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फुलवारी कुण्ड और साहसी कुण्ड

फुलवारी कुण्ड – मुक्ता कुण्डके पास ही फुलवारी कुण्ड घने कदम्बके वृक्षोंके बीचमें स्थित है।

प्रसंग – कभी श्रीराधाजी सखियोंके साथ यहाँ पुष्प चयन कर रही थीं। अकस्मात् कृष्णने आकर कहा- तुम कौन हो? प्रतिदिन मेरे बगीचे के पुष्पोंकी चोरी करती हो। इतना सुनते ही श्रीमती राधिकाजीने डपटते हुए उत्तर दिया मुझे नहीं जानते, मैं कौन हूँ? यह सुनते ही कृष्ण अपने अधरॉपर मुरली रखकर बजाते हुए अपने मधुर कटाक्षोंसे राधाजीकी तरफ देखकर चलते बने। कृष्णको जाते देखकर राधिकाजी विरहमें कातर होकर मूर्च्छित हो गई। ललिताजीने सोचा इसे किसी काले भुजंगने से लिया है। बहुत कुछ प्रयत्न करनेपर भी जब वे चैतन्य नहीं हुईं, तो सभी सखियाँ बहुत चिन्तित हो गई। इतनेमें कृष्णने ही सपेरेके देशमें अपने मन्त्र तन्त्रके द्वारा उन्हें झाड़ा तथा श्रीमतीजीके कानमें बोले- मैं आय गयो, देखो तो सही ।’ यह सुनना था कि श्रीमती राधिकाजी तुरन्त उठकर बैठ गयीं तथा कृष्णको पास ही देखकर मुस्कराने लगीं। फिर तो सखियोंमें आनन्दका समुद्र उमड़ पड़ा। यह लीला यहीं हुई थी।


साहसी कुण्ड – फुलवारी कुण्डसे थोड़ी ही दूर पूर्व दिशामें विलास वट और उसके पूर्व में साहसी कुण्ड है। यहाँ सखियों राधिकाजीको ढाढ़स बंधाती हुई उनका कृष्णसे मिलन कराती थीं पास ही वटवृक्षपर सुन्दर झूला डालकर सखियाँ श्रीराधा और कृष्णको मल्हार आदि रागोंमें गायन करती हुई झुलाती थीं। कभी-कभी कृष्ण वहीं राधिकाके साथ मिलनेके लिए अभिसारकर उनके साथ विलास भी करते थे।

इस साहसी कुण्डका नामान्तर सारसी कुण्ड भी है। कृष्ण और बलदेव सदैव एक साथ रहते, एक साथ खाते, एक साथ खेलते और एक साथ सोते भी थे। एक समय यहाँपर दोनों भाई खेल रहे थे। यशोदा मैया दोनोंको झूलती हुई यहाँ आई और बड़े प्यारसे उन दोनोंको सारसका जोड़ा कहकर सम्बोधन किया। तबसे इस कुण्डका नाम सारस कुण्ड हो गया।

इसके पास ही अगल बगलमें श्यामपीपरी कुण्ड, बट कदम्ब और क्यारी

बट कुण्ड आदि बहुतसे कुण्ड हैं। यहाँ वट वृक्षोंकी क्यारी थी।

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मोती कुंड

।।राधे राधे।।
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मोती कुंड नंदगांव-ब्रज का कण-कण कान्‍हां की लीलाओं से भरा है आपको बताने जा रहा है ऐसे खास पेड़ों के बारे में जिनसे फल नहीं, बल्कि मोती झड़ते हैं। आज भी ब्रज आने वाले भक्‍त इन मोतियों को बटोरकर घर ले जाते हैं। माना जाता है कि इनसे घर में सुख समृद्धि और शांति का वास होता है।
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मथुरा में बरसाना और नंदगांव के बीच में मोती कुंड मौजूद है। यह कुंड तीन तरफ से पीलू के पेड़ों से घिरा हुआ है। इस पेड़ में मोती जैसे फूल होते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि इन पेड़ों को कान्‍हा ने नंदबाबा के दिए कीमती मोतियों को बोकर उगाया था।
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बरसाना के विरक्‍त संत रमेश बाबा बताते हैं कि गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र समेत कई ग्रंथों में इस महान कुंड और राधा-कृष्‍ण की सगाई का वर्णन है। गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला के बाद दोनों की सगाई हुई थी। सगाई के दौरान राधा के पिता वृषभानु ने नंदबाबा को उपहार में मोती दिए। तब नंद बाबा चिंता में पड़ गए कि इतने कीमती मोती कैसे रखें।
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श्रीकृष्‍ण चिंता समझ गए। उन्‍होंने मां यशोदा से लड़कर मोती ले लिए। घर से बाहर निकलकर कुंड के पास जमीन में मोती बो दिए। जब यशोदा ने कृष्‍ण ने पूछा कि मोती कहां है। तब उन्‍होंने इसके बारे में बताया।
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नंद बाबा भगवान कृष्‍ण के कार्य से नाराज हुए और मोती जमीन से निकालकर लाने को लोगों को भेजा। जब लोग यहां पहुंचे तो देखा कि यहां पेड़ उग आए हैं और पेड़ों पर मोती लटके हुए हैं। तब बैलगाड़ी भरकर मोती घर भेजे गए। तभी से कुंड का नाम मोती कुंड पड़ गया। माना जाता है कि श्रीकृष्‍ण और राधा के बीच सांसारिक रिश्‍ते नहीं थे, लेकिन नंदगाव का यह मोती कुंड आज भी दोनों की सगाई की गवाही देता है। आज भी ब्रज 84 कोस यात्रा के दौरान यहां लोग यहां पर मोती जैसे फल बटोरने आते हैं। यह डोगर (पीलू) का पेड़ है।पूरे ब्रज में कुछ ही जगह ये पेड़ हैं, लेकिन मोती जैसे फल सिर्फ मोती कुंड के पास मौजूद पेड़ में ही मिलते हैं।।
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मथुरा में बरसाना और नंदगांव के बीच में मोती कुंड मौजूद है। यह कुंड तीन तरफ से पीलू (डोगर) के पेड़ों से घिरा हुआ है। इस पेड़ में मोती जैसे फूल होते हैं। ऐसी मान्‍यता है कि इन पेड़ों को कान्‍हा ने नंदबाबा के दिए कीमती मोतियों को बोकर उगाया था।
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जय जय श्री राधे