11. !! नन्दरानी के प्रसव !!

विदुर जी साधारण नही हैं…….ये धर्मराज के अवतार हैं………

और उद्धव भी साधारण कहाँ हैं …परम ज्ञानी ….परम भक्त …..और बृहस्पति के परम शिष्य ………..

विचार कीजिये …….ऐसे महापुरुष भला प्रसूति गृह, किसी गर्भवती के प्रसव की चर्चा करेंगें ? पर ये प्रसव कोई साधारण प्रसव नही है ……….अद्भुत प्रसव हुआ है…….अजी ! धन्य है वो प्रसूतिका गृह जिसमें परब्रह्म का प्रथम रुदन हुआ ……और गर्भ से वो बाहर आया ।

ये बात निर्रथक है कि ब्रह्म गर्भ में नही आता ……या उसका जन्म नही होता ……..अरे ! भक्त की भावना जैसी हो …..भगवान वैसा ही करता है……सूगर, सिंह, घोडा इत्यादि ब्रह्म जब बन सकता है …….तो गर्भ में अगर आकर वो नौ महिनें बैठ गया …….तो उसकी भगवत्ता में कौन सा दाग लग जायेगा…….और ब्रह्म तो सर्वत्र है ही ……गर्भ में भी है ……ये बात पूर्व में उद्धव विदुर जी को बता ही चुके हैं ।

साधकों ! श्रीराधाचरितामृतम् लिखते हुए मैं जहाँ “मधुर रस” में डूबा हुआ था ……….पर जब से मेरा कन्हैया मुझ से ये श्रीकृष्णचरितामृतम् लिखवा रहा है……तब से पता नही क्यों मुझे “वात्सल्य रस” अद्भुत लगनें लगा है………मैया यशोदा अपनी मैया लगनें लगीं हैं …….उसके लाला को छोड़ कभी कभी तो मैया की पद रेणु को माथे से लगानें की इच्छा हो जाती है……………

मैं चिन्तन में खो जाता हूँ………मैया कैसी होंगीं …….तो मैया की जो छबि मेरे सामनें बनती है…………गोरी……..सुन्दर ……..लम्बी बेणी ……….माथे में लाल टीका ………माँग भरी हुयी……….बड़ी बड़ी आँखें …..जिन आँखों में बस वात्सल्य….स्नेह ………हाँ .थोड़ी मोटी हैं ।

कल की एक सत्य घटना ………मैं सायंकाल के समय यमुना के किनारे बैठा हुआ था……..और यही चिन्तन मेरा चल रहा था …….मैया यशोदा का चिन्तन………तभी मेरे सामनें ……एक सभ्य – सम्पन्न परिवार की महिला…..यमुना स्नान करनें को आयीं ………सुन्दर थीं……….करीब होंगीं 40 वर्ष के लगभग ……..

उनकी ओर मेरा ध्यान गया तब, जब मैने उनकी गोद में देखा एक सुन्दर लड्डू गोपाल थे……..जिनके एक हाथ में लड्डू था और दूसरा हाथ धरती में रखे हुए थे ……….बहुत सुन्दर छबि थी उनकी ।

मुझे समझते देर न लगी ……..कि उन महिला के कोई सन्तान नही थे ….और उन्होंने लड्डू गोपाल को ही अपना बालक मान लिया था ।

यह बात सही निकली ।

वो स्नान करनें लगीं…….स्नान करते हुए उन्होंने अपनें लड्डू गोपाल को भी पकड़ा हुआ था ……और उन्हें भी स्नान करा रही थीं ।

मेरे हाथ में एक गुलाब का फूल था ……….जब वो महिला यमुना स्नान करके बाहर आयीं ………तब मैं बड़े संकोचवश उनके पास गया ……पहले तो जाना अच्छा नही लग रहा था ……कि एक युवती के पास मैं कैसे जाऊँ ……और वो भींगें कपड़ों में और थीं ……..पर मैनें सोचा मैं तो उसके बालक को पुचकारनें जा रहा हूँ…………और मुझे पक्का पता है कि किसी भी माँ को ये बहुत अच्छा लगता है जब उसके बालक को कोई पुचकारता है और कुछ देता है …………मैं यही सोचते हुये गया ……और जाकर बिना कुछ बोले ……..लड्डू गोपाल के पास ही गुलाब का वह फूल मैनें रख दिया ………गदगद् हो गयीं थीं उनकी माँ ……..पर उनकी माँ को आनन्द तब और आया जब मैने लड्डू गोपाल के गालों को पकड़ते हुये कहा ……..क्यूट है माँ ! तुम्हारा गोपाल ।

मैं बता नही सकता …..उन माँ को कितनी ख़ुशी हुयी थी …..।

अब मेरे मन मष्तिष्क से वो गोपाल जी जा ही नही रहे ………..और हाँ ……आप मानों या न मानों ……पर मैने जब गुलाब का फूल वहाँ रख दिया था ……..तब गोपाल जी का विग्रह मुस्कुराया था ।

साधकों ! एक सामान्य माँ में इतना वात्सल्य होता है कि उस वात्सल्य के कारण विग्रह भी मुस्कुरानें लग जाती है……..फिर विचार करो ……..साक्षात् मैया यशोदा जी में कितना वात्सल्य होगा !

चलिये ………..कथा की धारा में बहते हैं………….गोकुल चलते हैं……

जहाँ पूर्णब्रह्म परमात्मा यशोदा जी के गर्भ से जन्म लेनें वाला है……

अजन्मा का जन्म ? जी ! यही तो है इस कथा की विशेषता ।

यशोदा ! तेरा पेट तो दीखता ही नही है ?

सात महिनें होनें को आगये …….अब तो पेट बड़ा होना चाहिये ।

आज “मुखरा दाई” आगयी थी……..बूढी है …….पर पूरे गोकुल में यही तो बड़ी है…………पान खाती रहती है…….पान तो ऐसे खाती है …..जैसे बकरी घास खाये ।

अच्छा ! एक बात बता यशोदा ! ….जी मिचलाता है ? पूछती है दाई ।

हाँ ……दाई ! मिचलाता तो है ………..यशोदा जी नें कहा ।

बड़ी खुश हो गयी दाई ……………चारों ओर देखनें लगी ………..आँखें मटकाते हुए ……और पान की पीक थूकते हुए ।

नन्दा सुनन्दा दोनों नन्द जी की बहन हैं …………..

अच्छा ! तुम पहले ही आगयीं ? नन्दा और सुनंदा को देखकर दाई बोली ……………

क्यों नही आसकती क्या ? मेरी भाभी के बच्चा होनें वाला है ………मैं क्यों न आऊँ ? सुंनदा भी बोल पड़ी ।

नौ लखा को हार मैं ही लुंगी …………देख बता देती हूँ ……दाई तुनक कर बोली ………..सुनन्दा कुछ बोलतीं ……..कि यशोदा जी ही बोल पडीं ………..ठीक है ……..तुम भी ले लेना नौ लखा का हार ।

अच्छा ! कुछ खानें की इच्छा होती है ? दाई फिर पूछ रही है ।

यशोदा जी कहती हैं……….मिट्टी , खपरैल के टुकड़े , खट्टा , ये सब बहुत खानें का मन करता है ……..।

दाई खुश है …………..बहुत खुश है ।

कुछ देर बैठकर चली जाती है दाई ……….और सब अपनें अपनें कामों में फिर लग जाते हैं ।

पगड़ी बाँधे नन्द जी के बड़े भाई सुनन्द आज सुबह ही सुबह ऋषि शाण्डिल्य की कुटिया में पहुँच गए थे ……………….

प्रणाम किया ……….फिर शान्त भाव से बैठ गए ।

“नन्द की बहु के छोरा होगा या छोरी ?”

सुनन्द सहज हैं ……..वैसे गोप जाति ही सहज होती है…………सहज और सरल ।

ऋषि शाण्डिल्य नें जब ये प्रश्न सुना तो हँसे …………

पर यजमान नें पूछा है …..तो पुरोहित का कर्तव्य है बताना ।

ऊँगली में कुछ गिनती की……ग्रह नक्षत्र सब बिठाए ……….

फिर हँसते हुए बोले ……….छोरा !

सुनन्द के आनन्द का ठिकाना नही ………….

कब ? दूसरा प्रश्न फिर किया ।

अष्टमी को ………..यानि कल ……….ऋषि नें ये भी बता दिया ।

सुनन्द अपनी प्रसन्नता छुपाना चाह रहे हैं…………….

हे गुरुदेव ! अष्टमी तो कल है ……..अष्टमी में कितनें बजे ?

ऋषि शाण्डिल्य नें हँसते कहा….अब मैं इससे ज्यादा नही बताऊंगा ।

गोप सुनन्द नें जिद्द भी नही की ………प्रणाम करके ……….108 सुवर्ण के मोहर ऋषि के चरणों में रखते हुये चले गए ।

सप्तमी बीत गयी…..नाचते गाते….अब आयी अष्टमी …..भाद्र पद कृष्ण पक्ष अष्टमी ।

यशोदा जी को सुला दिया है ………पर ये मानती कहाँ हैं ।

रोहिणी नें जबरदस्ती की ……………..जीजी ! आज आप कोई काम नही करोगी ……..हम सब हैं ना !

सुनन्दा नन्दा ये दोनों भी बैठ गयीं …..भाभी ! अब आप आराम करो ………..हम सब हैं ना ! सुनन्द की पत्नियाँ आगयीं …..”बहू यशोदा ! तू आराम कर …..हम सब तो हैं ना ।

यशोदा जी लेटी हुयी हैं …………

अरे ! अभी तक तुम लोगों नें सूतिका गृह तैयार नही किया ?

आगयीं लाठी टेकते हुए सफेद बालों वाली दाई ……….पान मुँह में लगा हुआ है …………….सबको चिल्लाती हुयी आयी ।

तुम लोग बस बातें ही बनाती रहती हो ………..

चलो ! सूतिका गृह तैयार करो …………खेऱ , पीपल, कपूर इन सबका धुँआ दो उस में …………ताकि वो शुद्ध हो जाए …..और हाँ ………सरसों के दानें बिखेर देना उसमें ……..भूत प्रेत की बाधा नही लगेगी ………….पान की पीक थूक दी जगह देखकर ।

अच्छा ! अब बता यशोदा ! तू ठीक है ना ?

हाँ दाई ! मैं ठीक हूँ …………यशोदा जी नें मुस्कुराते हुए कहा ।

ठीक है तू ? तुझे दर्द नही हो रहा .? दाई को फिर बेकार की चिन्ता लग गयी ।

अरी सुनो ! मैं तो तुम लोगों का नाम भी भूल जाती हूँ…….सुनन्दा ! तू आ ………बेटा ! देख …..सरसों का तेल, तिल का तेल, लौंग का तेल , नारियल का तेल ये सब मिलाकर गर्म कर ………फिर उसे मेरे पास में ले आ …………..सुनन्दा – ठीक है दाई ……कहती हुयी जैसे जानें लगी ……..अरे ! बात तो सुन ले ……..बिना बात समझे भग रही है ……सुन पहले …….और तुम सब भी सुनो…….दाई अपनी सुनानें लगी –

देखो ! ये सब तेल है ना ……इसकी मालिश हल्के हाथों करनें से प्रसव की पीड़ा गर्भवती को होती नही है…..और बालक गर्भ से आसानी से निकल आता है …….समझी ? सुनन्दा को दाई बोली ।

मुझे क्या कह रही हो दाई ! मेरे तो चार छोरा हैं …………..

और ये सब करनें की आवश्यकता नही है……मेरी बहन नन्दा तो मथुरा के मेला में गयी थी वही बच्चा हो गया…और स्वयं ही लेकर आगयी ।

मेरा एक बालक तो खेत में हुआ है ………गयी थी गौ को घास काटनें दर्द उठा और बालक हो गया …….तुम बेकार में सुबह से कीच कीच लगा रखी हो …….सुनन्दा नें भी सुना दिया ।

अब क्या बताऊँ यशोदा ! ये आज कल की छोरियाँ हम बूढ़े बड़ेन की बातें तो सुनती ही नही हैं…………….

सुन छोरी ! यशोदा रानी हैं………..कोमल हैं……..कोई तू जैसी होती तो कह देती कि चक्की चलाओ……..दौड़ों ……..आँगन लीपो ……..पर ये यशुमति हैं………बृजरानी हैं……अब इनको कहूँ कि आँगन लीपो ! चक्की चलाओ ! मैं तो समझ के कह रही हूँ …..तुझे मेरी बात बुरी लगे तो दो रोटी ज्यादा खाय लीयो ………

ये कहते हुए फिर पान की पीक थूकी दाई नें ……..सुनन्दा हँसती हुयी तेल लेनें चली गयी……..वातावरण बड़ा ही आनन्दपूर्ण हो गया है ।

समय बीतता ही जा रहा है । सुबह से अब दोपहर भी बीत गयी …..शाम होनें का आया है ।

अरे ! सुनन्द जी ! समय क्या बताया है ऋषि शाण्डिल्य नें ?

दाई को उत्तर दिया सुनन्द नें …………..समय नही बताया, बस अष्टमी बोले थे ………।

शाम के छ तो बज गए हैं….अब ? दाई नें देखा छ बज गए थे ।

प्रसूतिका गृह में यशोदा जी लेट गयी हैं …………सुन – सुनन्द की बहू ! कुछ कपड़े भी रख देना …….साफ़ सुथरे होनें चाहिये कपड़े ।

और चार पाँच कलसे में पानी भरवा के रख देना ……आवश्यकता पड़ेगी …….दाई तेज़ है ……….सब कुछ सम्भाल रही है ।

यशोदा ! अब बता ……पेट में पीड़ा हो रही है ? पूछा दाई नें ।

नही…….दाई ! कुछ नही हो रहा ………मुझे तो नींद आरही है …..यशोदा जी नें ये और कह दिया ।

हँसी दाई…………नींद आरही है ? दर्द नही उठ रहा ?

नही…….कोई दर्द नही उठ रहा …………बस नींद आरही है …..यशोदा जी नें फिर कहा ।

दाई के भी समझ में नही आरहा कि ये हो क्या रहा है ।

हल्की हल्की बारिश शुरू हो गयी थी……..शीतल पवन बहनें लगे थे ।

रात्रि के आठ बज गए हैं………….दाई बैठी है यशोदा जी के पास ……..तलवों में तेल मल रही है …………..

जा नन्द राय को कह दे ………..

……वो परेशान हो रहे होंगें कि बालक हुआ या नही ?

सुनन्दा बाहर आयी ……चिल्लाई …….भैया ! अभी कुछ नही हुआ ।

नन्द जी के साथ उनके भाई भी थे ….उनके मित्र भी थे …………..

सब मन में सोचनें लगे ……..अष्टमी तो आज ही है ………..फिर अभी तक यशोदा को बालक क्यों नही हुआ !

नन्द जी नें कहा ……….मैं गौशाला में जाकर बैठता हूँ ……….आप लोग विश्राम करो ……….जब बालक होगा सबको सूचना मिल ही जायेगी ।

थके हारे सब थे ………सब अपनें अपनें घरों में चले गए ………

नन्द जी गौशाला में जाकर बैठ गए ………..आज उनका ध्यान नही लग रहा …………..बहुत कोशिश की ….पर नही लग रहा ………उन्होंने माला निकाली ……और जपना शुरू कर दिया ।

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