श्रावण मास न केवल भक्ति और आस्था का महीना है, बल्कि यह प्रकृति प्रेम और स्त्री शक्ति का उत्सव भी है। इस पावन मास में दो महत्वपूर्ण त्योहार आते हैं – हरियाली अमावस्या और हरियाली तीज। ये पर्व भारत की प्राचीन संस्कृति, पर्यावरणीय जागरूकता और धार्मिक परंपराओं को एक साथ जोड़ते हैं।
▌हरियाली अमावस्या क्या है?
हरियाली अमावस्या, श्रावण मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है जो की इस साल 24 जुलाई 2025 को है । यह दिन विशेष रूप से वृक्षारोपण, प्रकृति पूजन और भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित होता है।
▌पितरों के लिए दीपक जलाने के लाभ
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो अमावस्या के दिन पितर धरती पर आते हैं जिससे वे अपने वंश से तृप्त हो सकें और अपने वंशजों को आशीर्वाद दे सकें. जब वे वापस पितृ लोक जाते हैं तो उनके रास्ते में अंधेरा न हो, इसलिए अमावस्या के दिन दीपक जलाते हैं. ऐसा करने से उनका मार्ग रोशन रहता है जिससे वे खुश होकर अपने वंश को आशीर्वाद देते हैं.
▌हरियाली अमावस्या का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावन का महीना देवी-देवताओं और भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए बहुत ही शुभ है. हरियाली अमावस्या के दिन पितरों को तर्पण देना और दान-पुण्य करना भी बहुत लाभकारी होता है. हिंदू परंपराओं में पेड़-पौधों में भगवान का वास बताया गया है और लोग हरियाली अमावस्या के दौरान पेड़-पौधों की पूजा करते हैं.
कुछ जगहों पर हरियाली अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने की प्रथा है. हरियाली अमावस्या पर पेड़-पौधे लगाना बहुत शुभ माना गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, पीपल के पेड़ पर तीन देवताओं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है. अगर आप इस दिन एक पौधा लगाते हैं, तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और आपकी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं. अमावस्या का दिन हमारे पूर्वजों को समर्पित होता है, इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन पितरों को तर्पण और पिंडदान करना शुभ है.
✨ विशेषताएं:
- पेड़-पौधे लगाना और उनकी पूजा करना
- नदी-सरोवरों में स्नान कर पवित्रता प्राप्त करना
- शिवजी और पितरों का तर्पण करना
- मेलों का आयोजन और झूले झूलने की परंपरा
इस दिन शिवजी को बेलपत्र और जल अर्पण करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। साथ ही, यह दिन पितृ शांति के लिए भी उपयुक्त माना जाता है।
▌हरियाली तीज क्या है?
हरियाली तीज, श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। यह विशेष रूप से विवाहित और कुंवारी महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है।
गो. श्रीहितहरिवंश चन्द्र महाप्रभु जी कृत-राग विहागरौ
(सावन सुदी तीज से यह पद नित्य होय है)
झूलत दोऊ नवल किशोर। रजनी जनित रँग सुख सूचत अंग-अंग उठि भोर।।
अति अनुराग भरे मिलि गावत सुर मंदर कल घोर।बीच-बीच प्रीतम चित चोरत प्रिया नैन की कोर।।
अवला अति सुकुमारि डरत मन वर हिंडोर झकोर।पुलकि-पुलकि प्रीतम उर लागत है नव उरज अकोर।।
अरुझी विमल माल कंकन सो कुण्डल सो कच डोर।बेपथ जुत क्यों बनै विवेचत आनन्द बढ्यौ न थोर।।
निरखि-निरखि फूलत ललितादिक विवि मुख चन्द्र चकोर।दै असीस श्रीहरिवंश प्रसंसत करि अंचल की छोर।।1।।
भूमिका : श्रीहित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु जी कहते है कि झूले में विराजमान नवल किशोरी व नवल किशोर अतिही सुन्दर स्वरूप में विराजमान है और जैसे-जैसे हिंडोला हिलोर लेता है एक-दूसरे के आभूषण व वस्त्र उलझ जाते है, इस लीला का सभी सखियाँ मिल कर आनन्द ले रही है।
व्याख्या : दोनों नवल किशोरी-किशोर झूला झूल रहे है। रात्रि के सुख रँग से हुए चिन्ह अंग-अंग पर भोर में उठने पर सूचना दे रहे है।। अति अनुराग से भर कर मधुर स्वर में भौरों की गुंजार,कोयल की कुक आदि व सखियों का मिल कर गाना घोर स्वर उतपन्न कर रहा है।बीच -बीच मे श्री प्रियतम जी के मन को श्री प्रिया जी के नेत्रो की कोर हर लेती है।।
अतिही सुकमारी नार श्री प्रिया जी का मन डर जाता है हिंडोले की हिलोर से। प्रफुल्लित प्रसन्न होकर वह श्री प्रियतम जी के ह्रदय से नवीन उरोजों का आलिग्न करते हुए लग जाती है।। इस स्पर्श में श्री प्रिया जी की विमल माला श्री प्रियतम जी के कंकन से व उनकी कच की डोर कुण्डलों से उलझ जाती है।अब इस पथ का जो आनन्द बढ़ा है वह थोड़ा नही है और कौन इसकी व्याख्या या समीक्षा कर सकता है।। इस झूलन की लीला को देख-देख कर प्रफ्फुल्लित ललिता जी आदि सखियाँ श्री युगल के मुखकमल चन्द्र को चकोर की भांति देख रही है।सखी भावपन्न श्रीहित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु प्रसन्न होकर आँचल की ओट कर आशीष प्रदान कर रहे है।।1।।
🌸 खास बातें:
- महिलाएं सोलह श्रृंगार करके झूला झूलती हैं
- उपवास रखकर माता पार्वती और शिवजी की पूजा करती हैं
- अच्छे पति और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं
- पारंपरिक गीत, नृत्य और मेहंदी लगाने की परंपरा
💚 सांस्कृतिक पहलू:
यह पर्व प्रेम, समर्पण और स्त्री सौंदर्य का प्रतीक है। महिलाएं इस दिन हरे वस्त्र पहनती हैं जो प्रकृति और हरियाली का प्रतीक होते हैं।
🌿 दोनों पर्वों का पर्यावरणीय महत्व
इन दोनों पर्वों का सीधा संबंध प्रकृति और पर्यावरण से है। जहां हरियाली अमावस्या पर वृक्षारोपण का संदेश दिया जाता है, वहीं हरियाली तीज स्त्रियों के प्रकृति से गहरे संबंध को दर्शाती है।