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पापमोचिनी एकादशी कब है ?

पापमोचिनी एकादशी : 5 अप्रैल  शुक्रवार

पापमोचनी एकादशी चैत्र मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। पाप का अर्थ है अधर्म या बुरे कार्य और मोचनी का अर्थ है मुक्ति पाना। तो पापमोचनी एकादशी पापों को नष्ट करने वाली एकादशी है। यह व्रत व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिये मोक्ष के मार्ग दिखता है। इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी का पूजन करने से अतिशुभ फलों की प्राप्ति होती है।

एकादशी का व्रत करते क्यों है ?

आएये जानते है एकादशी व्रत करते क्यों है ? 

भगवान् श्रीकृष्ण के भक्त भी एकादशी, जन्माष्टमी, रामनवमी, गौर पौर्णिमा, नरसिंह जयंती, व्यास पूजा या और अन्य वैष्णव तिथि को उपवास करते है, व्रत रखते है। इसके पीछे उनका क्या उद्देश्य होता है ? वस्तुतः भक्तोंकी कोई भी भौतिक कामना नही होती । भक्त अपने आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह व्रत करते है ।

व्रत का पालन करना यह मूल सिद्धांत न होकर, भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा बढाना यह कारण है । उपवास करनेसे मन शुद्ध होता है, मन को वश में करके भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा बढाना यह कारण है । मन को वश में करके भगवान श्रीकृष्ण की सेवा उत्तम प्रकारसे करने के लिए उपवास सहायक होता है। भगवान श्रीकृष्ण को एकादशी का व्रत सर्वाधिक प्रिय है अतः प्रत्येक वैष्णव जन को एकादशी करनी ही चाहिए।

अगली सुबह सूर्योदय से 10:18 के मध्य

पारण का मतलब होता है की व्रत की कब समाप्ति करनी है ! इसमें अन्न का कोई भी प्रसादी ग्रहण करे ! जैसे की चावल रोटी या अन्य कोई भी व्यंजन ! उसे पहले ठाकुर जी को अर्पित करे उसके बाद ग्रहण करे 

व्रत की विधि

पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो व्रत रखना चाहते हैं, उन्हें दशमी को एक बार भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में व्रत रखने वाले बिना जल के रहना चाहिए। अगर व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि को यजमान को भोजन करवाकर उचित दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें तत्पश्चात भोजन करें। ध्यान देने वाली बात यह है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो यह एकादशी का व्रत रख रहे हैं उन्हें अपने जीवनसाथी के साथ इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए इससे अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

व्रत के नियम 

व्रत-उपवास करने का महत्व सभी धर्मों में बहुत होता है। साथ ही सभी धर्मों के नियम भी अलग-अलग होते हैं।
01. पापमोचनी एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
02. व्रत के दिन सूर्योदय काल में उठें, स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
03. संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
04. उनकी प्रतिमा के सामने बैठकर श्रीमद भागवत कथा का पाठ करें।
05. एकादशी व्रत की अवधि 24 घंटों की होती है।
06. एकाद्शी व्रत में दिन के समय में श्री विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए।
07. दिन व्रत करने के बाद जागरण करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है।
08. इसलिए रात्रि में श्री विष्णु का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए।
09. द्वादशी तिथि के दिन प्रात:काल में स्नान कर, भगवान श्री विष्णु कि पूजा करें।
10. किसी जरूरतमंद या ब्राह्मणों को भोजन व दक्षिणा देकर व्रत का समापन करें।
11. यह सब कार्य करने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए।

व्रत की कथा

भविष्य पुराण की कथा के अनुसार भगवान अर्जुन से कहते हैं, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा। हे प्रभु! यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने में पाप कर्म करता है वह उससे कैसे मुक्त हो सकता है।
राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या पूरे लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नाम की अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उनपर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु प्रयत्न करने लगी।
कामदेव भी उस समय उस वन से गुजर रहे थे। इसी क्रम में उनकी नजर अप्सरा पड़ी। वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयत्न में सफल हुई और ऋषि वासना के प्रति आकर्षित हो गए।
काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण-गमन करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं। तब उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय-विनय करने लगी।
मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि-पूर्वक चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनके पाप नष्ट हो गए। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ। जिसके बाद वह अप्सरा स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गई।

एकादशी सेवा

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