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श्रीप्रिया जी की 101 नामावली

श्री कृष्ण की अति प्रिय “श्रीप्रिया” जी की 101 नामावली

इस ‘प्रिया नामावली’ ग्रन्थ में नित्य-विहारिणी सर्वराध्य स्वामिनी के विहार परक नामों का ही रसात्मक तात्पर्य निहित है। इस नामावली के में श्री ध्रुवदास जी का यह भी मन्तव्य अनुमानित होता है कि नित्य-विहार के उपासक रसिक जन श्री प्रिया जी के इन्हीं नामों का गान-स्मरण करे

  1. श्री राधे
    नित्य विहारमय वृन्दावन-निभृत-निकुञ्ज की सर्वोपरि स्वामिनी, श्री कृष्ण की भी आराध्या।
  2. नित्य किशोरी
    वाल, पौगण्ड एवं कौमार अवस्थाओं से अतीत, नित्य किशोरावस्था सम्पन्न, सौन्दर्य-माधुर्य की एकमात्र निधि।
  3. वृन्दावन विहारिनी
    नित्य धाम श्री वृन्दावन में ही विहार करने वाली, नित्य एकरस प्रियतम-संयोगिनी।
  4. वनराज रानी
    नित्य धाम वृन्दावन की एकमात्र परम स्वतन्त्र अधिकारिणी स्वामिनी।
  5. निकुंजेश्वरी
    श्री वृन्दावन के निभृत निकुञ्ज में, जहाँ प्रिया-प्रियतम की कैशोर-लीला सम्पन्न होती है, उस निकुञ्ज धाम की सर्वोपरि एवं स्वतन्त्र साम्राज्ञी।
  6. रूप रंगीली
    रूप एवं रङ्ग (आनन्द) में रँगी हुई।
  7. छबीली
    छवि अथवा शोभा से युक्त।
  8. रसीली
    रसयुक्त अथवा रस-प्रदात्री।
  9. रस नागरी
    रस एवं रसिकता की मर्मज्ञ, रस-विलास-चतुरा।
  10. लाडिली
    प्रियतम एवं समस्त परिवार की लाड़-भाजन एवं अत्यन्त दुलारी।
  11. प्यारी
    प्रियतम की प्रेम-पात्र, प्रेमास्पदा।
  12. सुकुँवारी
    कोमल अंगों वाली।
  13. रसिकनी
    रासादि रस-क्रीड़ाओं में आनन्द लेने वाली, रसमर्मज्ञा।
  14. मोहिनी
    जिनकी रूप-छटा प्रियतम को मोहित करती रहती है।
  15. लाल मुखजोहिनी
    प्रियतम के मनोहर मुख-चन्द की चकोरि ।
  16. मोहन-मन-मोहिनी
    अन्य सबके मन को मोहित करने वाले प्रियतम श्री कृष्ण का भी विमोहन करने वाली।
  17. रति-विलास-विनोदिनी
    अपने प्रियतम के साथ दाम्पत्य -केलि में आनंदानुभव करने वाली।
  18. लाल-लाड़-लड़ावनी
    प्रियतम श्री लालजी को उनके मनोनुकूल सुखों का दान करके, तत्सुख रीति से उन्हें प्रसन्न रखने वाली।
  19. रंग-केलि बढ़ावनी
    निकुञ्ज भवन में प्रियतम के सुख के लिए कोक-केलि का विस्तार करने वाली।
  20. सुरत-चंदन-चर्चिनी
    एकान्तिक विहार काल में प्रियतम के प्रस्वेट पङ्किल चन्दन से लिप्त अङ्गों वाली।
  21. कोटि-कोटि दामिनी-दमकनी
    कोटि-कोटि असंख्य विद्युल्लताओं की चमक-दमक को भी जाज्ज्वल्यता प्रदान करने वाली अथवा कोटि-कोटि विद्युल्लता जैसी छबिमयी।
  22. लाल पर लटकनी
    प्रियतम की लाड़-भाजन होने के कारण लड़कान पूर्वक अपने ललित तनु को प्रियतम की देहयष्टि से विलम्बित करने वाली।
  23. नवल नासा-चटकनी
    प्रियतम श्री लाल को, रसलीन दशा से सचेत करने लिये उनकी नासिका के समीप अपनी कराड् गुलियों से मीठी सी चुटकी चटका देने वाली।
  24. रहसि पुंजे
    ऐकान्तिक आनन्द की निधि।
  25. वृंदावन प्रकाशिनि
    श्री वृन्दावन के गोप्य रसमय स्वरूप को अपनी रसमयी लीलाओं के द्वारा प्रकाशित करने वाली अथवा श्री वृन्दावन मात्र में अपने स्वरूप को प्रकाशित रखने वाली।
  26. रंग-विहार-विलासिनी
    श्री वृन्दावन के प्रेमानन्दमय विलास मे विलसने एवं प्रियतम को विलसाने वाली।
  27. सखी-सुख-निवासिनी
    जिनके स्वरूप में अपनी दासियों, सखियों किंवा सहचरियों का सम्पूर्ण सुख निहित है।
  28. सौंदर्य रासिनी
    अखिल एवं अनन्त सौन्दर्य-माधुर्य तथा लावण्य-राशि को सर्वदा धारण करने वाली।
  29. दुलहिनि
    नित्य नव-वधू।
  30. मृदु हासिनी
    जिसके मुखमण्डल पर निरन्तर मन्द मधुर एवं मृदु मुस्कान स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है।
  31. प्रीतम-नैन-निवासिनी
    सदा-सर्वदा प्रियतम के नेत्रों में बसी रहने वाली।
  32. नित्यानन्द-दर्शिनी
    जिसके स्वरूप में सदा नव-नव आनन्द का दर्शन होता रहता हो अथवा जो नित्य नये आनन्द का दर्शन कराती रहती है।
  33. उरजनि पिय-परसिनी
    जो अपने उरोजों के द्वारा प्रियतम के सुभग अङ्गों को स्पर्श दान करने में सहज उदार हो ।
  34. अधर-सुधारस बरसनी
    जो प्रेम विवश भाव से प्रियतम को सुखदान करने के लिये अपने अधरामृत रस का सदैव वर्षण करती है।
  35. प्राननिं रस-सरसिनी
    निरन्तर प्रियतम के प्राणों को रस से सिक्त रखने वाली।
  36. रंग-विहारिनि
    आनन्द रूपी विहार में रमण करने वाली अथवा विहार में रसरङ्ग की वृद्धि करने वाली।
  37. नेह-निहारनि
    जिनकी सहज दृष्टि में सदा प्रेम-स्नेह की ही वृष्टि होती है।
  38. पिय-हित-सिंगार-सिंगारिनी
    जो अपने प्रियतम के लिए वस्त्राभूषण आदि शृङ्गारों से अपने श्री अङ्गों को सुसज्जित करती हो, स्व-सुख के लिए नहीं, अपितु तत्सुखिता ही जिसके शृङ्गार का मूल हो ।
  39. प्यार सौं प्यारे कौं लै उर धारिनि
    जो अपने प्रियतम को हृदय पर धारण कर रस-दान करने में कुशल है ।
  40. मोहन-मैंने-विथा-निरवारनि
    सदैव अकाम रहने वाले मोहन श्याम के प्रेम-सकाम होने पर उनके हृदय की अनिवार्य प्रेम-व्यथा को अपने उदार रस-दान द्वारा निर्वारित करने में सदा सक्षम एवं समर्थ।
  41. जानि प्रवीन उदार सँभारनी
    जो परम निपुण प्रेमास्पद है, उदार शिरोमणि हैं। जो अपने जनो की सदा सर्वदा स्नेहपूर्वक ध्यान में रखने में समर्थ हैं।
  42. अनुराग सिंध
    प्रेम की अगाध समुद्ररूपा।
  43. स्यामा
    षोडश वर्षीया नव नव रूप, गुण, सौन्दर्य, लावण्य-निधि, रसनिथि नागरी ।
  44. भामा
    प्रियतम-प्रेम की प्रकाशिका।
  45. बामा
    प्रतिकूलता का रस-विधा में भी रसास्वादन करने कराने वाली प्रिया।
  46. भाँवती
    प्रियतम की अतिशय प्रिय लगने वाली।
  47. जुरवतिन-जूथ-तिलका
    परम सुन्दरी एवं नवयौवना सखियों के विशाल समूह की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी प्रिया।
  48. वृंदावन-चंद चंद्रिका
    वृन्दावन – विलासी श्री कृष्ण चंद्रमा रूपी की ज्यौत्ना रूपी प्रिया।
  49. हास-परिहास-रसिका
    हास्य विनोद की क्रीड़ा में आनन्द अनुभव करने वाली।
  50. नवरंगिनी
    सदैव नये-नये प्रकार के आनन्द विलास को प्रकट करने वाली।
  51. अलकावलि-छवि-फंदिनी
    जिसकी चुँघराले केश-राशि सौंदर्य छवि के पाश किंवा फंदे की भाँति है, जो सदैव लाल के मन का फँसाती है।
  52. मोहनी मुसिकिनि मंदिनी
    मन्द-मन्द मधुर मुसकान के द्वारा प्रियतम के मन को भी मोहित करने वाली।
  53. सहज आनन्द-कंदिनी
    सहज रूप से आनन्द की सार स्वरूपिणी।
  54. नेह कुरंगिनी
    बहेलिये के कर्ण-मधर नाट पर मोहित होकर अपने सर्वस्व देने वाली हरिणी की भाँति जो प्रियतम के प्रेम पर मोहित होकर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे, ऐसी रिझर्वार प्रिया।
  55. नैन विसाला
    जिसके कर्णायत नेत्र सुन्टर एवं सुदीर्घ हैं।
  56. महामधुर रस-कंदिनी
    उज्ज्वल शृङ्गार मूलक नित्य विहारमय दम्पति विलास रस की आधार स्वरूपा।
  57. चंचल चिंत-आकर्षिनी
    व्रज के बहु नायकत्त्व रस में लिप्त व्रज रस रसिक श्री कृष्ण को कान्त भाव से विरत करके, अपने रूप, प्रेम, आकर्षण के द्वारा नित्य-विहारमय ऐकान्तिक राधा-कान्त भाव में स्थिर कर देने वाली।
  58. मदन-मान-खंडिनी
    अपने निष्काम एवं उज्ज्वल प्रेम के द्वारा नेम-प्रधान काम के कामना-मूलक अभिमान का तिरस्कार एवं मान मर्दन कर देने वाली सहज सर्वोपरि प्रेम-मूर्ति ।
  59. प्रेम-रंग-रंगिनी
    कामादि भावों से विवर्जित विशुद्ध तत्सुखमय प्रेम के आनन्द में निरन्तर रँगी हुई।
  60. बंक-कटाक्षिनी
    जिनके नेत्रों की सहज चितवन भी रसदायक, पैनी एवं बाँकी है।
  61. सकल विद्या-विचक्षनी
    दाम्पत्य प्रेम की विलास कलाओं किंवा कोक-विद्या की समस्त कलाओं में सहज निपुणा।
  62. कुँवर अंक-विराजनी
    रसिक-किशोर प्रियतम की क्रोड़ में विराजमान होनेवाली, उनके प्रेम-सम्मान की एकमात्र अधिकारिणी।
  63. प्यार-पट-निवाजिनी
    प्रेम के पदाधिकार का आद्यन्त नि्वाह करने वाली।
  64. सुरत-समर-दल-साजिनी
    निकुञ्ज विहारवसर पर प्रियतम के साथ दाम्पत्य क्रीड़ा में हाव-भाव रूपी सैन्य को सुसज्जित रखने वाली।
  65. मृगनैनी
    हरिणी जैसे सुन्दर एवं विशाल डहडहे नेत्रों की शोभा से संपन्न।
  66. पिकबैंनी
    कोयल जैसी कर्ण-मधुर वाणी एवं स्वर से युक्त।
  67. सलज्ज अंचला
    जो पदे-पदे लज्जा से युक्त होकर दुकूल अञ्चल से मुख को ढँक लेती है।
  68. सहज चंचला
    नारी स्वभाव सुलभ चाञ्चल्य जिसके अङ्ग-अङ्ग में अधिकाधिक रूप से विराजमान् है।
  69. कोक कलानी-कुशला
    दम्पति विलास की केलि-कलाओं में जो सहज निपुण हैं।
  70. हाव-भाव चपला
    अन्तर स्थित प्रेम को प्रकट करने वाले इङ्गितो अर्थात हाव-भावों की व्यंजना में कुशल एवं उनके प्रदर्शन में सहज चञ्चला।
  71. चतुर्य चतुरा
    मूर्तिमान् चातुरी को भी अपनी चातुरी से पनि करने वाली।
  72. माधुर्य मधुर
    मूर्तिमान् माधुर्य को अपने प्रेम, रूप, लावण्य आदि विलज्जित कर देने वाली सहज माधुर्य-मूर्ति श्री राधा।
  73. बिनु भूषन भूषिता
    जिसका प्रत्येक अङ्ग सहज सौन्दर्य, माधुर्यमय है जो सौन्दर्य के लिए अलङ्कार किंवा आभूषणों की अपेक्षा न रखती हो अपितु जिसके सौन्दर्य से आभूषणादि भी सौन्दर्य-मण्डित हो जाते, ऐसी सहज शृङ्गारमयी नवल किशोरी।
  74. अवधि सौन्दर्यता
    सौन्दर्य की चरमसीमा, जिसके सौन्दर्य के समकक्ष कोई हो ही नहीं, तब अधिक कैसे होगा। अर्थात् असमोध्द्र रूप लावण्यमयी।
  75. प्राण-वल्लभा
    प्रियतम के प्राणों को उनके अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय अर्थात् जिस पर प्रियतम के प्राण न्यौछावर हों।
  76. रसिक-रवनी
    रसिक प्रियतम को भी अपने रूप मे रमा लेने वाली किंवा रसिक प्रियतम के प्रेम एवं रूप मे सदैव एक रस रमने वाली।
  77. कामिनी
    जिसके हृदय में प्रेम सुखार्थ प्रेम-कामनाओं का विस्तार होता रहता है।
  78. भामिनी
    प्रियतम के मन पर सहज रूप से अधिकार रखने वाली।
  79. हंस कल-गामिनी
    राजहंस पक्षी की भाँति मद-मन्थर गति से गतिशील प्रिया।
  80. घनश्याम अभिमान
    सघन जल-परित मेघों की भाँति परम सुन्दर श्याम वर्ण श्रीकृष्ण को भी अपने परम रमणीय रूप में रमा लन वाली, दामिनी द्युति-विनिन्दक गौरांगी, परम सुन्दरी।
  81. चंद-विपनी
    श्री वन्दाविपिन के स्वरूप प्रभाव को अपने ने सौन्दर्य एवं महामधुर विलास से प्रकाशित करने वाले चन्द्रमा रूपा शीतल प्रभा पुंज।
  82. मदन-दवनी
    अपने परमोज्ज्वल प्रेम प्रभाव से समस्त काम प्रवृत्तियों का सर्वथा दमन एवं विनाश कर देने वाली।
  83. रसिक-रवनी
    रसिक शिरोमणि प्रीतम श्री लाल जी को रमण सुख प्रदान करने वाली किवा रसिक प्रियतम के साथ रमण करने वाली।
  84. केलि-कमनी
    निकुञ्ज गीत दाम्पत्य क्रीड़ा को कमनीय स्वरूप प्रदान करने वाली रस-विदग्धा नागरी।
  85. चित्तहरनी
    अपने सहज सौन्दर्य एवं लावण्य से प्रियतम श्याम के चञ्चल चित्त को चुराने वाली।
  86. ललन-उर पर चरनधरनी
    तीव्र प्रेमताप से संतप्त प्रियतम के हृदय देश पर अपने शीतल सुभग चरण कमलों को स्थापित करके उन्हें शान्ति प्रदान करने वाली।
  87. छवि कंज-वदनी
    जिनकी श्री मुखछवि कमल के समान शोभा सम्पन्न है।
  88. रसिक नंदिनी
    आनन्द स्वरूप रसिक प्रीतम को भी अपने रसानन्द से आन्दोलित करने वाली अथवा रसिक प्रियतम से मिलकर आन्दानुभूति करने वाली।
  89. रूप-मंजरी
    नित्य विकास को प्राप्त होने वाली, रूप-कलिका-पुञ्ज।
  90. सौभाग्य-रसभरी
    प्रियतम का नित्य साहचर्य सुख-विलास प्राप्त, रसवती नित्य किशोरी प्रिया।
  91. सर्वांग सुन्दरी
    जो नख-शिख पर्यन्त समस्त अङ्ग-प्रत्यङ्गों में रूप, सान्दय, माधुर्य, सुकुमारता, लावण्या, हाव-भाव भङ्गिमा आदि की सौन्दर्य सीमा हैं।
  92. गौरांगी
    तप्त कञ्चनवत गौर वर्ण के सौन्दर्य-लावण्य से परिपूरित सुकुमार अंगों वाली गौरवर्णा मुग्धा प्रिया।
  93. रतिरस रंगी
    प्रियतम समागम से उद्भूत रति-रस से रँगी हुई अथवा दाम्पत्य-रति के रस से प्रियतम को रँग देने वाली।
  94. विचित्र कोक कला अंगी
    शास्त्र वर्णित कोक-कलाओं से भी विलक्षण अथवा अनुपम कोक अंगों में प्रवीण किंवा विचित्र कोक-कलाएँ भी जिनकी एक अंश कला के प्रतिमान् हो।
  95. छवि-चंद-वदनी
    शोभा रूपी चन्द्रमा के समान सुभग सीतल।
  96. रसिक लाल बंदिनी
    जिनकी अनुपम रसिकता के समक्ष शेखर श्री लाल जी भी नतमस्तक नक होकर चरण वन्दना करते हैं, ऐसी रसिक मौलि , नवल किशोरी, रस-विदग्धा प्रिया।
  97. रसिक रस-रंगनी
    रसिक प्रीतम के रस में रँगी हुई अथवा रसिक-प्रियतम को अपने रस में रंग देने वाली।
  98. सखिनु सभामंडिनी
    नित्य विहार जय श्री वृन्दावन की नित्य-किशोरी सखियों की सभा में सर्वोपरि सुन्दर होने से सबको भूषण-स्वरूपा।
  99. आनंद-नंदिनी
    आनन्द की मूल स्वरूपा अर्थात् आनन्द रूप प्रियतम को भी आह्लादित करने वाली।
  100. चतुर अरु भोरी
    चातुर्य की अवधि होकर भी हृदय की सरलता के कारण भोलेपन की भी जो प्रतिमूर्ति है।
  101. सकल सुख-रासि-सदने
    आश्रित जनों को, सखियों को एवं प्रेमास्पद प्रियतम को भी वांछित समस्त सुखों का दान करने में सदा-सर्वदा समर्थ एवं उदारता की परमावधि।

उपसंहार
दोहा- प्रेम-सिंधु के रतन ये, अद्भुत कुँवरि के नाम।
जाकी रसना रटै ‘ध्रुव’, सो पावै विश्राम ॥१॥

श्री ध्रुवदास जी कहते हैं कि कुँवरि किशोरी श्री राधा के ये नाम प्रेम रूपा श्री समुद्र के अद्भुत रत्न हैं। जिस भाग्यशाली भक्त की जिह्वा इन नामो का गान करेगी, वह निश्चित ही परम-शांति को प्राप्त करेगा॥१॥

ललित नाम नामावली, जाके उर झलकंत ।
ताके हिय में बसत रहैं, स्यामा-स्यामल कंत ॥२॥

ललित नामों की यह नामावली जिसके हृदय में झलकेगी, वही उस नाम क साथ उसके हृदय में प्रिया श्यामा एवं उनके कान्त प्रियतम श्याम सुन्नर सदैव निवास करेंगे॥२॥

|| • जय जय श्री राधे • ||

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