
(“श्रीकृष्णचरितामृतम्”- भाग 53 )
!! जब कन्हैया नें रामकथा सुनी…!!
बृजरानी दौड़ीं दौड़ीं आयीं ………बृजराज संकीर्तन में मग्न हैं …….बड़े प्रेम से – श्रीमन्नारायन नारायण नारायण , का उच्चस्वर से गान करते हुये पूर्ण भक्ति से ओतप्रोत थे ।साथ में ग्वाल मण्डली थी …..जो मंजीरा, ढोलक करताल के साथ संकीर्तन में सहयोग कर रही थी ।एकादशी की रात्रि में शयन कहाँ किया जाता है ……….उस समय तो जागरण होता है ….भक्तिभाव से इष्ट का स्मरण होता है ………आज एकादशी थी ……….बृजरानी भी बैठीं थीं संकीर्तन में …….गोपियाँ भी थीं ……….कन्हैया ऊँघ रहे हैं मैया की गोद में बैठे बैठे ।आहा ! कितनें सुन्दर लग रहे थे ऊँघते हुए भी ।बार बार गिर रहे थे ………बृजरानी उन्हें सम्भाल रही थीं ……..अर्धरात्रि भी तो हो चली है ………………वो उठ ही गयीं ………क्यों की लाला अब बैठ नही सकता था ……..बालक भी तो है …………कुछ देर तक तो उछलता रहा ……..ताली बजाकर नाचता रहा …….पर कब तक ? अब उसे नींद आरही थी …….तो बृजरानी लेकर चलीं गयीं भीतर महल में …………दो घड़ी ही बीती होगी …………कि बृजरानी बाहर आयीं …………घबड़ाई हुयी थीं ………..पसीनें आरहे थे माथे में ।बृजराज के कान में कुछ कहा …………….क्या ? बृजराज चौंक गए …………ग्वालों से इशारे में कहा …..संकीर्तन करते रहो …….मैं अभी आया …….ये कहते हुये महल की ओर बृजराज दौड़ पड़े थे ……पीछे बृजरानी ।कन्हैया सो गया है ………..गहरी नींद आगयी है अब उसे ।ये तो सो गया ? बृजराज नें यशुमति से कहा ।हाँ ……..ये सो गया…….पर मैं क्या बताऊँ आपको ? देखिये ना अभी भी मुझे डर लग रहा है …….कि कहीं कुछ अलाय बलाय न लगी हो इसे । पर हुआ क्या था ? कुछ बताओगी ?”लक्ष्मण ! मैं रावण को छोड़ूँगा नही ……रावण ! मैं तुझे मारूँगा !”सुनिये ! सुनिये ! अभी भी , नींद में ये वही बोल रहा है ।नन्दराय सुनते रहे …………कन्हैया नींद में भी बड़बड़ा रहे थे ।रावण ! मैं तुझे छोड़ूँगा नही …………….पर तुमनें ऐसा क्या सुनाया था इसे ? बृजराज नें यशोदा से पूछा ।मैने ? नन्दगेहनी बतानें लगीं थीं ।***************************************************मैं संकीर्तन से उठ गयी थी ……….क्यों की लाला ऊँघने लगा था ।मैनें उसे आकर सुला दिया ………और थपथपी देते हुए ……..”नारायण, नारायण नारायण” गुनगुना रही थी ।तभी – मैया ! ये नारायण कौन हैं ? उठ गया था लाला तो ।तू सोया नही ? वहाँ तो ऊँघ रहा था …………नही , मुझे नींद नही आरही …………..उठकर बैठ गया था ।फिर ? बृजराज नें पूछा ।फिर वही प्रश्न था उसका ……..ये नारायण कौन हैं ? बाबा नारायण नारायण क्यों करते रहते हैं ? ये नारायण कहाँ रहते हैं ? इसके प्रश्न कभी खतम हुए हैं जो आज हो जाते ?भगवान हैं ………..मैने इसे बताया ।फिर ऊँघने लगा …….तो मैं गोद में लेकर सुलानें लगी …………मैया ! कोई कहानी सुना ना ? धीमी आवाज में बोला था ……..मैने सोचा हाँ भगवान की कोई कथा सुना देती हूँ ……..मेरी वाणी भी पवित्र हो जायेगी ……..और एकादशी है ……..मेरे लाला के कान भी पवित्र हो जाएंगे ।मैया ! कोई कहानी सुना ना ? फिर बोला ।तो मैने इसे रामकथा सुनानी शुरू की …………..मुझे क्या पता था ये तो इस कथा को सुनते ही उठकर बैठ गया ।हाँ ……….अब सुना ……….आलती पालथी मारकर बोला ……अब सुना मैया !मैं हँसी …….और बड़े प्रेम से बोली …..श्रीराम चन्द्र भगवान की …..छोटे छोटे हाथों को उठाकर लाला नें जोर से कहा …….जय !एक राजा थे उनका नाम था – दशरथ ! अच्छा मैया ! कन्हैया बोले ।वो राजा थे अयोध्या के …..सबसे बड़े राजा ………….इत्ते बड़े राजा ? अपनें हाथों को फैलाकर पूछ रहे हैं कन्हैया ।हाँ…..इससे बड़े राजा …..चक्रवर्ती सम्राट ……….कन्हैया से चक्रवर्ती नही बोला गया ……पर “सम्राट” बोल दिया ।अच्छा मैया ! फिर ? फिर ………उनकी तीन रानियाँ थीं लाला ! बृजरानी नें केश की लटें लाला के मुख से हटाते हुये कहा । …..तीन रानियां ……कौशल्या, कैकेई और सुमित्रा ।अच्छा मैया ! आगे क्या हुआ ?आगे ! लाला ! इनके चार पुत्र हुए ………….चार कहते ही …ऊँगली में गिननें लगे कन्हैया……एक , दो , तीन, चार ।फिर चार ऊँगली मैया को दिखाते हुये बोले ………मैया ! ये चार ।हाँ ……लाला ! चार पुत्र थे दशरथ के ……….बड़े का नाम था – राम, फिर लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न ……..ये इनके नाम हैं ।अच्छा मैया !
जनकपुर में इनका विवाह हुआ……..बृजरानी नें अपनें लाला को चूमते हुए कहा ।मेरा विवाह कब होगा ? ये क्या प्रश्न था लाला का ……पर बालक के प्रश्न तो ऐसे ही होते हैं …………..होगा , होगा तेरा भी व्याह होगा …….मैया हँसी ।राम का विवाह हुआ सीता के साथ , लाला ! भरत का विवाह हुआ माण्डवी के साथ, लक्ष्मण का विवाह हुआ उर्मिला के साथ और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति के साथ ……………लाला ! विवाह करके ये सब अयोध्या लौट आये …………….अच्छा मैया ! फिर क्या हुआ ? आँखों को मलते हुए कन्हैया पूछ रहे हैं ।लाला ! अयोध्या में कुछ दिन के बाद राम को वनवास मिल गया ।क्यों ? क्यों वनवास मिला मैया ! वचन माँग लिये थे कैकई नें राजा दशरथ से …………उसी बात को लेकर राम को वनवास जाना पड़ा …………..इसके बाद कन्हैया गम्भीर ही बना रहा………पता नही उसे क्या हो गया था ……बृजराज सुन रहे हैं यशोदा मैया की बातें ।मैं सुनाती रही रामकथा लाला को ……वो सुनता रहा …….मैं उसकी आँखों में देख रही थी ………..नींद तो थी ही नही…….अजीब सी गम्भीरता आगयी थी उसके नयनों में ।एक राक्षसी आई लाला ! उस वन में ……………ये राक्षसी क्या होती है मैया ? ये प्रश्न भी गम्भीर होकर ही पूछा था ।बड़े बड़े दाँत, ….लाल लाल आँख……..सिर में सींग ………..पर मेरे ये सब कहनें का लाला के ऊपर कोई प्रभाव नही पड़ा ………वो डरा नही …..मैं तो ऐसे ही लाला को कुछ डरानें के लिये बोल रही थी ।आगे बता मैया ! आगे क्या हुआ ?उस राक्षसी के नाक कान काट दिए लक्ष्मण नें ……….ताली बजाई कन्हैया नें …….मैया ! अच्छा हुआ ………बढ़िया किया लक्ष्मण नें ………फिर क्या हुआ मैया !फिर ? फिर तो वो राक्षसी गयी अपनें भाई के पास ……..उसका भाई सबसे बड़ा राक्षस था……….वो उसको लेकर आई ।लाला ! उस राक्षस नें आकर सीता का हरण कर लिया ।सुनिये ! मैने इतना क्या कहा…….कन्हैया का मुख तो लाल हो गया उसकी आँखें लाल हो गयीं … क्रोध में आगया ……..देह कांपनें लगा ।इतना ही नहीं ………उठकर खड़ा हो गया ……और चिल्लाकर बोला -लक्ष्मण ! मेरा धनुष बाण लेकर आ ……मैं अभी रावण को मारूँगा ।सुनिये ना ! रावण नाम मैने बताया नही था ………..मैने तो मात्र राक्षस कहा था ……………….आप कुछ कहिये ना ! मैने उसी समय लाला को अपनी छाती से चिपका लिया ………..और थपथपी देती रही …………फिर ये सो गया था …….तब मैं आपके पास गयी ।मुझे डर लग रहा है ……….कहीं कुछ अलाय बलाय तो नही है ये …….कहीं कोई भूत प्रेत तो नही है ……….ये क्या हो गया ?बृजराज देख रहे हैं कन्हैया को …………….फिर सोते कन्हैया बड़बड़ाये …………लक्ष्मण ! मैं छोड़ूँगा नही रावण को …….मेरी सीता को वो कैसे ले गया ।बृजरानी रो पडीं ……बृजराज के गले लग कर रोईं ………..कुछ नही होगा …..सब नारायण भगवान ठीक करेंगें ……….ऐसा कहते हुये बृजराज बाहर गए …….बाहर संकीर्तन चल रहा है …..नारायण , नारायण नारायण ।मन्दिर में जाकर शालग्राम जी का जल लेकर आये …..और लाला के मुख में डाल दिया था …………..अब कुछ नही होगा लाला को ……..बृजरानी ! तुम अब यहीं रहो ……और सो जाओ तुम भी ……..इतना कहकर बृजराज चले गए थे संकीर्तन में ………….हाँ ………….इसके बाद कन्हैया एक बार नींद में मुस्कुराये ………अच्छा ! रावण मर गया लक्ष्मण ! अब सीता को ले आओ ।बस इतना बोले कन्हैया ।बृजरानी सो न सकीं थी पूरी रात ।तात ! रामावतार का आवेश था कन्हैया को ये ………..बस इतना ही बोले उद्धव…….आज उद्धव भी शान्त हैं …….श्रोता विदुर जी भी …………कन्हैया इनके हृदय में छा चुका है ।