रसिक नाम ध्वनि को रसिक नामावली भी बोला जाता है जो की ये श्रीहित वृन्दावनदास जी ( पटना वाले ) कृत है !
इसे सभी हित साधकों को नित्य पाठ करना चाहिए ! इसे आप ऑडियो रूप में भी सुन सकते है !
श्रीवृन्दावन रानी राधावल्लभ नृपति प्रसंश।
हित के बस यश-रस उर धरिये करिये श्रुत अवतंश ॥
वंशीवट यमुनातट धीरसमीर पुलिन सुखपुंज।
बिहरत रंग रंगीलौ हित सौं मण्डल-सेवाकुंज ।
ललिता विशाखा चम्पक चित्रा तुंगविद्या रंगदेवी ।
इन्दुलेखा अरु सखी सुदेवी सकल यूथ हित-सेवी ॥
श्रीवनचन्द्र श्रीकृष्णचन्द्र श्रीगोपीनाथ श्रीमोहन ।
नाद-बिन्दु परिवार रँगीलों हित सौं नित छवि जोहन ॥
नरवाहन ध्रुवदास व्यास श्रीसेवक नागरीदास ।
बीठल मोहन नवल छबीले हित चरणन की आस ॥
हरीदास नाहरमल गोविन्द जैमल भुवन सुजान ।
खरगसैन हरिवंशदास परमानन्द के हित प्रान ॥
गंगा जमुना कर्मठी अरु भागमती ये बाई।
हितजू के चरन शरन है कैं इन दम्पति-सम्पति पाई ॥
दास चतुर्भज कन्हर स्वामी अरु प्रबोध कल्यान ।
स्वामीलाल दामोदर पुहुकर सुन्दर हित उर आन ॥
हरीदास तुलाधार और यशवंत महामति नागर ।
रसिकदास हरेकृष्ण दोऊ ये प्रेम भक्ति के सागर ॥
मोहन माधुरीदास द्वारिकादास परम अनुरागी ।
श्यामशाह तूंवर कुल हित सौं दम्पति में मति पागी ॥
श्रीहित शरन भये अरु अब हैं फेरहु जे जन है हैं ।
प्रेम भक्ति अरु भाव चाव सौं वृन्दावन-निधि पैहैं ॥
रसिक – मण्डली में या तन कौं नीके ढंग लगावो ।
दम्पति यश गावो हरषावो हित सों रीझि रिझावो ॥
देवनि कौं दुर्लभ नर देही सो तैं सहजहि पाई ।
मनभाई निधि पाई सो क्यौं जानबूझि बिसराई ॥
एक अहंता ममता ये हैं जग में अति दुखदाई ।
ये जब श्रीजू की ओर लगैं तब होत परम सुखदाई ॥
मात – तात- सुत-दार देह में मति अरुझै मति मंदा ।
श्रीहितकिशोर कौ है चकोर तू लखि वृन्दावन चन्दा ॥
जय-जय राधावल्लभ प्यारौ हरिवंश ।
जय-जय प्यारौ वृंदावन प्यारौ वनचंद्र ॥