
(“श्रीकृष्णचरितामृतम्”- भाग 50 )
!! “तेरे लाला नें माटी खाई”- हितप्रेम !!
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प्रेम की नदी चारों ओर बह रही है बृज मण्डल में ………
सबका प्रेम है कन्हैया के प्रति ……..ये जो शिकायत की भावना है …ये भी प्रेम का ही स्वरूप है …….तात ! प्रेम की गति टेढ़ी मेढ़ी होती है ।
“चोर कहना” , चोर कहकर मैया यशोदा से शिकायत करना उसके लाल की …….ये भी प्रेम है ………इसे कहते हैं – दर्शन प्रेम ।
“प्रिय” देखनें को मिलेगा इसलिये शिकायत लेकर आयी हैं …….और कोई उद्देश्य नही है …………..अब दूसरी शिकायत की है यहाँ ग्वाल – सखाओं नें कि …….”.मिट्टी खाई तेरे लाला नें” ।
ये भी प्रेम का एक रूप है ……..इस प्रेम को “हित प्रेम” कहते हैं ……वैसे तो प्रेम का स्वरूप ही “हित” है ……प्रिय के “हित”की भावना ही प्रेम कहलाता है…….पर ग्वाल सखाओं का ये शिकायत लेकर पहुँचना कि ….”तेरे लाला नें माटी खाई”……..इसमें पूर्ण हित ही है …..।
सख्य रस ……अपनें आपमें अद्भुत रस है…….इसमें कहीं छोटे बड़े की भावना नही है……..कहते हैं ना …..सख्य भाव तभी प्रकट होता है …..जब – बड़े छोटे का भेद मिट जाए ।
प्रारम्भ में ही मैने कह दिया है तात ! कि “प्रेम की नदी चारों ओर बह रही है बृज मण्डल में”…….इसलिये – मात्र गोपियों का ही प्रेम नही है ……सखाओ का भी अपना प्रेम है ……मर्कट भी अपना प्रेम प्रकट करते हैं ……वृक्ष भी प्रेम करते हैं अपनें कन्हैया से …..मोर …….इनका तो ऐसा अद्भुत प्रेम है ………कि श्याम सुन्दर मोर मुकुट धारी ही बन गए ।
यमुना का अपना प्रेम है ……….आकाश का अपना प्रेम है …..बादलों का भी अपना प्रेम है …….इस तरह सब अपनें अपनें ढंग से प्रेम प्रकट करते हैं इस नन्दनन्दन के प्रति ……अद्भुत है ये सब ।
और मैया यशोदा ?
आहा ! इनका तो लाला को छड़ी लेकर पीटना भी “हितप्रेम” के अंतर्गत ही आता है ।
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मैया ! मैया ! मैया !
ग्वाल सखा उस दिन दौड़े दौड़े आरहे थे मैया यशोदा के पास ।
दाऊ, मनसुख, मधुमंगल, भद्र , तोक आदि सब दौड़ पड़े थे ।
अरे ! क्या हुआ ? सुबह से ही हल्ला मचाना शुरू तुम लोगों का ……
क्या हुआ ? बृजरानी रसोई से आईँ और पूछा ।
“मिट्टी खाई लाला नें”……साँस लेते हुए बोला मनसुख ।
नही मैया ! मिट्टी ही नही खाई ……..मिट्टी की ढ़ेर में बैठ गया था ….”इत्ती मिट्टी”……….मधुमंगल हाथ को फैलाकर बता रहा है – मैने मना किया उसे ……..पर जिद्दी हो गया है बहुत …….मानता ही नही ।
भद्र आगे आया…….वो कैसे पीछे रहता……मैया ! तू ही तो कहती है ना ….पेट में कीड़े पड़ते हैं मिट्टी खानें से ……..मैने उससे ये भी कहा ……पर नही माना ।
तभी पीछे से आगये थे कन्हैया…….सबकी ओर देखा ……….सबके मुख में देखा ……समझ गए कि मेरी शिकायत कर दी गयी है ।
“इत्ती बड़ी माटी की डली थी…पूरा खा गया” ….मनसुख कन्हैया की ओर देखते हुए फिर बोला मैया से ।
कन्हैया नें सिर झुका लिया ……………पर मनसुख की बात जब खतम हुयी तब एक बार मैया के मुख में देखा था ………मैया का मुख आज लाल हो गया है क्रोध से ……….पता नही क्यों मैया नें आज की बात को गम्भीरता से ले लिया था …………और क्यों न ले ……मिट्टी खानें से उसके लाला का स्वास्थ भी तो बिगड़ सकता है ………और इतनें उपद्रव की छूट मैया दे भी कैसे सकती है जी ।
छड़ी उठा ली आज मैया नें ……..कन्हैया नें सोचा भी नही था कि मेरी मैया मुझे पीटनें के लिये छड़ी उठा लेगी ।
हाँ …..उठा ली थी छड़ी ………ग्वाल सखा थोडा डर गए थे ………कन्हैया ? कन्हैया तो डर में मारे कांपनें लगे थे ……..
ओ ! मर्कट बन्धु ! कन्हैया को छड़ी दिखाती हुयी बोलीं ।
सजल नयन हो गए कन्हैया के ……….पर आज, आज मैया इन सब के बहानों में आनें वाली नही है ।
तेनें मिट्टी खाई ? गम्भीर होकर पूछ रही हैं …….छड़ी दिखाते हुए पूछ रही हैं …….बोल ! मिट्टी खाई ?
कन्हैया रोनें लगे……नही नही…….जोर जोर से रोनें लगे ….ताकि मैया उसे छोड़ दे …….पर आज मैया छोड़नें के मूड में लगती नही है ।
बोल……रो मत ………अब ये तेरा रोना धोना मेरे आगे नही चलेगा …
बोल …..मिट्टी खाई है तेनें ?
सिर हिलाकर मना किया ………..पर रोते हुए ।
मुँह से बोल …………..मिट्टी खाई ? मैया नें फिर पूछा ।
नहीं ……..कन्हैया बोले …….”नही” ।
फिर ये तेरे सखा क्यों कह रहे हैं कि – तेनें मिट्टी खाई ?
झुठ बोल रहे हैं……….ये भी चिल्लाकर बोले थे ………
सब मुझ से चिढ़ते हैं………हाँ ये सब मुझ से चिढ़ते हैं ………इसलिये झुठ बोल रहे हैं …….कन्हैया नें भी बोल दिया ।
हाय ! झूठा कन्हैया ! मनसुख बोला …..मैया ! ये झुठ बोल रहा है ……मैं ब्राह्मण हूँ झुठ नही बोलुँगो……इसनें मिट्टी खाई है ।
अब बोल ? मैया नें फिर छड़ी दिखाई ।
इसको मैने माखन नही दिया था कल ………इसलिये ये झूठ बोल रहा है …..कन्हैया हिलकियों से रो रहे थे ।
क्या होगया है आज यशोदा मैया को ……..इतना क्रोध अपनें लाला के प्रति ……………
दाऊ ! तू बोल ! इसनें मिट्टी खाई ?
क्रोध में भरकर दाऊ से पूछा मैया नें …….तो दाऊ भी डर गए ………उन्हें लगा क्या बोलूँ ? सच बोलूँ तो अपना लाला पिटेगा ……और झुठ बोलूँ तो मैं पिटूँगा ………..
दाऊ सोच में पड़ गए थे ।
तभी कन्हैया नें ही आगे बढ़कर कहा ………….
अपनें पुत्र पर विश्वास नही है ……तो मेरे मुख में ही देख ले मैया !
अगर मिट्टी खाई होगी तो मुँह में लगी तो होगी ना !
अच्छा मुख खोल !
मैया भी आज कठोर बन गयी हैं ………….खोल मुख …….देखूंगी मैं तेरे मुख में ………..मिट्टी खाई है तो लगी तो होगी ।
अब कहाँ लगी होगी ? मनसुख बोला ।
मैया नें लाल लाल आँखों से कन्हैया को देखा ……….फिर बोलीं ….सुना नहीं …….मुख खोल ।
रोते हुए कन्हैया नें मुख खोला – अरे ! ये क्या …………मैया यशोदा तो मुख देखते ही कांपनें लगी थीं………..कन्हैया अभी तक रो रहे थे ……वो चुप हो गए ……..मैया मुख में देख रही है ………माथे पे पसीना आनें लगे मैया के ………..अरे ये क्या ! हाथ जोड़ लिये मैया नें …….
हँस गया कन्हैया ……………कन्हैया हँसता है तो उसकी योग माया को अवसर मिल जाता है ………मिल गया अवसर माया को ।
मैया थोड़ी देर तक देखती रही कन्हैया के मुख में ……..सह्य न हुआ ये सब तो .मूर्छित होकर गिर पड़ी थी मैया यशोदा ।
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श्याम के छोटे से मुख में सब कुछ दिखाई दे गया था बृजरानी को ।
सारी सृष्टि देख ली थी मैया नें …………सब कुछ ……जीव , काल, प्रारब्ध, और उसके संचालक, कारण तत्व, प्रकृति , महत्, अहंकार , मन , इन्द्रियां, त्रिगुण ……….ये सब नाम मैया को पता नही थे …….पर उसनें ये सब देखा …….हाँ मैया ही कहती है – जब वो लाला के मुख में ये सब देख रही थी ….उस समय उस उस तत्व के देवता उसे इनका नाम भी बता रहे थे ………..इसका मतलब देवता भी मैया नें देखे ।
वायु, अग्नि, आकाश, वरुण, इन्द्रादि ……सब दीखे ………महानदी, महासागर, महाद्वीप पर्वत, कानन ……सब देखे मैया नें ……..।
अनन्त ब्रह्माण्ड देखे, उन अनन्त में अपना ब्रह्माण्ड भी देखा ……….अपनें ब्रहमाण्ड में पृथ्वी भी दीखी …पृथ्वी में भारत वर्ष भी देखा …..भारत वर्ष में बृजमण्डल भी ……बृज में भी गोकुल महावन भी मैया को कन्हैया के मुख में ही दिखाइ दिया था ।
इतना ही नही तात ! मुख में मैया नें ये भी देखा कि ………छड़ी लेकर स्वयं ये खड़ी हैं …..और सामनें कन्हैया रो रहा है ……ये भी मुख में ही देखा ……….।
मूर्छित हो गयीं थीं बृजरानी ………………
उद्धव बोलते हैं……..महाभारत में अर्जुन को भी विराट दिखाया था श्री कृष्ण नें ………..पता है तात ! अर्जुन , इतना वीर ……….वो भी डर गया …काँप गया …………पसीने से नहा गया था ।
ये तो बेचारी ममता की मारी ……साक्षात् वात्सल्य रूपा यशोदा मैया हैं ……….मूर्छित हो गयीं …..माधुर्य की उपासिका मैया …..ऐसे भयानक ऐश्वर्य को कैसे सम्भाल पातीं ।
मैया ! मैया ! मैया !
हिला कर देख रहे हैं मैया यशोदा को , कन्हैया ।
उठ मैया ! मैया भूख लगी है, उठ ।
अचेतन मन में भी वात्सल्य छा जाता है माताओं के …………फिर ये तो यशोदा मैया हैं ……….जैसे ही सुना ……….”भूख लगी है मैया” ।
मूर्च्छावस्था से भी उठ गयीं …….लाला ! लाला ! बाबरी की तरह मैया अपनें लाला को छू रही है …….फिर एकाएक – लाला ! मुँह खोल …….मुख खोल ……कन्हैया नें मुँह खोला …………देखती हैं …..पर अब तो कुछ दिखाई नही दे रहा ………..।
तू भगवान है ? मैया पूछती हैं ।
भूख लगी है दूध पीयूँगा ………चिल्लाकर बोले ।
मैया नें तुरन्त अपनी गोद में कन्हैया को लिया …..और मुख चूमते हुए अपनें वक्षःस्थल से लाला को लगा लिया ……..लाला दूध पीनें लगे ।
“कोई सपना देखा होगा”……….मैया सोच रही हैं ……..ये तो मेरा लाला है …..कोई भगवान थोड़े है !
तात विदुर जी ! अद्भुत है ये बृज, माधुर्य ही माधुर्य है जहाँ ।
ऐश्वर्य दिखाई भी दे तो उसकी ओर से मुँह फेर लेते हैं यहाँ ।