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गोपीगीत

Gopi Geet – गोपीगीत

भगवान कृष्ण ने अधिष्ठात्री देवी श्री राधा रानी और वृन्दावन की गोपियों के साथ रास रचाया, भगवान् ने रास में जितनी गोपियां थी उतनी ही संख्या में अपने प्रति रूप प्रकट किये। रास में सभी गोपियों को ये अनुभव हो रहा था की भगवान सिर्फ मेरे साथ है। गोपियों को ये अनुभव उनके अभिमान में परिवर्तित हो गया। गोपियों के ये लगने लगा कि भगवान् कृष्ण मात्र हम से प्रेम करते है।
भगवान् कृष्ण गोपियों के अभिमान को देख कर स्वयं को गोपियों के मध्य से अन्तर्ध्यान कर लेते है , और किशोरी जी के साथ रास-स्थल से आगे चले जाते है, कुछ समय पश्चात् किशोरी जू को भी अभिमान हो जाता है , तब ठाकुर जी राधा रानी को छोड़ कर लुप्त हो जाते है।

गोपियां और किशोरी जी भगवान के विरह में व्याकुल हो तड़पने लगती है।

हम लोग भौतिक जगत की वस्तु के लिए तड़पने लगते है कहीं हमारी कोई प्रिय वस्तु खो जाए तो घण्टो तक तडपते है लेकिन यहां तो जीव और शिव अर्थात भगत और भगवान् का मिलन और विरह हो रहा है, जिसने जन्मो जन्मो तक केवल गोबिंद मिलन की आस में ही जीवन बिताये हो उसे किसी और भौतिक वस्तु की चाह नही होती और गोपिया तो स्वयं गोबिंद मिलन की प्यास में गोपी रूप में प्रगट भई है फिर उनके विरह का क्या वर्णन हो सकता है? जब कृष्ण विरह की वेदना अनंतगुना हृदय में लावा की नाइ (भांति)प्रचंड वेग से प्रवाहित होने लगे और ज्वारभाटा के रूप में प्रस्फुरित होकर एक विस्फोट के रूप में बहने लगे तो वह भाव गोपीगीत बन जाता है.. इसीलिए स्वयं गोपियन ने इस गोपीगीत को गाया है है और अपनी वेदना का अविरल प्रवाह किया है,गोपिया कहती है,


श्लोक – 1
Shlok – 1

जयति तेsधिकं जन्मना ब्रज:
श्रयत इन्द्रिरा शश्व दत्र हि!
द्यति द्दश्यतां दिक्षु तावका
स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते!!
jayati te ‘dhikaṁ janmanā vrajaḥ
śrayata indirā śaśvad atra hi
dayita dṛśyatāṁ dikṣu tāvakās
tvayi dhṛtāsavas tvāṁ vicinvate

O beloved, Your birth in the land of Vraja has made it exceedingly glorious, and thus Indirā, the goddess of fortune, always resides here. It is only for Your sake that we, Your devoted servants, maintain our lives. We have been searching everywhere for You, so please show Yourself to us.

” हे प्रिय ! यह जो बृज है यह ऐसे ही बृज नही बन गया है,आपके जनम लेने के कारण इस स्थान का महत्व इतना अधिक है,अर्थात गोबिंद यह बृज क्षेत्र जहाँ अनेकानेक जीव मुक्ति प्राप्त कर रहे है यह सब आपकी कृपा और यहां आपके जन्म लेने के कारण ही है, आप बैकुंठ, गोलोक, क्षीरसागर और अन्यान्य लोको में बिलकुल भी सुलभ नही हो अर्थात आपका दर्शन व् मिलन सम्भव नही है, यह तो आपकी अनुकंपा है की

आप केवल बृज में ही इतने सहज रूप से मिल जाते है,

जिनके चरण श्री लक्ष्मी जी अपने आँचल में वक्षस्थल के पास छिपा कर रखती है वही कमल चरण यहां ब्रजभूमि की ऱज़ में डोलते फिरते है,यह सब आपके यहा जन्म लेने के कारण और हम जैसे अधमीयो पर उपकार करने के लिए ही तो हुआ है, यहां श्री लक्ष्मी जी भी सेवा हेतु नित प्रतिदिन आने लगी है,जो श्री लक्ष्मी जी क्षीर सागर में नित आपके कमलाचरण पलोटति रहती है और किसी अन्य को इनके दर्शन का अधिकार भी नही देती इस बृज में आपकी सेवा के लिए घूमती रहती है यह आपके यहा जन्म लेने के कारण हुआ है,

आपने ही इस बृज को बैकुंठ गोलोक स्वर्ग और,
अन्य उच्च लोकों से भी उच्च बना दिया है.

लोकन कौ लोक मैंने एक ब्रज लोक देख्यौ,
ब्रजहूँ कौ तत्व श्री वृन्दावन धाम है,
वृन्दावन धाम हूँ कौ तत्व साधू-संतजन,
साधून कौ तत्व गोपी-ग्वालिनी कौ नाम है,
ग्वालिनी कौ तत्व प्यारो कृष्ण घनश्याम जहाँ,
यहाँ कृष्ण हूँ कौ तत्व श्री राधारानी जू को नाम है.

दयित दृश्यतां दिक्षु तावका
स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते
आपकी कृपा से बहुत से राक्षस योनि के जीव जैसे अघासुर,बकासुर,कालिया नाग और पूतना जैसे राक्षस भव से पार हो गए है, जो गति बड़े बड़े महात्माओं को नही मिलती वह इस ब्रज क्षेत्र में सभी को प्राप्त हो रही है,आप यहां जो लीलाये कर रहे है वह युगों युगों तक जीवमात्र को आनंद देने वाली है,

हम गोपिया जो अपना सर्वश्व लूटा कर, घर बार छोड़ कर ही नही अपितु अपने पति बच्चो सभी को भूलकर यहां वन में भटक रही है, केवल और केवल हे मनमोहन आपके दर्शनों के लिए ही,

हमने युगों युगों तक आपको पाने के लिए अनेकानेक तप किये,कष्ट सहन किये है विरहवेदना में अपने हृदय को तप्त किया है और आज हम आपको पाकर भी नही पा रही है, इस अर्धरात्रि में गहन वन में आपको ढूंढती हुयी यहां वहां भटक रही है, आपको हम पर करुणा नही होती क्या? आपने अपनी करुणा से अनेक अधमीयो को भी उच्च गतियां प्रदान की है फिर हमारे लिए इतने निष्ठुर क्यों बन गए हो,हमने केवल और केवल तुमसे स्नेह किया और कोई भाव किसी के प्रति कभी अपने हृदय में नही लाया यहां तक की अपने गृहस्थ जीवन को भी भूल गयी है,इतना सब त्याग कर हम आज यहाँ आपके निकट है फिर भी आप हम से छिप रहे है न जाने कहां अंतर्ध्यान हो गए है,

जैसे एक बछड़ा अपनी माता से बिछुड़ जाने पर तड़प उठता है और वन वन माँ माआ करता हुआ भटकने लगता है अश्रुधारा उसके नेत्रों से अविरल बहने लगती है और कभी वह मूर्छित हो जाता है ऐसी ही दशा हमारी हो रही है, हमे अपने तन की कोई सुध नही है न ही भूख प्यास की परवाह है हमे केवल और केवल आपसे मिलना है, हे माधव ! आप कहाँ हो? हम आपको पाने के लिए भटक रही है,
रे निरमोही, छबि दरसाय जा।कान चातकी स्याम बिरह घन, मुरली मधुर सुनाय जा।ललितकिसोरी नैन चकोरन, दुति मुखचंद दिखाय जा॥भयौ चहत यह प्रान बटोही, रुसे पथिक मनाय जा॥


श्लोक – 2
Shlok – 2

शरदुदाशये साधुजातस
त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा!
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका
वरद निघ्नतो नेह किं वधः!!
śarad-udāśaye sādhu-jāta-sat-
sarasijodara-śrī-muṣā dṛśā
surata-nātha te ‘śulka-dāsikā
vara-da nighnato neha kiṁ vadhaḥ

O Lord of love, in beauty Your glance excels the whorl of the finest, most perfectly formed lotus within the autumn pond. O bestower of benedictions, You are killing the maidservants who have given themselves to You freely, without any price. Isn’t this murder?

हे हृदयेश्वर हमारे प्राणधन ! हमारे हृदय में केवल आप ही निवास करते है,आप हमारे हृदय के स्वामी है, आप ही ने अपने नेत्र कटाक्षो से हमारा वध किया है,आपके नेत्र इतने नुकीले और घायल करने वाले है की हमारा हृदय इसकी पैनी धार से विदीर्ण अर्थात चिर गया है एक तो आपके विरह की वेदना ऊपर से इन नेत्रो द्वारा हृदय के विदीर्ण होने की पीड़ा हम तो मर ही जाएंगी केशव,केवल अश्त्रों शस्त्रो से मारना ही मारना नही होता है नेत्रो का मारण भी मृत्यु की पीड़ा देता है,

यह जो आपके नेत्र है जैसे शरद ऋतू के चंदमा की मनोहारी चांदनी की शोभा जैसे किसी सूंदर सरोवर पर दृश्यमान होकर उर सरोवर को अति आलोकिक बना देती है अर्थात बहुत दिव्य बना देती है ऐसेही यह आपके नेत्रो की सोभा की चांदनी से हमारा वक्ष स्थल विदीर्ण हो गया है, हम आपके बिना तड़प रही है कहि हमारे प्राणपखेरु उड़ नही जाए,हम आपके नेत्रो को जोकि अपनी सुंदरता से किसी को भी घायल कर देते है उन नेत्रों के दर्शन चाहती है,

हम सब आपके चरणों की दासी है और कोई शुल्क भी नही लेती अर्थात हम बिन मोल बिकानी है आपकी सेवा के लिए, हमे कोई उपहार या पारितोषिक नही चाहिए हम तो केवल आपके दर्शनों की प्यासी है, हम आपके नेत्रो की सुंदरता का आनंद लेना चाहती है हमे और कुछ भी प्रलोभन नही है,

प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय॥
जल बिन कमल, चंद बिन रजनी।
ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी॥
आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन,
बिरह कलेजो खाय॥
दिवस न भूख, नींद नहिं रैना,
मुख सूं कथत न आवै बैना॥
कहा कहूं कछु कहत न आवै,
मिलकर तपत बुझाय॥
क्यूं तरसावो अंतरजामी,
आय मिलो किरपाकर स्वामी॥
मीरां दासी जनम जनम की,
पड़ी तुम्हारे पाय॥


श्लोक – 3
Shlok – 3

विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा
द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात्!
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया
दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः!!
viṣa-jalāpyayād vyāla-rākṣasād
varṣa-mārutād vaidyutānalāt
vṛṣa-mayātmajād viśvato bhayād
ṛṣabha te vayaṁ rakṣitā muhuḥ

O greatest of personalities, You have repeatedly saved us from all kinds of danger —from poisoned water, from the terrible man-eater Agha, from the great rains, from the wind demon, from the fiery thunderbolt of Indra, from the bull demon and from the son of Maya Dānava.

गोपियाँ कहती है, हे चैतन्य स्वरुप माधव आप अपने नेत्रों के कृपा कटाक्ष से जड़ जीवों को भी सजीव करने वाले है फिर हम गोपियाँ जो जड़मति हो गयी है तुम्हारे विरह में हम पत्थर हो गयी है तुम अपने इन कमलनयनों से क्यों नही अपनी करुणा का अमृत वर्षण कर रहे क्यों नही अपने रूप का दर्शन हमे प्रदान कर रहे हो,

मेरे साँवरिया….
“जल्व़ा-ऐ-हुस्न दिखा जाओ, तो कोई बात बने,
मेरी नज़रों में समा जाओ, तो कोई बात बने,
आपकी सूरत नज़र आती है. धुँधली धुँधली,
पर्दा नज़रों से हटा जाओ, तो कोई बात बने.”

आपने अनेकानेक बार हम सब का रक्षण किया है, जब कालिया नाग के विष से सारी यमुना का जल विषाक्त हो गया तब आपने ही अपनी कृपा से हम सब ब्रिजवासिन की रक्षा की है, जब अघासुर अजगर बनकर सकल गोकुल वासियों को निगलना चाहता था तब भी आपने ही हमारी रक्षा की है, अनेक राक्षशों व्योमासुर,बकासुर इत्यादि से बचाया है और यही नही जब इंद्र कुपित हो गया और सकल बृजमंडल को डूबना चाहता था, भारी वर्षण,आंधी का प्रचंड वेग और विद्युत् की असहनीय गडगडाहट से हम सब को बचाया हे! गिरिधर यह सब आपकी कृपा का ही फल था हम सब आपके ऋणी है आपने कोई भी अवसर हमारी रक्षा का नही छोड़ा सदैव हम सब की रक्षा के लिए तत्पर रहे हो

हे मधुसूदन ! हम जीव आज इस घोर कलियुग में अनेकानेक वासनाओ के शिकार है, मोह,लोभ दम्भ,पापाचार, स्वार्थ,विषय, काम लोलुपता से ग्रसित अनंत दुर्गुणों से पीड़ित है,यही नही इन सब से ग्रसित न जाने कितने कुकृत्य में संलिप्त है, हे माधव! भाव सागर में डूबता हुए हम सब के तारणहार आप कहा छुप गए हो? ना केवल उस युग में आपने गोकुलवासियों की रक्षा की है आज भी हमे आपकी करुणादृष्टि और वरद हस्त का आशीर्वाद चाहिए आप का संग चाहिए, हे प्रभो ! हमारी रक्षा कीजिये


श्लोक – 4
Shlok – 4

न खलु गोपिकानन्दनो भवा
नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक्!
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
सख उदेयिवान्सात्वतां कुले!!
na khalu gopīkā-nandano bhavān
akhila-dehinām antarātma-dṛk
vikhanasārthito viśva-guptaye
sakha udeyivān sātvatāṁ kule

You are not actually the son of the gopī Yaśodā, O friend, but rather the indwelling witness in the hearts of all embodied souls. Because Lord Brahmā prayed for You to come and protect the universe, You have now appeared in the Sātvata dynasty.

हे परम सखा! यहां परम सखा कहने का अर्थ मित्र भी है और सखा का अर्थ सुख प्रदान करने वाला भी है अतः गोपियाँ कहती है, हे कृष्ण आप केवल यशोदा के पुत्र बन कर आये हो और केवल उन्ही को आनंद देने वाले हो ऐसा नही है, आप नन्द बाबा के घर जन्मे तो केवल उन्ही के सुख और आनंद के लिए नही बल्कि आप सभी बृजवासियों को सुख प्रदान करने के लिए आये है ऐसा भी नही है सच तो यह है की आप सकल ब्रह्मांड के जीवमात्र के कल्याण और सुख के लिए यह अवतरित हुए है, आप सभी प्राणियों के हृदय में निवास करने वाले हो,आप सभी जीवमात्र के अंतर्यामी है, उनके मन हृदय में निवास करने वाले है, आपने यह जन्म ब्रह्मा जी के कहने पर और जीवमात्र के कल्याण के लिए इस यदुकुल और बृज में जन्म लिया है, सबका अधिकार आप पर समान रूप से है आप किसी वर्ग विशेष के लिए नही है अर्थात आपको सभी से प्रेम का अधिकार है और सभी को आपसे प्रेम करने का समान अधिकार है


श्लोक – 5
Shlok – 5

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
चरणमीयुषां संसृतेर्भयात्!
करसरोरुहं कान्त कामदं
शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम्!!
viracitābhayaṁ vṛṣṇi-dhūrya te
caraṇam īyuṣāṁ saṁsṛter bhayāt
kara-saroruhaṁ kānta kāma-daṁ
śirasi dhehi naḥ śrī-kara-graham

O best of the Vṛṣṇis, Your lotuslike hand, which holds the hand of the goddess of fortune, grants fearlessness to those who approach Your feet out of fear of material existence. O lover, please place that wish-fulfilling lotus hand on our heads.

हे यदुवंशी! आप अपने प्रेमियों की सकल अभिलाषाएं पूर्ण करने वाले हो अर्थात जो आपकी शरण आ जाता है वह आपकी छत्रछाया पा लेता है फिर उसकी रक्षा और पालन आपका उत्तरदायित्व हो जाता है, जो व्यक्ति संसार के संताप का सताया हुआ है और आपकी शरण ले लेता है आप उसकी रक्षा करते है, अनेकानेक उद्धiरण है जहां आपने अपनी इस प्रवृति को सिद्ध किया है, फिर चाहे उदाहरणस्वरूप भक्त प्रह्लाद को लेलो या ध्रुव या गजेंद्र गज या कुब्जा शबरी और अहिल्या का दृष्टान्त ले लीजिये, ऐसा कोण सा जिव है जिस पर आपने उपकार नही किया जो भी जीव किसी भी भाव से आपकी शरण आया हो आपने अपनी शरणागति प्रदान कर अपने अभय दान से उन भक्तो का मान बढ़ाया है, बिभीषन जैसे रावण के भाई को आपने शरणागति दी है,आप इतने करुणामयी है की अपनी किरपा से कुपात्र को भी कृपापात्र बना देते हो,

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी।
मम पन सरनागत भयहारी।।
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना।
सरनागत बच्छल भगवाना।।

अर्थात हे प्रभु आप शरणागतवत्सल है और कोई भी पात्र या कुपात्र आपकी शरण हो जाता है तो वह आपका उत्तरदायित्व बन जाता है अर्थात आप उसके सब कुछ बन जाते है, जो लोग जन्म-मृत्यु रूप संसार के चक्कर से डरकर तुम्हारे चरणों की शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें तुम्हारे कर कमल अपनी छत्र छाया में लेकर अभय कर देते हैं । हे हमारे प्रियतम ! सबकी लालसा-अभिलाषाओ को पूर्ण करने वाला वही करकमल, जिससे तुमने लक्ष्मीजी का हाथ पकड़ा है, हमारे सिर पर रख दो।। आपने इतना कुछ किया इतने अधमियों को भी अपनी किरपा से भाव पार किया है फिर हमारी बारी इतनी देर क्यों लगा रहे हो, हम आपकी शरण है और आपके कर कमलो की छत्रछाया की अभिलाषी है, किरपा कर के अपने यह सुकोमल हस्त हमारे सर पर रख दीजिये, हम आपकी शरणागति चाहती है,


श्लोक – 6
Shlok – 6

व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां
निजजनस्मयध्वंसनस्मित!
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो
जलरुहाननं चारु दर्शय!!
vraja-janārti-han vīra yoṣitāṁ
nija-jana-smaya-dhvaṁsana-smita
bhaja sakhe bhavat-kińkarīḥ sma no
jalaruhānanaṁ cāru darśaya

O You who destroy the suffering of Vraja’s people, O hero of all women, Your smile shatters the false pride of Your devotees. Please, dear friend, accept us as Your maidservants and show us Your beautiful lotus face.

हे वीर शिरोमणि श्यामसुंदर ! तुम सभी व्रजवासियों का दुःख दूर करने वाले हो । आपका मुखचन्द्र इतना सोभायमान है जिसके दर्शन भर से ही सभी संताप दूर हो जाते है, पहले नेत्रो से वार किया, फिर करुणiहस्त की मांग है और अब मुखकमल की अर्थात गोपिया इतनी तृषित है की किसी भी प्रकार से प्रभु को पाना चाहती है वह एक झलक पाने को अति आतुर हो रही है मर रही है तड़प रही है अतिविह्वल हो रही है, विह्वल का अर्थ है प्रेम की तड़प में अत्यधिक रुदन अवस्था में, आपका मुख इतना सूंदर है की यदि एकपल के लिए आप हमे अपना दर्शन करवा दो तो हम अति सुख पाएंगी,

श्री हरिवंश किशोर लाडिले विनती कबहुँ विचारोगे
दीन दुखी भुज गहन कृपानिधि कोमल बाहं पसारोगे
निज मुख सत्य करौगे नातो सूल हिये का टारोगे
सब विधि पामर नीच निबल अति पोच पतित प्रतिपiरोगे
उमगत सहज कृपा कौ सागर लै लै नाम पुकारोगे
भोरी बिलपत द्वार दुखी तन करुणा कौर निहारऔगे

तुम्हारी मंद मंद मुस्कान की एक एक झलक ही तुम्हारे प्रेमी जनों के सारे मान-मद को चूर-चूर कर देने के लिए पर्याप्त हैं। आपकी मधुर मुस्कान से कोण सा ऐसा जीव है जो मोहित नही होता, सागरमंथन से निकले अमृत के बटवारे हेतु आपने जब मोहिनी रूप लिया तो आपकी मुस्कान से सभी राक्षसगण ही मोहित हो गए तो आपके इस रूप और इसकी मुस्कान हमारा हृदय चिर देती है इसमें हमारा क्या दोष है? हम तो आपकी मुस्कान की आपके अधरों से झरने वाले अमृत की एक एक बूँद के लिए तड़प रही है, जैसा की हमने आपको पहले भी कहा है की आप हमसे दूर न जाओ, हम आपकी वह दासी है जिसे कोई सांसारिक सम्पदा की लालसा नही है, हम तो बिन मोल की आपकी दासी है जो केवल और केवल आपकी मुस्कान मात्र का दर्शन चाहती है

मेरी पलकों को तेरे दीदार का
मेरे मोहन इंतज़ार रहता है
दिल के हर कोने में मेरे बस तुम्हारा ही प्यार रहता है
गुजर रहे है मेरे रात और दिन बस तुम्हारी याद में
हमें तो मनमोहन बस तुम्हारा ही प्यार याद रहता है

आपके मुख को निहारने के लिए आपकी सेवा में खड़ी है, हे हमारे प्यारे सखा ! हमसे रूठो मत, प्रेम करो । हम तो तुम्हारी दासी हैं, तुम्हारे चरणों पर न्योछावर हैं । जैसे भीलनी वर्षो तक आपकी प्रतीक्षा में तड़पती रही और बिन मोल सेवा भाव में लगी रही और आपने उन्हें अपने प्रेम से उन्हें तृप्त किया, उसी विरह पीड़ा को हम भी सहन कर रही है, जैसे अहिल्या वर्षो तक अपने उद्धार के लिए जड़वत पत्थर बनकर आपको पाने का इन्तजार करती रही हम सब भी आपके विरह में पत्थर हो गयी है, हमारा भी कल्याण करो, हम अबलाओं को अपना वह परमसुन्दर सांवला मुखकमल दिखलाओ।।

तेरी मंद मंद मुस्कनिया पे
बलिहार जाऊ रे , बलिहार सांवरे ॥ तेरी मंद..॥
तेरे नैन गजब कजरारे, मटके हैं कारे कारे
तेरी तिरछी से चितवनीया पे
बलिहार जाऊ रे , बलिहार सांवरे ॥ तेरी मंद..॥

तेरे केश बड़े घुंघराले, ज्यों बादल कारे कारे
तेरी कुंडल की झलकनिया पे
बलिहार जाऊ रे , बलिहार सांवरे ॥ तेरी मंद..॥

तेरी चाल अजब मतवाली, ज्यों लगाती प्यारी प्यारी
तेरी मधुर मधुर पैजनिया पे
बलिहार जाऊ रे , बलिहार सांवरे ॥ तेरी मंद..॥


श्लोक – 7
Shlok – 7

प्रणतदेहिनांपापकर्शनं
तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम्!
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं
कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम्!!
praṇata-dehināṁ pāpa-karṣaṇaṁ
tṛṇa-carānugaṁ śrī-niketanam
phaṇi-phaṇārpitaṁ te padāmbujaṁ
kṛṇu kuceṣu naḥ kṛndhi hṛc-chayam

Your lotus feet destroy the past sins of all embodied souls who surrender to them. Those feet follow after the cows in the pastures and are the eternal abode of the goddess of fortune. Since You once put those feet on the hoods of the great serpent Kāliya, please place them upon our breasts and tear away the lust in our hearts.

इस श्लोक में गोपी प्रभु के चरणों की बात करती है,कहती है हे नंदलाल! आपके यह चरण जिनके दर्शन मात्र से जिनकी ऱज़ मात्र से पापियों का उद्धार हो जाता है, हम उन चरणों के दर्शन चाहती है, तुम्हारे चरणकमल शरणागत प्राणियों के सारे पापों को नष्ट कर देते हैं।जैसे अहिल्या को जैसे ही आपके चरणों की ऱज़ उड़कर लगी जोकि वर्षो से शिला बनी आपकी किरपा चाहती थी पल में सजीव हो गयी, उसका पाप ताप सब मिट गया, आपके कमलाचरण अद्भुत है, वे समस्त सौन्दर्य, माधुर्यकी खान है और स्वयं लक्ष्मी जी उनकी सेवा करती रहती हैं । जो लक्ष्मी जी इन चरणों पर किसी भी बाह्य जीव की दृष्टि भी इन पर नही पड़ने देती है तुम उन्हीं चरणों से हमारे बछड़ों के पीछे-पीछे चलते हो अर्थात जो लीलाये आप बृज में कर रहे है ,यह असाधारण है, और हमारे लिए उन्हें सांप के फणों तक पर रखने में भी तुमने संकोच नहीं किया ।

आपने हम सब गोकुलवासियों के हित के लिए यमुना के विषाक्त जल में कूदकर कालिया नाग के मस्तक पर फण पर इन कोमल चरणों से नृत्य किया, आपने हम सब पर इतनी किरपा की है अर्थात कभी भी और कोई भी अवसर पर अपनी करुणा की कमी नही रहने दी है. तो फिर आप अब कहाँ छुप गए हो? हमारा ह्रदय तुम्हारी विरह व्यथा की आग से जल रहा है तुम्हारी मिलन की आकांक्षा हमें सता रही है। तुम अपने वे ही चरण हमारे वक्ष स्थल पर रखकर हमारे ह्रदय की ज्वाला शांत कर दो, हम सब आपसे विनती कर रही है की हमारा ये हृदय विरहाग्नि से तप्त हो रहा है, वेदना इतनी गंभीर हो गयी है की हमारी छाती फटने को तैयार है अब यह अग्नि हम सब को भस्म करने को आतुर है हम आपसे विनती कर रही है की आप अपने चंदन जैसे चरणों को हमारे वक्षस्थल पर रख कर हमारी वेदना शीतल कर दीजिये,


श्लोक – 8
Shlok – 8

मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया
बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण!
विधिकरीरिमा वीर मुह्यती
रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः!!
madhurayā girā valgu-vākyayā
budha-manojshayā puṣkarekṣaṇa
vidhi-karīr imā vīra muhyatīr
adhara-sīdhunāpyāyayasva naḥ

O lotus-eyed one, Your sweet voice and charming words, which attract the minds of the intelligent, are bewildering us more and more. Our dear hero, please revive Your maidservants with the nectar of Your lips.

हे कमल नयन! तुम्हारी वाणी कितनी मधुर है । तुम्हारा एक एक शब्द हमारे लिए अमृत से बढकर मधुर है । बड़े बड़े विद्वान उसमे रम जाते हैं। जैसे ही आपकी मधुर वाणी का श्रवण होता है तो कोई भी आप पर मोहित हो जाता है, जैसे वामनावतार में आपकी मधुर वाणी और वेश देखकर राजा बलि मोहित हो गया और बिना कुछ सोचे आपको वचन दे दिया, उसपर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं । आपकी वाणी इतनी मोहिनी है की किसी को भी अपने वश में कर लेती है तो फिर हमारा क्या दोष जो हम आपकी वाणी को सुनकर आप पर मोहित हो गयी है? तुम्हारी उसी वाणी का रसास्वादन करके तुम्हारी आज्ञाकारिणी दासी गोपियाँ मोहित हो रही हैं ।

हे दानवीर ! अब तुम अपना दिव्य अमृत से भी मधुर अधर-रस पिलाकर हमें जीवन-दान दो, छका दो।अर्थात आपका अधरामृत जिसे की वंशी नित्य प्रति पान करती है और मधुर मधुर स्वर उत्तपन करती है जिसकी स्वरनाद से त्रिलोकी मोहित हो जाती है हम सब उस अधरामृत को पाने के लिए मरी जा रही है, हम आपसे विनती कर रही है आप हमारे जीवन की रक्षा कीजिये,


श्लोक – 9
Shlok – 9

तव कथामृतं तप्तजीवनं
कविभिरीडितं कल्मषापहम्!
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं
भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः!!
tava kathāmṛtaṁ tapta-jīvanaṁ
kavibhir īḍitaṁ kalmaṣāpaham
śravaṇa-mańgalaṁ śrīmad ātataṁ
bhuvi gṛṇanti ye bhūri-dā janāḥ

The nectar of Your words and the descriptions of Your activities are the life and soul of those suffering in this material world. These narrations, transmitted by learned sages, eradicate one’s sinful reactions and bestow good fortune upon whoever hears them. These narrations are broadcast all over the world and are filled with spiritual power. Certainly those who spread the message of Godhead are most munificent.

हे प्रभो ! तुम्हारी लीला कथा भी अमृत स्वरूप है ।जैसे आपका स्वरूप आपका मुख मुस्कान वाणी कमलहस्त चरण सुख देने वाले है उसी तरह आपकी लीलाओं का चिंतन दर्शन व् श्रवण मंगल कारक है अर्थात विरह से सताए हुये लोगों के लिए तो वह सर्वस्व जीवन ही है। कथा के माध्यम से भी शब्दरूप माधव आपके दर्शन हो जाते है,ऐसे समय जब आप हमारे समक्ष उपस्थित नही है किन्तु कथाओ के माध्यम से उपस्थित हो जाते है तो यह सब भी हमारे विरह को शांत करता है, बड़े बड़े ज्ञानी महात्माओं – भक्तकवियों ने उसका गान किया है,

वह सारे पाप – ताप तो मिटाती ही है, साथ ही श्रवण मात्र से परम मंगल – परम कल्याण का दान भी करती है । वह परम सुन्दर, परम मधुर और बहुत विस्तृत भी है । जो भी जीव आपकी कथा अमृत का दान करते है अर्थात उन कथाओं का श्रवण गायन और पठान करते है वः धन्य है क्योंकि वः आपके शब्दरूप से दर्शन करवाने में समर्थ है,जो तुम्हारी उस लीलाकथा का गान करते हैं, वास्तव में भू-लोक में वे ही सबसे बड़े दाता हैं।।

नारद संहिता में स्वयम भगवान् ने यह कहा है,

“नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न वा।
मद्भक्ता: यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।”

हे नारद ! न तो मैं वैकुंठ में रहता हूँ और न योगियों के हृदय में, मैं तो वहाँ निवास करता हूँ, जहाँ मेरे भक्त-जन कीर्तन करते हैं, अर्थात् भजनों के द्वारा ईश्वर को सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। यहां भगवान् का कहने का तातपर्य यही है की में भजन,नाम सुमिरन और कथा के माध्यम से अति सुलभ हूँ और जहां यह सब होता है में वही रहता हु अन्यत्र कहि जाता ही नही अतः मुझे कथा में पाया जा सकता है,

जैसे संतजन भगवान् की महिमा का गुणगान करते है वैसे ही भगवान् भी उन्ही के आश्रय में सुगम रूप से मिल जाते है,श्रीमद तुलसी रामायण में जब श्री राम वन में विचरण करते हुए बाल्मीकि आश्रम में होते है तो वः पूछते है हे मुनिवर मुझे अब कहाँ रहना चाहिए? तब इन्ही भूरिदजन अर्थात संत ने वह स्थान या वह सूत्र बताये जहां प्रभु निवास करते है,


श्लोक – 10
Shlok – 10

प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम्!
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि!!
prahasitaṁ priya-prema-vīkṣaṇaṁ
viharaṇaṁ ca te dhyāna-mańgalam
rahasi saṁvido yā hṛdi spṛśaḥ
kuhaka no manaḥ kṣobhayanti hi

Your smiles, Your sweet, loving glances, the intimate pastimes and confidential talks we enjoyed with You — all these are auspicious to meditate upon, and they touch our hearts. But at the same time, O deceiver, they very much agitate our minds.

हे हमारे प्यारे ! एक दिन वह था, तुम्हारी प्रेम हँसी और चितवन तथा तुम्हारी विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाओं का ध्यान करके हम आनन्द में मग्न हो जाया करतीं थी। हे हमारे कपटी मित्र ! उन सब का ध्यान करना भी मंगलदायक है, उसके बाद तुमने एकान्त में हृदयस्पर्शी ठिठोलियाँ की और प्रेम की बातें की, अब वह सब बातें याद आकर हमारे मन को क्षुब्ध कर रही हैं।


श्लोक – 11
Shlok – 11

चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून्
नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम्!
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः
कलिलतां मनः कान्त गच्छति!!
calasi yad vrajāc cārayan paśūn
nalina-sundaraṁ nātha te padam
śila-tṛṇāńkuraiḥ sīdatīti naḥ
kalilatāṁ manaḥ kānta gacchati

Dear master, dear lover, when You leave the cowherd village to herd the cows, our minds are disturbed with the thought that Your feet, more beautiful than a lotus, will be pricked by the spiked husks of grain and the rough grass and plants.

हे हमारे प्यारे स्वामी ! हे प्रियतम ! तुम्हारे चरण, कमल से भी सुकोमल और सुन्दर हैं । जब तुम गौओं को चराने के लिये व्रज से निकलते हो तब यह सोचकर कि तुम्हारे वे युगल चरण कंकड़, तिनके, कुश एंव कांटे चुभ जाने से कष्ट पाते होंगे; हमारा मन बेचैन होजाता है । हमें बड़ा दुःख होता है।


श्लोक – 12
Shlok – 12

दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै
र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम्!
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु
र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि!!
dina-parikṣaye nīla-kuntalair
vanaruhānanaṁ bibhrad āvṛtam
ghana-rajasvalaṁ darśayan muhur
manasi naḥ smaraṁ vīra yacchasi

At the end of the day You repeatedly show us Your lotus face, covered with dark blue locks ofhair and thickly powdered with dust. Thus, O hero, You arouse lusty desires in our minds.

हे हमारे वीर प्रियतम ! दिन ढलने पर जब तुम वन से घर लौटते हो तो हम देखतीं हैं, कि तुम्हारे मुखकमल पर नीली-नीली अलकें लटक रहीं है और गौओं के खुर से उड़-उड़कर घनी धूल पड़ी हुई है। तुम अपना वह मनोहारी सौन्दर्य हमें दिखाकर हमारे हृदय को प्रेम-पूरित करके मिलन की कामना उत्पन्न करते हो।


श्लोक – 13
Shlok – 13

प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
धरणिमण्डनं ध्येयमापदि!
चरणपङ्कजं शंतमं च ते
रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन्!!
praṇata-kāma-daṁ padmajārcitaṁ
dharaṇi-maṇḍanaṁ dhyeyam āpadi
caraṇa-pańkajaṁ śantamaṁ ca te
ramaṇa naḥ staneṣv arpayādhi-han

Your lotus feet, which are worshiped by Lord Brahmā, fulfill the desires of all who bow down to them. They are the ornament of the earth, they give the highest satisfaction, and in times of danger they are the appropriate object of meditation. O lover, O destroyer of anxiety, please put those lotus feet upon our breasts.

भावार्थ:- हे प्रियतम ! तुम ही हमारे सारे दुखों को मिटाने वाले हो, तुम्हारे चरणकमल शरणागत भक्तों की समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली हैं, इन चरणों के ध्यान करने मात्र से सभी ब्याधायें शान्त हो जाती हैं। हे प्यारे ! तुम अपने उन परम-कल्याण स्वरूप चरणकमल हमारे वक्ष:स्थल पर रखकर हमारे हृदय की व्यथा को शान्त कर दो।


श्लोक – 14
Shlok – 14

सुरतवर्धनं शोकनाशनं
स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम्!
इतररागविस्मारणं नृणां
वितर वीर नस्तेऽधरामृतम्!!
surata-vardhanaṁ śoka-nāśanaṁ
svarita-veṇunā suṣṭhu cumbitam
itara-rāga-vismāraṇaṁ nṛṇāṁ
vitara vīra nas te ‘dharāmṛtam

O hero, kindly distribute to us the nectar of Your lips, which enhances conjugal pleasure and vanquishes grief. That nectar is thoroughly relished by Your vibrating flute and makes people forget any other attachment.

हे वीर शिरोमणि ! आपका अधरामृत तुम्हारे स्मरण को बढ़ाने वाला है, सभी शोक-सन्ताप को नष्ट करने वाला है, यह बाँसुरी तुम्हारे होठों से चुम्बित होकर तुम्हारा गुणगान करने लगती है। जिन्होने इस अधरामृत को एक बार भी पी लिया तो उन लोगों को अन्य किसी से आसक्तियों का स्मरण नहीं रहता है, तुम अपना वही अधरामृत हम सभी को वितरित कर दो।


श्लोक – 15
Shlok – 15

अटति यद्भवानह्नि काननं
त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम्!
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते
जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम्!!
aṭati yad bhavān ahni kānanaṁ
truṭi yugāyate tvām apaśyatām
kuṭila-kuntalaṁ śrī-mukhaṁ ca te
jaḍa udīkṣatāṁ pakṣma-kṛd dṛśām

When You go off to the forest during the day, a tiny fraction of a second becomes like a millennium for us because we cannot see You. And even when we can eagerly look upon Your beautiful face, so lovely with its adornment of curly locks, our pleasure is hindered by our eyelids, which were fashioned by the foolish creator.

हे हमारे प्यारे ! दिन के समय तुम वन में विहार करने चले जाते हो, तब तुम्हें देखे बिना हमारे लिये एक क्षण भी एक युग के समान हो जाता है, और तुम संध्या के समय लौटते हो तथा घुंघराली अलकावली से युक्त तुम्हारे सुन्दर मुखारविन्द को हम देखती हैं, उस समय हमारी पलकों का गिरना हमारे लिये अत्यन्त कष्टकारी होता है, तब ऎसा महसूस होता है कि इन पलकों को बनाने वाला विधाता मूर्ख है।


श्लोक – 16
Shlok – 16

पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा
नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः!
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः
कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि!!
pati-sutānvaya-bhrātṛ-bāndhavān
ativilańghya te ‘nty acyutāgatāḥ
gati-vidas tavodgīta-mohitāḥ
kitava yoṣitaḥ kas tyajen niśi

Dear Acyuta, You know very well why we have come here. Who but a cheater like You would abandon young women who come to see Him in the middle of the night, enchanted by the loud song of His flute? Just to see You, we have completely rejected our husbands, children, ancestors, brothers and other relatives.

हे हमारे प्यारे श्यामसुन्दर ! हम अपने पति, पुत्र, सभी भाई-बन्धु और कुल परिवार को त्यागकर उनकी इच्छा और आज्ञाओं का उल्लंघन करके तुम्हारे पास आयी हैं। हम तुम्हारी हर चाल को जानती हैं, हर संकेत को समझती हैं और तुम्हारे मधुर गान से मोहित होकर यहाँ आयी हैं। हे कपटी ! इसप्रकार रात्रि को आयी हुई युवतियों को तुम्हारे अलावा और कौन छोड़ सकता है।


श्लोक – 17
Shlok – 17

रहसि संविदं हृच्छयोदयं
प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम्!
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते
मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः!!
rahasi saṁvidaṁ hṛc-chayodayaṁ
prahasitānanaṁ prema-vīkṣaṇam
bṛhad-uraḥ śriyo vīkṣya dhāma te
muhur ati-spṛhā muhyate manaḥ

Our minds are repeatedly bewildered as we think of the intimate conversations we had with You in secret, feel the rise of lust in our hearts and remember Your smiling face, Your loving glances and Your broad chest, the resting place of the goddess of fortune. Thus we experience the most severe hankering for You.

हे प्यारे ! एकांत में तुम मिलन की इच्छा और प्रेम-भाव जगाने वाली बातें किया करते थे । ठिठोली करके हमें छेड़ते थे । तुम प्रेम भरी चितवन से हमारी ओर देखकर मुस्कुरा देते थे और हम तुम्हारा वह विशाल वक्ष:स्थल देखती थीं जिस पर लक्ष्मी जी नित्य निरंतर निवास करती हैं । हे प्रिये ! तबसे अब तक निरंतर हमारी लालसा बढ़ती ही जा रही है और हमारा मन तुम्हारे प्रति अत्यंत आसक्त होता जा रहा है।


श्लोक – 18
Shlok – 18

व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते
वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम्!
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां
स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम्!!
vraja-vanaukasāṁ vyaktir ańga te
vṛjina-hantry alaṁ viśva-mańgalam
tyaja manāk ca nas tvat-spṛhātmanāṁ
sva-jana-hṛd-rujāṁ yan niṣūdanam

O beloved, Your all-auspicious appearance vanquishes the distress of those living in Vraja’s forests. Our minds long for Your association. Please give to us just a bit of that medicine, which counteracts the disease in Your devotees’ hearts.

हे प्यारे ! तुम्हारी यह अभिव्यक्ति व्रज-वनवासियों के सम्पूर्ण दुःख ताप को नष्ट करने वाली और विश्व का पूर्ण मंगल करने के लिए है । हमारा ह्रदय तुम्हारे प्रति लालसा से भर रहा है । कुछ थोड़ी सी ऐसी औषधि प्रदान करो, जो तुम्हारे निज जनो के ह्रदय रोग को सर्वथा निर्मूल कर दे।


श्लोक – 19
Shlok – 19

यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष
भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु!
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित्
कूर्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः!!
yat te sujāta-caraṇāmburuhaṁ staneṣu
bhītāḥ śanaiḥ priya dadhīmahi karkaśeṣu
tenāṭavīm aṭasi tad vyathate na kiṁ svit
kūrpādibhir bhramati dhīr bhavad-āyuṣāṁ naḥ

O dearly beloved! Your lotus feet are so soft that we place them gently on our breasts, fearing that Your feet will be hurt. Our life rests only in You. Our minds, therefore, are filled with anxiety that Your tender feet might be wounded by pebbles as You roam about on the forest path.

हे श्रीकृष्ण ! तुम्हारे चरण, कमल से भी कोमल हैं । उन्हें हम अपने कठोर हृदय पर भी डरते डरते रखती हैं कि कहीं उन्हें चोट न लग जाय । उन्हीं चरणों से तुम रात्रि के समय घोर जंगल में छिपे-छिपे भटक रहे हो । क्या कंकड़, पत्थर, काँटे आदि की चोट लगने से उनमे पीड़ा नहीं होती ? हमें तो इसकी कल्पना मात्र से ही चक्कर आ रहा है । हम अचेत होती जा रही हैं । हे प्यारे श्यामसुन्दर ! हे प्राणनाथ ! हमारा जीवन तुम्हारे लिए है, हम तुम्हारे लिए जी रही हैं, हम सिर्फ तुम्हारी हैं


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