है ।
रोहिणी !
मेरे मित्र नन्द और भाभी यशोदा के यहाँ गोकुल में तुम वहाँ जाकर रहो ……और जब ये दुःख के बादल छंट जायेंगें तब आ जाना ।
वसुदेव नें समझाया………..देवकी नें भी समझाया………
अक्रूर रथ में बिठाकर रोहिणी को गोकुल में ले आये थे ।
यशोदा जी आनन्दित हो गयी थीं उस दिन जब रोहिणी को देखा था ………बहन ! ये तेरा ही घर है………….भैया वसुदेव के जीवन में कितना दुःख आ पड़ा है ….ओह ! ।
इसे अपना ही घर मानों और प्रेम से रहो …
…..नन्द जी ने भी रोहिणी को यही कहा था ।
जीजी ! रोते हुए यशोदा जी के गले लग गयी थीं रोहिणी ।
मेरे आर्यपुत्र बहुत कष्ट में हैं……..मैं क्या करूँ ?
सब ठीक करेंगें भगवान नारायण ………ये दुःख ज्यादा नही टिकेगा रोहिणी ! देखना बहुत शीघ्र ही सुख के दिन आयेंगें ।
यशोदा जी नें समझाया …..उनको पुचकारा ……..और रोहिणी माँ तब से यहीं रहनें लगी थीं ।
हे तात विदुर जी ! भगवान संकर्षण देवकी के सप्तम् गर्भ थे …….पर भगवान नारायण नें देवकी के गर्भ से उन्हें खींच कर रोहिणी के गर्भ में पहुँचा दिया था ……….वैसे तात ! ये किया था भगवान की माया नें …….पर संकल्प तो सब भगवान का ही होता है ना !
उद्धव विदुर जी को अद्भुत श्रीकृष्ण चरित सुना रहे हैं ।
रोहिणी ! तुम ?
एक दिन रोहिणी को जब देखा यशोदा जी नें, तो मुस्कुराईं ।
हाँ जीजी ! क्या हुआ ? रोहिणी माँ नें पूछा ।
तुम गर्भवती हो ? यशोदा जी नें भी पूछ लिया ।
शरमा गयीं रोहिणी…..हाँ जीजी !
वाह ! रोहिणी को पकड़ कर नाचनें लगीं थीं यशोदा जी ……..
ये तो तुमनें अद्भुत बात बताई…………
यशोदा जी नें सबको ये सूचना दे दी………दूसरे के सुख में भी सुखी होना ये इन नन्द दम्पति से कोई सीखे …….तात विदुर जी ! दूसरे के दुःख में कोई भी दुःखी हो सकता है……….कोई बड़ी बात नही है क्यों की दूसरे के दुःख में दुःखी होनें पर हमारे दुष्ट मन को प्रसन्नता होती है…….पर बड़ी बात है दूसरे के सुख में सुखी होना……..दूसरे का सुख हो और हम उसमें आनन्दित हों ….।
समय बीतता जा रहा है………….इधर ऋषि शाण्डिल्य नें सन्तान गोपाल मन्त्र का अनुष्ठान भी बिठा दिया है । उद्धव सुना रहे हैं ।
***********************************************
जय हो ………भगवान संकर्षण की जय हो ………जय हो …भगवान अनन्त की ……जय हो …भगवान शेष प्रभु की …..जय हो जय हो ।
देवताओं नें पुष्प बरसानें शुरू कर दिए थे ………..जय जयकार होनें लगे थे ………….भादौं शुक्ल छठ ……..के मध्यान्ह में …………
बधाई हो ….बधाई हो …..रोहिणी माँ नें एक बालक को जन्म दे दिया ।
बस इतना सुनते ही सब भागे …………महर्षि शाण्डिल्य के आनन्द का ठिकाना नही ……..आहा ! भगवान शेष प्रभु नें अवतार लिया है ……
चारों और आनन्द ही आनन्द छा गया है………
पौर्णमासी अपनें बालक मनसुख के साथ नन्दालय में आयीं ……..
नन्द जी यशोदा जी खड़े हैं……गोद में ले लिया है यशोदा जी नें उस बालक को ….बालक गौर वर्ण का है……लालिमा लिये हुए है …..अत्यन्त तेज़ पूर्ण हैं…..उसके भाल में से प्रकाश प्रकट हो रहा है ।
दादा ! दादा ! तुम आगये……अब कन्हैया कब आएगा ?
यशोदा जी नें देखा……पौर्णमासी का बालक मनसुख रोहिणी पुत्र के नन्हे हाथों को पकड़ कर हिला रहा है और पूछ रहा था ।
दादा ! कब आएगा कन्हैया ?
नन्हें से रोहिणी नन्दन मनसुख को देखकर हँसें….खिलखिलाकर हँसे।
सब चकित थे……..मनसुख ये सब देखकर आनन्दित हो उठा ……
नाचते हुए उछला…….बोलो – “दाऊ दादा की” …………सब लोग बोले …..जय…जय.. …जय जय ।