जय जय राधावल्लभ गुरु हरिवंश | रँगीलो राधावल्लभ हित हरिवंश ।।
छबीलो राधावल्लभ प्यारौ हरिवंश । रसीलो राधावल्लभ जीवन हरिवंश ।।
श्रीवृन्दावन रानी राधावल्लभ नृपति प्रशंस हित के
बस यश रस उर धरिये करिये श्रुति अवतंस ।।१।।
वंशीवट यमुनातट धीर समीर पुलिन सुख पुञ्ज ।
बिहरत रंग रँगीलो हित सौं मण्डल सेवाकुञ्ज ।। २ ।।
ललिता विशाखा चम्पक चित्रा तुंगविद्या रंगदेवी ।
इन्दुलेखा अरु सखी सुदेवी सकल यूथ हितसेवी ।।३।।
श्रीवनचन्द्र श्रीकृष्णचन्द्र श्रीगोपीनाथ श्रीमोहन ।
नाद विन्दु परिवार रँगीलो हितसौं नित छवि जोहन ।।४।।
नरवाहन ध्रुवदास व्यास श्रीसेवक नागरीदास ।
बीठल मोहन नवल छवीले हित चरणन की आस ।।५।।
हरीदास नाहरमल गोविन्द जैमल भुवन सुजान।
खरगसेन हरिवंशदास परमानन्द के हित प्रान ।। ६ ।।
गंगा यमुना कर्मठी अरु भागमती ये बाई ।
हित के चरण शरण हवै के इन दम्पति सम्पति पाई ।।७।।
दास चतुर्भुज कन्हर स्वामी अरु प्रबोध कल्यान ।
स्वामीलाल दामोदर पुहकर सुन्दर हित उर आन। ८ ।।
हरीदास तुलाधर और यशवन्त महामति नागर।
रसिकदास हरिकृष्ण दोऊ ये प्रेम भक्ति के सागर ।। ६ ।।
मोहन माधुरीदास द्वारिकादास परम अनुरागी ।
श्यामशाह तूमर कुल हित सौं दम्पत्ति में मति पागी ।।१०।।
श्रीहित शरण भये अरु अब हैं फेरहु जे जन हवै हैं ।
प्रेम भक्ति उर भाव चाव सौं वृन्दावन निधि पैहैं।।११ ।।
रसिक मण्डली में या तन कौं तीके ढंग लगावौ ।
दम्पति यश गावौ हरसावौ हित सौं रीझ रिझावी ।।१२।।
देवन दुर्लभ नर देही सो तें सहजहि पाई।
मन भाई निधि पाई सो क्यों जान बूझ बिसराई । । १३ ।।
एक अहंता ममता ये हैं जग में अति दुख दाई ।
ये जब श्रीजू की ओर लगे तब होत परम सुखदाई । । १४ ।।
मात तात सुत दार देह में मति अरुझै मति मन्दा ।
श्रीहितकिशोर कौ ह्वै चकोर तू लखि श्रीवृन्दावन चन्दा । ।१५ ।।