
श्री राधा रमण जी का मन्दिर श्री गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध मन्दिरों में से एक है | श्री राधा रमण जी उन वास्तविक विग्रहों में से एक हैं, जो अब भी वृन्दावन में ही स्थापित हैं ।
अन्य विग्रह जयपुर चले गये थे, पर श्री राधा रमणजी ने कभी वृन्दावन को नहीं छोड़ा। श्री राधारमण जी 1532 से ही वृंदावन मे विराजित है मन्दिर के दक्षिण पार्श्व में श्री राधा रमण जी का प्राकट्य स्थल तथा गोपाल भट्ट गोस्वामीजी का समाधि मन्दिर है । (गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने ही राधारमण के विग्रह को प्रगट किया था)

राधारमण जी का प्राक्ट्य
एक बार श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी अपनी प्रचार यात्रा के समय जब गण्डकी नदी में स्नान कर रहे थे, उसी समय सूर्य को अर्घ देते हुए जब अंजुली में जल लिया तो एक अद्भुत शलिग्राम शिला श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी की अंजुली में आ गई|
जब दुबारा अर्घ देने को जल अंजुली मे भरा तो एक और शालिग्राम आ गए इस प्रकार एक-एक कर के बारह शालिग्राम की शिलायें उन्हे प्राप्त हुई | जिन्हे लेकर श्री गोस्वामी वृन्दावन धाम आ पहुंचे और यमुना तट पर केशीघाट के निकट भजन कुटी बनाकर श्रद्धा पूर्वक शिलाओं का पूजन- अर्चन करने लगे|
एक बार वृंदावन यात्रा करते हुए एक सेठ जी ने वृंदावनस्थ समस्त श्री विग्रहों के लिए अनेक प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र आभूषण आदि भेट किये| श्री गोपाल भट्ट जी को भी उसने वस्त्र आभूषण दिए|परन्तु श्री शालीग्राम जी को कैसे वे धारण कराते श्री गोस्वामी के हृदय में भाव प्रकट हुआ कि अगर मेरे आराध्य के भी अन्य श्रीविग्रहों की भांति हस्त-पद होते तो मैं भी इनको विविध प्रकार से सजाता एवं विभिन्न प्रकार की पोशाक धारण कराता, और इन्हें झूले पर झूलता |
यह विचार करते-करते श्री गोस्वामी जी को सारी रात नींद नहीं आई| प्रात: काल जब वह उठे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उन्होंने देखा कि श्री शालिग्राम जी त्रिभंग ललित द्विभुज मुरलीधर श्याम रूप में विराजमान हैं । यह 1599 विक्रम संवत वैशाख शुक्ल पूर्णिमा का दिन था|
श्री गोस्वामी ने भावविभोर होकर वस्त्रालंकार विभूषित कर अपने आराध्य का अनूठा श्रृंगार किया| श्री रूप सनातन आदि गुरुजनों को बुलाया और राधारमणजी का प्राकटय महोत्सव श्रद्धापूर्वक आयोजित किया गया|राधारमण जी गोस्वामी जी के झोपड़ी के निकट एक पीपल के नीचे प्रकट हुए थे। यह वही स्थान है जहां लगभग 4,500 साल पहले रास के दौरान श्री राधारानी से कृष्ण अंतर्हित हो गए थे जो गोपाल भट्ट गोस्वामी के बुलावे पर फिर से इस विग्रह के रूप में प्रकट हुए थे। जब कृष्ण उस स्थान से गायब हो गए, तो श्री राधा ने उन्हें रमन नाम से पुकारा; वह राधा का रमन था, इस प्रकार गोस्वामी जी ने इनका नाम “राधारमण” रखा। यही श्री राधारमण जी का विग्रह आज भी श्री राधारमण मंदिर में गोस्वामी समाज द्वारा सेवित है और प्रत्येक वर्ष वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को पंचअमृत के अभिषेक के साथ प्राक्ट्य उत्सव मनाया जाता है| और इन्ही के साथ गोपाल भट्ट जी के द्वारा सेवित अन्य 11 शालिग्राम शिलाएं भी मन्दिर में स्थापित हैं ।
राधारमण जी का विग्रह
राधारमण जी का श्री विग्रह वैसे तो सिर्फ द्वादश अंगुल का है, पर इनके दर्शन इतने मनोहारी है कि जिसे देख कर कोटिक कामदेव भी मूर्छित हो जाए। नेपाल में काली-गंडकी नदी से गोपाल भट्ट जी को 12 शालिग्राम मिले जो गोस्वामी जी के प्रेम से वशिभूत होकर ललित त्रिभंग , बंशी धारी के रूप मे प्रगट हो गए।
लाल जी की पीठ शालिग्राम शिला जैसी ही दिखती है अर्थात पीछे से देखने पर शालिग्राम जी के ही दर्शन होते है। फूलो से भी कोमल चरण, वेणु वादन की मुद्रा मे हस्त कमल और श्री मुख पर अति मनोहारी मुस्कान लिए राधारमण जी भक्तो के हृदय मे रमण कर रहे है|
वृंदावन के प्राचीन विग्रहो में गोविंद, गोपीनाथ और मदनमोहन जैसे नाम थे, लेकिन बाद में जब श्री राधा के विग्रह को उन मंदिरों में स्थापित किया गया, तो उन्हें राधा-गोविंद, राधा-गोपीनाथ, राधा-मदनमोहन के रूप में जाना जाने लगा। लेकिन श्री राधारमण देव एक ही रूप में राधा और कृष्ण हैं, अतः उनके साथ राधारानी का कोई अलग विग्रह नहीं है, हालांकि राधा के पवित्र नाम की पूजा उनके वाम भाग मे की जाती है।
राधारमण जी के बारे मे एक दिलचस्प बात यह है की कृष्ण के अन्य विग्रहो के जैसे ये बांसुरी नही पकड़ते। इसका कारण गोस्वामियो द्वारा यह बताया गया है की यह विग्रह बहुत छोटा और हल्का है और ना ही किसी सतह पर टिका है अतः जब वह ऊंचाई पर अपने सिंहासन पर बैठा हो, तो वह गिर सकता है यदि उनके कोमल हाथों में बांसुरी रखते हैं या बांसुरी को हाथो के बीच से निकालते हैं। इसके अलावा भोजन ( भोग ) को खाने के दौरान हर बार बांसुरी को निकालना और बदलना पड़ेगा , जिसके परिणामस्वरूप उसके कोमल हाथों को खरोंच लग सकता है और वह गिर सकता है। इसलिए भाव मे उन्हें बंशी बजाते हुए देखते है इसलिए बंसी को विग्रह के पास विराजित किया जाता है ताकि वह हमेशा उनके साथ रहे।
श्री विग्रह के बारे मे

इनका विग्रह तीन विग्रहो का मिलाजुला रूप है जिसमे
❖ मुखारविन्द “गोविन्द देव जी” के समान|
❖ वक्षस्थल “श्री गोपीनाथ” के समान|
❖ चरणकमल “मदनमोहन जी” के समान हैं|
इनके दर्शन मे ही इन तीनो विग्रहो के दर्शन हो जाते है अतः इनके दर्शन मात्र से ही तीनो ठाकुरो के फल एक साथ प्राप्त होता है
मंदिर का इतिहास
श्री राधा रमण मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है जो प्रारंभिक आधुनिक काल के समय का है। वृंदावन में सबसे पुराने मंदिरों में से एक होने के नाते, यह एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व रखता है। मंदिर से जुड़ा एक दिलचस्प तथ्य है, जिसके अनुसार, मंदिर के रसोईघर में लगभग 500 वर्ष से लगातार आग जलती रही है जो मंदिर के निर्माण के समय जलाया गया था और इसी आग पर मंदिर मे ठाकुर जी को लगने वाली भोग सामग्री तैयार की जाती है।
श्री राधा रमण का मंदिर लगभग 500 साल पहले गोपाल भट्ट गोस्वामी (चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों में से एक) द्वारा बनाया गया था। गोपाल भट्ट गोस्वामी ने तीस साल की उम्र में वृंदावन का दौरा किया। आगमन पर, उन्होंने चैतन्य महाप्रभु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त किया। हालांकि, आशीर्वाद कोपिन (चैतन्य का लंगोटी), पट्टा, (लकड़ी का आसन), दुपट्टा (कपड़े का लंबा टुकड़ा) के रूप में थे। इन सभी के बीच, लकड़ी की सीट अच्छी तरह से संरक्षित है, और इसलिए, मंदिर में देखा जा सकता है।
श्रीगोपालभट्ट जी
गोपाल भट्ट गोस्वामी का आविर्भाव सन् 1503, मे श्री रंगक्षेत्र में कावेरी नदी के निकट स्थित बेलगुंडी ग्राम में श्री वैंकटभट्ट जी के घर हुआ था।गोपाल भट्ट गोस्वामी गनमंजरी और अनंगा मंजरी का संयुक्त अवतार है। गनमंजरी राधारानी की नौकरानियों में से एक है, जो मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार के सुगंधित पानी की सेवा करती है। अनंगा मंजरी राधारानी की छोटी बहन हैं, और गनमंजरी की तरह उनकी सहायक और अनुयायी भी हैं।
जब चैतन्य महाप्रभु दक्षिण यात्रा करते हुए श्रीरंगनाथ भगवान के दर्शन हेतु रंगक्षेत्र पधारे, तब वहाँ वैंकटभट्ट भी उपस्थित थे, और उन्हें अपने घर पर प्रसाद का निमंत्रण दिया। उस समय महाप्रभु ने चातुर्मास श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी के ही घर में किया, तब गोपाल भट्ट की आयु 11 वर्ष की थी। गोपाल भट्ट गोस्वामी ने भी महाप्रभु की हर प्रकार से सेवा की और गोपाल से महाप्रभु का भी अत्यंत स्नेह हो गया। वहाँ से प्रस्थान करते समय महाप्रभु ने ही इन्हें अध्ययन करने को कहा और वृंदावन जाने की आज्ञा दी।
माता-पिता की मृत्यु के बाद वृंदावन आकर श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी, श्री रूप-सनातन जी के पास रहने लगे थे। श्री चैतन्य महाप्रभु ने नित्य लीला मे प्रवेश के समय रूप और सनातन गोस्वामी जी को स्वप्नदेश किया कि गोपाल भट्ट जो गौड़ीय वैष्णववाद के अगले गुरु के रूप में बैठेंगे। बाद मे गोपाल भट्ट ने अपने शिष्य दामोदर दास गोस्वामी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना, और उनके आशीर्वाद से, दामोदर दास गोस्वामी और उनके वंशज श्री राधारमण लाल की सेवा करेंगे, जो सभी पीढ़ियों के लिए विद्वानों और आध्यात्मिक शिक्षकों के रूप में भक्तों का मार्गदर्शन करेंगे।
पिछले 500 वर्षों से आज तक, श्री राधारमण मंदिर के गोस्वामी महाप्रभु के आदेश और गोपाल भट्ट गोस्वामी के निर्देशों का पालन करते रहे हैं, जो दुनिया में भक्ति का प्रचार करने और श्री राधारमण की पूजा करने के उद्देश्य से अपना जीवन समर्पित करते हैं। सन 1643 की श्रावण कृष्ण पंचमी को आप नित्य लीला में प्रविष्ट हो गए|श्री राधा रमण जी के प्राकट्य स्थल के पार्श्व में इनकी पावन समाधि का दर्शन अब भी होता है|
मंदिर कि आरतियाँ
श्री राधारमण मंदिर मे अष्ट्याम यानी आठ पहर अलग-अलग भाव से आरती, श्रृंगार और दर्शन होते है जो इस प्रकार है :-
- मंगला आरती : 04:45AM
- धूप श्रृंगार आरती : 09:00AM
- श्रृंगार आरती : 10:15AM
- राजभोग आरती : 12:15AM
- धूप संध्या आरती : 05:15PM
- संध्या आरती : 06:46PM
- औलाइ संदर्शन : 9:00PM
- शयन आरती : 09:15PM
- मंगला आरती की बेला में हमारे प्यारे श्रीराधारमण जू की जब आरती होती हैं एक तो उनके मुख-मण्डल पर अल्साय हुए दर्शन प्रतीत होते हैं सभी भक्तों को। मंगला आरती पर 3 बत्ती द्वारा आरती सेवा होती हैं।
- धूप आरती सुबह 9 बजे की जाती हैं। जिसमें श्रीराधारमण जू सज-संवरकर अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए अति लालायित रहते हैं। जितनी प्रतीक्षा भक्तों को रहती हैं उससे कहीं ज्यादा इन्हें। धूप आरती में 1 बत्ती द्वारा सेवा होती हैं।
- श्रृंगार आरती दर्शन में श्रीराधारमण जू को पुष्पों की माला पहनाई जाती हैं। वोह पुष्प भी धन्य अति धन्य हैं जो श्रीठाकुर-ठकुरानी के अंगों का स्पर्श करते हैं। श्रृंगार आरती सेवा 5 बत्ती द्वारा होती हैं।
- राजभोग में आरती सेवा गर्मीयों में पुष्पों द्वारा होती हैं। सर्दियों में आरती सेवा 5 बत्ती द्वारा की जाती हैं।
- संध्या धूप आरती समय 1 बत्ती द्वारा सेवा की जाती हैं। परन्तु अगर कोई विशेष-विशेष उत्सव हो। जैसे प्राकटय् उत्सव-श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव इत्यादि तो 13 बत्ती द्वारा सेवा की जाती हैं।
- किसी भी उत्सव के दिन संध्या समय मे एक और आरती होती है जिसे उत्सव आरती कहते है
- संध्या आरती में 9 बत्ती द्वारा सेवा की जाती हैं संध्या समय जो परिवेश हैं प्राँगण का। विशेष ग्रीष्म ऋतु में श्रीठाकुर-ठकुरानी जी बाहर पधारते हैं। एक-एक अंग की छवि का दर्शन आहा ! जितना कहाँ जायें कम ही होगा। रसिक जनों द्वारा समाज गायन एवं भक्तवृन्द जनों द्वारा नृत्य। ह्रदय एवं आत्मा नाच उठती हैं।
- औलाई दर्शन का आनन्द प्राप्त होता हैं। श्रीठाकुर जी गौ-चारण के पश्चात धुल-धुसरित वस्त्रों से घर पर पधारते हैं तब श्री यशोदा मैया श्रीठाकुर जी का अच्छी तरह से मार्जन कर हल्के वस्त्र धारण करवाती हैं। क्या सीमा होगी ऐसे आनन्द की। अगर एक बार इसका चिन्तन किया जायें तो जीव इसी में डूब जायें।
- शयन आरती की सेवा 3 बत्ती द्वारा की जाती हैं। साथ में बांसुरी वादन की मधुरतम आवाज मदमस्त कर देती हैं। मन्दिर का परिवेश बिलकुल शान्त एवं आनन्दप्रदायक हो जाता हैं।
!! श्री राधारमण लाल की जय !!
❑ रोज दर्शन करने के लिए व्हाट्सएप करे : 9460500125 ❑