प्रोत्तप्त शुद्ध कनकच्छवि चारूदेहां, प्रोधत्प्रवाल निचय प्रभ चारू चेलाम् । सर्वानुजीवनगुणोज्ज्वल भक्तिदक्षां, श्री राधिके तव सखीं कलये सुदेवीम्॥
जिनकी अंगकांति सुतप्त शुद्ध सुवर्ण छवि के समान है, प्रकृष्ट रूप से सुशोभित प्रवाल समूह के कांतिमय वस्त्रों का धारण करती है, समस्त भक्तों की अनुजीवन स्वरूपा उज्ज्वल भक्ति में जो चतुर हैं, हे स्वामिनी राधिके! आप उस सखी श्री सुदेवी जी को मैं प्रणाम करती हूँ।
शरीर की चमक : पद्मकिंजल्क कांतिमयी
वस्त्रों की चमक : लालिमा युक्त
सेवा : जल सेवा
वस्त्रों का रंग : जवापुष्प रंग के
आयु : 14 वर्ष 2 मास 4 दिन
कुंज निवास : वसन्त सुखद नामक हरी कांतिमय
भाव : वाम प्रखरा नायिका
माता का नाम : करुणा
पिता का नाम : रंगसार
पति का नाम : वक्रेक्षण के छोटे भाई
ग्राम : सुनहरा गाँव
यूथ की आठ सखियाँ : (यह रंगदेवी जी की जुड़वां बहिन है ) 1.कावेरी, 2.चारूकबरी, 3. सुकेशी, 4.मञ्जुकेशिका, 5. हारहीरा, 6.हारकण्ठी 7. हारवल्ली, 8.मनोहरा।
विशेष गुण : पशु पक्षियों की भाषा समझने में माहिर।शुक सारी को शिक्षा देनेवाली। नौकाचालन में दक्ष
सुदेवी सखी जी की सेवा
ये निरंतर अपनी प्रिय सखी श्री राधा के निकट रहती है तथा उनके केश संस्कार,नेत्रों में अंजन लगाना तथा अंग संवाहन आदि सेवाएं करती है।
ये शुक सारि(तोता मैना) को श्री राधा कृष्ण के गुणों की शिक्षा प्रदान करने में सुदक्ष।
नौका के खेल अर्थात नौका को गहरे पानीमें ले जानेमे , अथवा तेजीसे नौका चलानेवाले व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा इत्यादि करने में परम् सुदक्ष।
शगुन शास्त्र अर्थात ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत शुभ और अशुभ चिन्हों की पद्धति को जानने में निपुण।
पशु पक्षियो की भाषा समझनेमें निपुण।
चंद्रोदय के समय खिलनेवाले पुष्पो को पहचानने में निपुण।
अग्निविद्या में निपुण।अर्थात सभी अवस्थाओं में अग्नि प्रज्ज्वलित रखने,आतिशबाज़ी तथा रौशनी की व्यवस्था करने क़मे निपुण ।
तेल मर्दन करने में अति कुशल है।
सुदेवी जी अपने अनुगत सखियों को कुल्ला के लिए पत्तों द्वारा बनाए जानेवाले पीकदान और पुष्पो द्वारा बनाए जानेवाले तकिये तथा गद्दों को प्रस्तुत करने की शिक्षा प्रदान करती है।
सुदेवी जी बसंती रंग की साडी पहनती है । यह सखी प्यारी जी के नैनो मे काजल लगाती है । और प्रिय – प्रियतम की नजर उतारती हैं। ये सब आठों सखियाँ हर क्षण प्रिया-प्रियतम के मुख मंडल तथा उनके रुप माधुरी को देख-देख कर जीती हैं। प्रिया-प्रियतम का श्रीमुख चंद्र देखना ही इनका आहार है, जीवन है।
श्री राधा के अष्ट प्रमुख सखियों की चर्चा आज विश्राम हुई
जो कपूर चन्दन मिश्रित मनोरम केसर की अंगकांति से सुशोभिता है, पीत छवि के वस्त्र धारण करने से जिनकी प्रचुर कांति फैल रही है, हे स्वामिनी! जो आपके समान बुद्धिमती होकर सर्वत्र आदूत होती है, आपकी उन प्रियसखी श्रीतुंगविधा जी को में प्रणाम करती हूँ।
ये युगल का मिलन कराने में विशेष कुशल तथा श्री कृष्ण की विश्वास पात्री है।
गन्धर्व विद्या की आचार्य पदवी पर आरूढ़ तुंगविद्या जी रसशास्त्र,नीतिशास्त्र, नाट्य शास्त्र,नाटक आदि में पारंगत है।
सुसंगत कहानी सुनाने मे पारंगत है।
संगीत की राग रागिनियों के गान और वीणा यंत्र बजाने में परम् पंडिता है।
ये संधि करानेवाली सुपटु दूतियों की अध्यक्षा हैं।
संगीत और रंगशाला में अधिकार प्राप्त गोपिओं की अध्यक्षा है।मृदंग वाद्य और 64 कलाओं के प्रदर्शन और नृत्य करनेवाली दक्ष गोपिओं की अध्यक्षा हैं।
श्री वृन्दावन की विभिन्न धाराओं,झरनों आदि से जल एकत्रित करनेवाली सखियो की अध्यक्षा हैं।
तुंगविद्याजी का दक्षिण प्रखरा स्वभाव
तुंगविद्या जी स्वभाव से दक्षिणा प्रखरा हैं
दक्षिण स्वभाव याने श्रीकृष्ण के प्रति अधिक अनुकूलता
साथ ही प्रखरा स्वभाव होने के कारण ये श्रीकृष्ण का पक्ष लेकर कभी कभी राधारानी को स्पष्ट शब्दों में आक्षेप करती है
वह कहती है- “राधे! मुझे मन मे कुछ मुंह मे कुछ रखना नही आता
देखो!तुम जो यह मान करती हो, यह मुझे सुख नही देता,अच्छा नही लगता।
यह मान उदित होकर सूर्य की प्रखर किरणों की भांति श्रीकृष्ण के मुखचन्द्र को मलिन कर देता है।
यह देखकर मुझे बहुत ग्लानि होती है”
तुंगविद्या जी नृत्य प्रवीणा
एकदिन श्रीकृष्ण के अनुरोध से तथा चन्द्रावली के कहने पर शैव्या भाण्डीरवट के प्रान्त में नृत्य सेवा कर रही थी
शैव्या विपक्षी सखी है।तुंगविद्या जी प्रखरा स्वभाव की हैं।साथ ही नृत्य संगीत में परम् प्रवीणा हैं
उन्हें शैव्या की सेवा अच्छी नही लगी।विपक्षी सखी होने के कारण उनमे असूया अनुभाव प्रकट हो गया
असूया याने गुणों में दोष देखना
उन्हें लगा कि शैव्या तथा चन्द्रावली श्रीकृष्ण को सुख नही पहुँचा रहे।व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं।
श्रीकृष्ण को तो राधारानी के पास होना चाहिए और नृत्य सेवा का अवसर मुझे मिलना चाहिए
यह सोचते हुए तुंगविद्याजी चन्द्रावली की सखी पद्मा से बोली- “सखी पद्मा!तुम्हारी सखी शैव्या भांडीर वन में जो ‘तांडव’ नृत्य कर रही थी उसे देखकर किसे आश्चर्य न होगा
स्वभाव से सुंदर क्षीण कटि वाली शैव्या यदि नृत्य कला सीख लेती तो देखने मात्र से जगत मोहित हो जाता(अर्थात शैव्या नृत्य नही तांडव कर रही थी।उसे नृत्य आता नही)”
तुंगविद्या सखी द्वारा नंदीश्वर का वर्णन
राधारानी जब प्रातः नंदगांव जाती है रन्धन कार्य के लिए,तब मार्ग में सखियाँ सब राधारानी से हास् परिहास करती हुई चलती हैं
पथ में चलते हुए जब राधारानी श्रीकृष्ण अनुराग में व्याकुलचित्त होने लगीं,तब तुंगविद्या जी उन्हें दूरसे नंदीश्वर पुर दिखा कर परमानंद प्रदान करती हैं
तुंगविद्या जी कहती हैं- “विभिन्न वृक्ष तथा लताओं से घिरा,अनेक रंगों के कमलों से सुशोभित सरोवर वाला नंदीश्वर का वन प्रदेश दर्शन करो
नाना प्रकार के पक्षियों के कलरव से निनादित यह वन अत्यंत शोभा प्राप्त कर रहा है
गौओं का ह्म्बारव,गोपों का कोलाहल युक्त यह नंदीश्वर व्रजराज नंदन का अति प्रिय है,दर्शन करो
राधे!तुम्हारे नयन चातकों की अभिलाषा शीघ्र पूरी होगी”
तुंगविद्या सखी की बातों से राधारानी को श्रीकृष्ण स्फूर्ति हो आती है,तथा उनके अंगों में कम्प तथा जड़ता आ जाती है
ऐसे भाव देखकर सखियों को भी विस्मय होता है ।कम्प और जड़ता विपरीत बोध होने वाले भाव हैं
चम्पकलता जी अपनी बातों से राधारानी को सचेत करती हैं
तब फिर तुंगविद्या जी राधारानी को परिहास के द्वारा आनंद देती हुई आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं
कुछ दूर जाने पर श्यामसुंदर सखाओं के संग प्रतीक्षा करते हुए मिलते हैं
उन्हें देखकर राधारानी के तो पाँव मानो उठते ही नही
तब तुंगविद्या जी परिहासपूर्वक कहती हैं- “राधे!तुम्हे देखकर मधुमंगल ने श्यामसुंदर के गले मे चम्पक माला पहनाई।यह मिलन का संकेत दिया है।”
राधारानी प्रेम रोष दिखाते हुए अपनी मुस्कुराहट दबाते हुए कहती हैं- “तुंगविद्या!जैसे तुम चंचल हो वैसे ही सबको समझती हो।तुम ही बनना श्यामसुंदर के वक्षस्थल की शोभा”
इस प्रकार हास् परिहास करते हुए तुंगविद्या जी राधारानी को नंदीश्वर तक नित्य ले जाती हैं।सभी सखियाँ इन परिहासों का आनंद लेती हैं
अगर ऐसे परिहास न हो मार्ग में तो राधारानी अनुराग में इतनी विवश हो जाए कि उनसे चला न जाए
अतः तुंगविद्या जी की यह विलक्षण सेवा नित्य होती है
सुन्दर कमल केशर के समान मनोहर अंग कांति है जिनकी और जो प्रफुल्लित जवाकुसुम की भांति मनोहर वस्त्र धारण करती हैं, जो प्रायः श्रीचम्पकलता जी के गुणों के समान सुशील स्वभावयुक्ता हैं, हे राधे! मैं आपकी प्रिय सखी उन श्री रंगदेवी जी की वन्दना करती हूँ।
अष्ठ वरिष्ठ सखियों में से रंगादेवी छटी वरिष्ठ गोपी है। इनका रूप रंग कमल के फूल के रेशे जैसा है। इनके वस्त्र जावा फूल के रंग जैसे है (लाल)। ये राधारानी से सात दिन छोटी है और इनकी उम्र 14 साल 2 महीने और 4 1/2 दिन है। इनकी माता का नाम करुणा देवी और पिता का नाम रंगसारा है और इनके पति का नाम वक्रेशना है। दक्षिण पश्चिम पंखुड़ी पर मदना सुखदा कुञ्ज में गहरा नीला बादलों के जैसा सुखदा कुञ्ज है। जहाँ श्री कृष्ण की प्यारी रंगादेवी सखी हमेशा निवास करती है। इनकी सेवा युगल के लिए चन्दन देने की है और ये वामा मध्या है। कलियुग में (गौर लीला) में ये गोविंदानंद घोष के रूप में अवतरित हुई | रंगादेवी जी के व्यक्तिगत गुण बहुत कुछ सखी चम्पकलता जैसे हैं।
वह हमेशा शब्दों और हावभावों के एक महान महासागर की तरह है। उन्हें अपनी प्रिय सखी राधारानी के साथ मजाक करना बहुत अच्छा लगता है जब श्री कृष्ण उनके साथ होते है। कूटनीति की छह गतिविधियों में से वह विशेष रूप से चौथे में विशेषज्ञ हैं: धैर्यपूर्वक अगली चाल बनाने के लिए दुश्मन की प्रतीक्षा करना ।
वह एक विशेषज्ञ तर्कशास्त्री हैं और पिछली तपस्या के कारण उन्होंने एक मंत्र प्राप्त किया है जिसके द्वारा वह भगवान कृष्ण को आकर्षित कर सकती हैं। रंगादेवी जी के समूह में जो प्रमुख सखियां है वह है-कालकान्ति सखी, शशिकला सखी, कमला सखी, प्रेमा मंजरी, माधवी मंजरी, मधुरा सखी, कामलता सखी, कंदर्पा सुंदरी सखी । कालकान्ति देवी रंगादेवी जी की इन आठ सखियो की नेता है, ये सब इत्र का प्रयोग करने सौंदर्य प्रसाधन और जलने वाले सुगंधित धूप, सर्दियों में कोयला लाने और गर्मियों में जुगल के लिए पंखा झलने में माहिर है। रंगादेवी जी की सखियां जंगली जानवरों जैसे- शेर, हिरन जैसे जंगली जानवरों को नियंत्रित करने में सक्षम है।
जो सुन्दर रत्न जटित चामर को हाथ में धारण कर रही हैं, जिनकी अति श्रेष्ठ चम्पक की भांति अंग-कांति है। नीलकण्ठ पक्षी के पंखों की कान्ति के समान जो सुन्दर वस्त्र धारण करती हैं, जो सर्वगुणों में श्रीविशाखा जी के समान हैं, हे राधे! आपकी सखी श्रीचम्पकलता की मैं शरण ग्रहण करती हूँ।
शरीर की चमक : चम्पक के समान
वस्त्रों की चमक : नीलकण्ठ पक्षी के पंखों के समान
सेवा : रत्नमाला धारण एंव चँवर
वस्त्रों का रंग : भकाभक सफेद
आयु : 14 वर्ष 2 मास 13-1/2 दिन
कुंज निवास : कामलता (शुद्ध सुवर्ण भांति कांतिमय)
भाव : वाम मध्या नायिका
माता का नाम : वाटिकी
पिता का नाम : आराम
पति का नाम : चन्द्राक्ष
ग्राम : करहला गाँव
यूथ की आठ सखियां : 1.कुरंगाक्षी, 2.सुचरिता, 3.मण्डली, 4.णिकुण्डला, 5.चण्डिका, 6.चन्दलतिका, 7.कन्दुकाक्षी, 8.सुमन्दिरा
चंपकलता जी राधा जी की पाँचवी सखी है. इनके निकुज स्थिति इस प्रकार है – राधाकुडं के दक्षिण दिशा वाले दल पर “कामलता” नामक कुंज में निवास करती है. जो कि अतिशय सुखप्रदायनी है. शुद्ध स्वर्ण की तरह कांतिमय है. श्री चम्पकलता जी उसमे निकुज में विराजती है. ये कृष्ण की “वासक सज्जा” नायिका भाव से सेवा करती है.
यह वाम मध्या नायिका है चम्पक के समान इनकी देह कांति है ओर चातक छटा कि भांति श्वेत वस्त्र धारण करती है रत्नमाला पहराना और चामर झुलाने की सेवा है इनकी वयस १४ वर्ष २ मास १३ १/२ दिन की है माता का नाम- “वाटिका”, पिता का नाम – “आराम” और पति का नाम – “चंद्राक्ष” है.
राधा माधव सेवा निकुंज में “वासक सज्जा” और “चामर सेवा “ करती है .
श्री गौर लीला में कलियुग में श्री गौरलीला में यह “श्री शिवानंद” नाम से विख्यात हुई है.
वास्तव में राधा माधव से मिलने के लिए हमें गोपियों के चरण पकडने है. गोपीभाव उच्च है. जहाँ संतजन तपस्या के बाद भी नहीं पहुँच पाते है
इनके यूथ में भी “आठ सखियाँ” है – कोरंगाक्षी, सुचरिता, मंडली, मणि कुण्डला, चंडिका, चन्दलतिका, कंदुकाक्षी, सुमंदरा ये आठ सखिया चम्पकलता के यूथ में सबसे प्रधान है, सारी सखियाँ इनकी सेवा में है
चमपकलता देवी अपनी गतिविधियों को बड़ी कुशलता से छिपाने में माहिर है
वह राधारानी के रिश्तेदारों को एक राजनयिक की तरह तर्क सहित समझाने में माहिर है। चमपकलता देवी वनों से फल फूल और जड़ी ईकठ्ठा करने में कुशल है, वे सखियां जिनको वृन्दावन के पेड़ों, जानवरों और झाड़ियों की सुरक्षा का दायित्व सौंपा गया है, उन सखियों की नेता चमपकलता देवी है।
वह एक कुशल रसोइया है, जो खाना पकाने के छह स्वादों का वर्णन करने वाले सभी साहित्य को जानती है। वह अलग अलग प्रकार के मीठे व्यंजन बनाने में निपुण है, इसलिए वह मिष्ठास्ठा नाम से भी प्रसिद्ध है वह केवल अपने हाथों के कौशल का उपयोग करते हुए, मिट्टी से कलात्मक रूप से चीजों को बना सकती है।
दक्षिण पंखुड़ी पर मदन सुखदा नाम के कुञ्ज में एक बहुत सुंदर कामलता कुञ्ज है, जो कृष्ण की प्यारी चम्पकलता सखी का घर है।
नृत्योत्सवां हि हरिताल समुज्ज्वलाभां सधाड़िम कुसुम कांति मनोज्ञचेलाम्। वन्दे मुदा रूचिविनिर्जितचन्दलेखां श्री राधिके। तव सखीमहमिन्दुलेखा ॥
जो नृत्यादि की सेवा करती हैं, हरिताल की भाँति जिनकी समुज्ज्वल कान्ति है, अनार के सुन्दर पुष्प के समान मनोहर वस्त्र धारण करती हैं, तथा जो चन्द्र की ज्योत्स्ना को भी पराभूत करने वाली हैं, हे राधिके। आपकी उस श्रीइन्दुलेखा सखी की मैं वन्दना करती हूँ।
शरीर की चमक : पीतवर्ण
वस्त्रों की चमक : अनार के फूलों जैसी
सेवा : अमृत भोजन बनाने की /चँवर सेवा / नृत्य सेवा
वस्त्रों का रंग : अनार के खिले हुए पुष्प जैसा
आयु : 14 वर्ष 3 मास 10 1/2 दिन
कुंज निवास : पूर्णेन्दु ( स्वर्ण की भाँति कांतिमय )
भाव : प्रोषित भर्तृका / वाम प्रखरा
माता का नाम : बेला
पिता का नाम : सागर
पति का नाम : दुर्बल
ग्राम : आजनोक गाँव
यूथ की आठ सखियां : 1. तुंगभद्रा 2. चित्रलेखा, 3.सुरंगी, 4. रंगवाटिका, 5.मंगला, 6. विचित्रांगी, 7.मोदिनी, 8. मदना
अष्ठ वरिष्ठ सखियों में से छठवीं वरिष्ठ सखी इंदुलेखा देवी है इनका रूप रंग पीले नींबू की तरह यानि पीला है और इनके वस्त्र अनार के फूल जैसे रंग के है, ये राधारानी से तीन दिन छोटी है।
इनकी उम्र 14 साल 2 महीने 10 1/2 दिन की है, इनके पिता का नाम सागर और माता का नाम वेला देवी है और इनके पति का नाम दुर्बला है। दक्षिण पंखुड़ी पर मदन सुखदा कुञ्ज में एक सुनहरे रंग की पूर्णेन्दु कुञ्ज है जिसमें इंदुलेखा देवी हमेशा निवास करती है, (गौर लीला) में इंदुलेखा देवी वासु रामांनद के रूप में अवतरित हुई।
श्री कृष्ण के लिए उनका प्रेम बहुत गहरा है, प्रोसित भर्तृका-भाव से वह अक्सर अमृत की तरह स्वादिष्ट भोजन लाकर कृष्ण की सेवा करती है इंदुलेखा जी वामा प्रखरा है और इनकी मुख्य सेवा जुगल को पंखा झलना।
इंदुलेखा जी स्वभाव से विरोधी और गर्म है, उन्होंने नागा शास्त्र के मन्त्र और विज्ञान याद किया है, जिसमें अलग अलग प्रकार के अद्धभुत सांपो का वर्णन है, उन्होंने समुद्राका शास्त्र को भी पढ़ा है जिसमे हस्तरेखा का ज्ञान है ।
वह अलग अलग प्रकार हारो को कसने में निपुण है और दांतों को लाल मणि से सजाने में भी माहिर है, उन्हें रत्न विज्ञान आता है और अलग अलग कपड़ो की सिलाई बुनाई भी आती है।
अपने हाथ में वह दिव्य युगल के शुभ संदेश को ले जाती है । इस तरह वह अपने आपसी प्रेम और आकर्षण को बनाकर राधा और कृष्ण का सौभाग्य प्राप्त करती है।
इंदुलेखा-देवी दिव्य युगल के गोपनीय रहस्यों से पूरी तरह अवगत हैं। उनकी कुछ सखियां दिव्य दंपति के लिए गहने उपलब्ध कराने में लगी हुई हैं, अन्य सखियां उत्तम वस्त्र प्रदान करती हैं, और अन्य कुछ सखियां दिव्य युगल के खजाने की रक्षा करती हैं |
इंदुलेखा देवी के समूह में प्रमुख सखियां है- तुंगभद्रा सखी, चित्रलेखा सखी, सुरंगी सखी, रंगवाटिका सखी, मंगला सखी, सुविचित्रांगी सखी, मोदिनी सखी और मदना सखी ।
तुंगभद्रा देवी के नेतृत्व वाली सखियों का समूह, इंदुलेखा देवी के मित्र और पड़ोसी हैं। इन सखियों में एक समूह है, जिसकी अध्यक्षता पलिंधिका-देवी करती है, जो दिव्य दम्पत्ति के लिए दूत का काम करती है।
केशव वर्णांगी, विचित्र गुण सम्पन्न, मुसकानयुक्त सुन्दर मुखवाली काँच के वर्ण के समान वस्त्र धारण करने वाली तथा श्री कृष्ण को लवंग (लींग) एवं माला प्रदान करने की सेवा करने वाली श्री चित्रा जी का मैं ध्यान करती हूँ।
शरीर की चमक : केसर की भाँति
वस्त्रों की चमक : काँच जैसी
सेवा : अभिसारिका / लवंग एवं माला सेवा
वस्त्रों का रंग : हीरे जैसे रंग के
आयु : 14 वर्ष 7 मास 14 दिन
कुंज निवास : पद्म किज्जल्क
भाव : अधिक मृद्वि
माता का नाम : चर्चिका
पिता का नाम : चतुर
ग्राम : चिकसोली गाँव
यूथ की आठ सखियां : 1. रसालिका, 2. तिलकिनी, 3. शौरसेनी 4. सुगन्धिका, 5.वामनी, 6. वामनयना,7.नागरि, 8. नागवल्लिका
श्री चित्रा सखी अष्ठ वरिष्ठ सखियों में से तीसरी चित्रा देवी है। इनका रूप रंग केसर की भांति है और उनके वस्त्र हीरे के रंग जैसे है |
चित्रा जी राधा जी से 26 दिन छोटी है, इनकी उम्र 14 साल 7 महीने 14 दिन की है। इनके पिता का नाम चतुरा और माता का नाम चर्चिका देवी है और इनके पति का नाम पिथरा हैं। इनका घर यावत में है और (गौर लीला ) में इन्होंने गोविंदानंद के रूप में अवतार लिया।
वह और श्री कृष्ण एक दूसरे के प्रति बहुत स्नेही हैं, वह लौंग और माला लाने की अपनी सेवा के लिए बहुत समर्पित हैं। चित्रा देवी राधा कृष्ण के बीच प्रेम भरा झगड़ा करवाने में निपुण है। जब भगवान माधव परमानंद में होते है तब चित्रा देवी संतुष्ट रहती है,
चित्रा सखी अलग अलग भाषाओं में लिखे हुए पत्र और पुस्तक बड़ी आसानी से पढ़ने में निपुण है और लेखक के छिपे हुए संदेशो को समझने में भी निपुण है। चित्रा सखी पेटू है और वह दूध, शहद और बाकि पदार्थों को चख कर पहचान लेती है।
वे अलग अलग प्रकार के अमृत पेय बनाने में माहिर है (रासालिका-देवी की अध्यक्षता में आठ अन्य सखियां सेवित भी हैं, जो विभिन्न अमृत पेय बनाने में विशेषज्ञ हैं। ) चित्रा-देवी पानी के अंशों से भरे बर्तनों पर संगीत बजाने में निपुण हैं।
उन्होंने खगोल विज्ञान और ज्योतिष का वर्णन करने वाले साहित्य को सीखा है, और वह गंभीर जानवरों की रक्षा के सैद्धांतिक और व्यावहारिक गतिविधियों से अच्छी तरह से वाकिफ है।
वह विशेष रूप से बागवानी में निपुण हैं। अन्य सखियां हैं जो ज्यादातर जंगल से पारलौकिक जड़ी-बूटियाँ और औषधीय लताएँ एकत्र करती हैं और फूल या अन्य कुछ भी एकत्र नहीं करती हैं।
चित्रा देवी इन सखियों को नियंत्रित करती है, चित्रा देवी के समूह की प्रमुख सखियां है रसालिका सखी, तिलकिनी सखी, सुरसेना सखी, सुगन्धिका सखी, वामनी सखी, वामनायन सखी, नागरी सखी और नागावल्लिका सखी।
चित्रा सखी का सुंदर प्रसंग
श्रीकृष्ण नित्य ही मथुरा माखन लेकर जाती हुयी गोपियों का माखन खा जाते हैं, और कंकड़ मार कर उनकी मटकियाँ भी फोड़ देते हैं।
श्रीकृष्ण के माखन खाने से तो गोपियों का मन खुश होता था परन्तु उनके मटकी फोड़ देने से वे बहुत चिन्तित हो जाती थीं, माखन तो वे अपने प्रेम से ही कान्हा के लिये तैयार किया करती थीं किन्तु मटकी तो दाम चुका कर मिलती थी।
एक बार सभी गोपियाँ एकत्र हो इस की शिकायत ले श्रीजी के समक्ष जा पहुँचीं । श्रीजी अपने प्रियतम के इस कृत्य को सुन अति-द्रवित हो उठीं, और श्रीकृष्ण से मान कर बैठीं।
जब श्रीकृष्ण को श्रीजी के मान का पता चला तोअति- विचलित हो उठे और अविलम्ब श्रीजी को मनाने के लिये उनके पास चल दिये। राह में उन्हें सखी चित्रा मिली उन्होंने उन्हें श्रीजी के मान का कारण बताया, तथा उनका मान समाप्त करने के लिये बताया कि आपने जितनी गोपियों की मटकियाँ फोड़ी हैं उनके बदले उन्हें एक की जगह दस मटकियाँ बनाकर देनी होगीं वह भी सुन्दर चित्रकारी के साथ।
श्रीजी को मान में देखना श्रीकृष्ण के लियै सम्भव नहीं होता इसलिये वे अविलम्ब श्रीजी का मान भंग करने के लिये सभी गोपियों की इच्छानुसार उसनी पसन्द की मटकियाँ बना कर देने लगे। जब सभी गोपियाँ की मटकियाँ बना दी तब जाकर श्रीजी का मान भंग हुआ।
“जय जय श्री राधे”
दूसरा प्रसंग
चिकसौली के चना चोर श्यामसुन्दर
एक दिन श्याम सुंदर अपने सखाओं के साथ चिकसौली में विहार करने आये तो देखा एक खेत में चने लग रहे बहुत सुंदर सखाओं ने श्याम सुंदर कहा आज तो चनेखाने का मन कर रहा है पता लगाओ ये खेत किसका है 2 लोग पहरेदारी करो अगर खेत का मालिक आये तो इसरा करदेना सब भाग निकलेगे
सब लोग खेत में जाके चने खाने लगे स्वादिस्ट स्वादिष्ट सखा कह रहे आज तो आनंद आ गया तभी उस खेत की मालकिन के एक सखी जो खेत की देख भाल करती थी वो आगयी डंडा लेके कोंन है जो हमारी मालकिन के खेत से चने चुरा का खा रहा है उसके डर के मारे सारे ग्वालबाल भाग गये
श्यामसुन्दर नहीं भागे वो चने खाते रहे सखी ने बहुत डाटा डंडा से डराया पर पर श्यामसुन्दर नहीं भागे
गोपी बोली में अपनी सखि जो खेत की मालकिन को बताती हु उस खेत की मालकिन चित्रा जी थी उस सखी ने चित्रा जी बताया पूरा वृतान्त
चित्रा जी बोली तूने उन को भगा या नहीं वो बोली सबको भगाया पर एक नहीं भगा पूछी कोंन नहीं भागा
बोली श्यामसुन्दर नाम है उसका
चित्रा जी मन ही मन मुस्कुराए और बोली आज तो कृपा होगयी श्यामसुन्दर खुद आये है चित्रा जी बोली में खुद जाती हु चित्रा जी ग्वाल बन कर गयी ओर श्याम सुंदर से पूछी क्या कर रहे हो
श्याम सुंदर बोले चने खा रहा हु पर डर लग रहा है कही खेत का मालिक ना आ जाये
चित्रा जी चिंता मत करो खूब खायो में खेत के मालिक को जानती हु तुम चिंता मत करो खूब मन लगाकर खाओ
श्याम सुंदर आवाज लगाकर अपने दोस्तों को भी बुला लिया
चिंता मत करो जी भर के खायो में पहरेदारी कर रही हो खेत का मालिक आएगा तो बता दूँगी थोड़ी देर बाद चित्रा जी खुद खेत में आगयी और श्यामसुन्दर जी चने छील छील कर देने लगी
चित्रा जी जी भर कर चने खिलाये और पीताम्बर में बांध दिए देखो चने चोर की कितनी खातिरदारी हो रही है।
चिकसोली में चना चुराये।। गारी द दौडी रखवारन ग्वाल सहित गोपाल भजाये ।।१। हरे बुट दाबे बगल में स्वास भरे गहवर बन आये।। नागरिया बैठी छकहारिन छील छील नंदलाल खवाये ।।२। श्यामसुन्दर की जय हो
जिनकी अंग कांति विद्युत्-पुंज की भांति मनोहर है, तारों के सामान सुन्दर काति युक्त मनोहर वस्त्र जो धारण कर रही हैं, हे राधिके! आपके सदृश विचित्र गुण वाली शालिनी हैं एवं जो आपकी सद्गन्ध चन्दन सेवा में निरत रहती हैं, उन श्रीविशाखा जी को मैं प्रणाम करती हूँ।
श्री विशाखा सखी विशाखा सखी अष्ठ वरिष्ठ सखियों में से दूसरी सबसे वरिष्ठ सखी है।
उनके गुण, गतिविधियां और संकल्प सब अपनी सखी ललिता जी से मिलते जुलते है।
विशाखा जी का जन्म (Birth ) उसी समय हुआ जब उनकी सखी श्री मति राधारानी का जन्म इस संसार में हुआ।
शरीर की चमक : बिजली की भांति शरीर का रंग: गौरवर्ण
वस्त्रों की चमक : तारों जैसी
सेवा : श्री कृष्ण के वस्त्र व आभूषण
वस्त्रों का रंग : चमकते हुए सितारे लगे नीले वस्त्र
आयु : चौदह वर्ष, दो मास, पन्द्रह दिन
कुंज निवास : विशाखानन्द : बादलो की चमक जैसी चमक है। इस कुंज की
उनके वस्त्र चमकदार सितारों से सजे है और उनका रूप रंग प्रकाश की भांति चमकदार है
(गौरांगी इनकी उम्र 14 साल 2 महीने 15 दिन है। इनके पिता पवन और माता दक्षिणा देवी है, इनके पति का नाम वाहिका गोप है
(गौर लीला) में इन्होंने श्री रामांनद राय के रूप में अवतार लिया। जुगल जोड़ी की अंतरंग सखी है उनके बहुत करीबी है,
हालाँकि वह अपने से छोटी सखियों (वृंदा देवी की अगुवाई वाली सखियों) की तुलना में ज्यादा उत्साहपूर्ण है।
वह राधा और कृष्णा के संदेशों को लेने और देने में कुशल और समझदार है। बातूनी विशाखा देवी भगवान गोविन्द से मजाक ( Joke ) करने में माहिर है और वह जुगल जोड़ी के लिए सही सलाहकार है।
नाराज हुए प्रेमियो में कैसे समझौता कराया जाये और कैसे उसे रिश्वत दी जाये और कैसे उससे झगड़ा किया जाये
वह इस कला को भली भांति जानती है।
वह भगवान कृष्ण की बहुत प्रिय है और उनके भाव को स्वाधीन भृतर्का नाम से जाना जाता है।
उनकी जुगल के लिए सेवा यह है कि उनके वस्त्र पहनना और उन्हें सजाना। प्रधान सहायिकाएँ प्रिया प्रियतमकी सेवामें इनकी प्रधान तीन सहायिकाएँ हैं– मधुमतीमञ्जरी, रसमञ्जरी एवं गुणमञ्जरी।
जिस क्षण भानुकिशोरीका आविर्भाव हुआ है, उसी क्षण ये भी आविर्भूत हुई हैं। इनके पिता महान् विद्वान् हैं। ये भी पूर्ण विदुषी हैं। इनका परामर्श कभी व्यर्थ नहीं होता। अत्यन्त परिहास कुशल हैं।
प्रिया- प्रियतम के मिलनकी विविध युक्तियाँ, नव-नव रसास्वादनके उपाय ये सोचती ही रहती हैं।
अंगोंपर पत्रावली आदिकी रचना करने में मालाके संयोगसे विविध शिरोभूषण प्रस्तुत करनेमें तथा विविध सूत्रों को लेकर सुईसे वस्त्रो पर बेल-बूटे निकालने में अत्यन्त प्रवीण हैं।
वस्त्रकी सँभाल रखनेवाली जो सखियाँ एवं दासियाँ हैं, पुष्पलतावल्लरी – वृक्षावलीपर वृन्दादेवीकी जिन-जिन सखियोंका अधिकार है, सभी इनके आदेशसे ही काम करती हैं।
गोरोचनारूचि-मनोहरकान्तिदेहां, मायूरपुच्छ तूलितच्छवि चारूचे लाम्। राधे तव प्रिय सखी च गुरू सखीनां ताम्बूल भक्ति ललितां नमामि॥
शरीर की चमक : लालिमा युक्त पीले रंग की
वस्त्रों की चमक : मोर पंख की पूंछ जैसी
सेवा : कर्पूर मिश्रित पान
वस्त्रों का रंग : मोर पंख की पूंछ जैसी
आयु : चौदह वर्ष, आठ मास, सत्ताईस दिन
कुंज निवास : अनंगसुखदा ( बिजली की चमक जैसी चमक है इस कुंज की )
भाव : वामा प्रखरा नायिका
माता का नाम : सारदा
पिता का नाम : विशोक
पति का नाम : भैरव (गोवर्धन गोप का सखा)
ग्राम : ऊचाँ गाँव
यूथ की आठ सखियां : 1.रलरेखा या रत्नप्रभ, 2.रतिकला, 3.सुभदा, 4.चन्द्ररेखिका या भदरेखिका, 5.सुमुखी, 6.घनिष्ठा, 7.कलहसी, 8.कलापिनी।
श्री ललिता सखी ललिता सखी सखियों मे सबसे वरिष्ठ गोपी है, ललिता सखी सबसे महत्वपूर्ण है और एक नेता की भांति सब सखियों को नियंत्रण में रखती है, वह और उनके साथ की सात वरिष्ठ सखियां और अन्य सखियां मंजरियां सब राधारानी जोकि वृन्दावन की रानी है उनकी अलौकिक अंश स्वरूपाएं है।
ललिता जी राधारानी की अभिन्न सखी के रूप मे प्रसिद्ध है, ये राधारानी की सबसे प्रिय सखी है।
इनका रूप रंग गोरोचन जैसा पीला है और इनके वस्त्र मोर के पंखों जैसे है, इनकी माता सारदी देवी और इनके पिता विसोका है। इनके पति भैरव है। जोकि गोवर्धन गोप के मित्र है।
इनकी उम्र 14 साल 8 महीने 27 दिन है, इनका घर यावत मे है और इनका स्वभाव वामा प्रखरा है।
गौर लीला (श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की लीला) मे इन्होंने स्वरूप दामोदर गोस्वामी का अवतार लिया। सब सखियों की सुंदरता ललिता देवी में समाहित है।
ललिता देवी स्वभाव से गर्म और विरोधी है, तर्क देते समय ये बड़ी कुशलता से क्रोध मे अपमानजनक और अभिमान से भरे उत्तर देती है। जब सखियां कृष्ण से झगड़ा करती है तब ये उनमे सबसे आगे होती है, जब राधा कृष्ण मिलते है तब ये सहजता से उनसे थोड़ी दूरी पर खड़ी रहती है।
जुगल जोड़ी के लिए ललिता देवी परमानंद से भरपूर रहती है। ये राधा कृष्ण का मिलन कराने मे कुशल है। कभी कभी ये राधा जी के लिए कृष्णा से गुस्सा हो जाती है। पूर्णमासी देवी और अन्य सखियो की सहायता से ललिता देवी राधा कृष्णा की मुलाकात करवाती है।
ये जुगल के लिए छत्र लेकर खडी रहती है उन दोनों को फूलों से सजाती है और उस कुञ्ज को सजाती है जहाँ जुगल रात भर रुकेंगे और विश्राम करेंगे उत्तर मे अनंगा सुखदा कुञ्ज मे एक बहुत सुंदर कुञ्ज है जोकि अलग अलग प्रकार के फूलों और पेड़ो से सजी है उस कुञ्ज का नाम ललितानंद कुञ्ज है जहाँ प्यारी ललिता सखी हमेशा निवास करती है,
वह आकाशीय रंग जैसे आभूषण पहनती है और खण्डिता भाव का वर्णन करती है, वह और श्री कृष्ण एक दूसरे एक बहुत बहुत प्रिय है
वह उनकी सेवा मे कपूर और ताम्बूल (पानदान) लेकर खड़ी रहती है। ललिता सखी के समूह मे जो प्रमुख सखियां है वह हैं रत्नरेखा सखी (रत्नप्रभा), रतिकला सखी, सुभद्रा सखी, चंद्ररेखिका सखी, सुमुखी सखी, धनिष्ठा सखी, क्लाहंसी सखी और कलापिनी सखी।