नवरात्रि के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। शैलीपुत्री हिमालय की पुत्री हैं।
इसी वजह से मां के इस स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है।
इनकी आराधना से हम सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।
मां शैलपुत्री का प्रसन्न करने के लिए यह ध्यान मंत्र जपना चाहिए।
इसके प्रभाव से माता जल्दी ही प्रसन्न होती हैं और भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं।
पूजा विधि
सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केशर से ‘शं’ लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें।
मंत्र इस प्रकार है-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां दुर्गा के चरणों में अपनी मनोकामना व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा आरती एवं कीर्तन करें। मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद भोग अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। यह जप कम से कम 108 बार करे.
ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जप कम से कम 108 करें।
मंत्र – ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
स्तोत्र पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
मां शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
“घट स्थापना”
नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्त्व है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।
“सामग्री”
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो, पात्र में बोने के लिए जौ (गेहूं भी ले सकते है), घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश या फिर तांबे का कलश भी लें सकते हैं, कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, रोली, मौली, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्का (किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते हैं), आम के पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन (मिट्टी का या तांबे का), ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल, नारियल, लाल कपडा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक, धूप, अगरबत्ती।
“घट स्थापना की विधि”
सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए। पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएँ। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बाँधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी, फूल डालें। कलश में सिक्का डालें। अब कलश में पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें। नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बाँध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते है, पूर्व की ओर हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते हैं। नारियल का मुँह वह होता है जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है।अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें।
“चौकी स्थापना और पूजा विधि”
लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें। साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें। इसे कलश के दांयी तरफ रखें। चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें। माँ को चुनरी ओढ़ाएँ और फूल माला चढ़ायें। धूप, दीपक आदि जलाएँ। नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड-जोत जलाएँ। न हो सके तो आप सिर्फ पूजा के समय ही दीपक जला सकते हैं। देवी माँ को तिलक लगाएँ। माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें, काजल लगाएँ। मंगलसूत्र, हरी चूडियाँ, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें। श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी माँ के स्रोत, दुर्गा चालीसा का पाठ, सहस्रनाम आदि का पाठ करें। फिर अग्यारी तैयार कीजिये अब एक मिटटी का पात्र और लीजिये उसमे आप गोबर के उपले को जलाकर अग्यारी जलाये घर में जितने सदस्य हैं उन सदस्यो के हिसाब से लॉग के जोड़े बनाये, लॉग के जोड़े बनाने के लिए आप बताशों में लॉग लगाएं यानि की एक बताशे में दो लॉग, ये एक जोड़ा माना जाता है और जो लॉग के जोड़े बनाये है फिर उसमे कपूर और सामग्री चढ़ाये और अग्यारी प्रज्वलित करें। देवी माँ की आरती करें। पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।
प्रतिदिन देवी माँ का पूजन करें तथा जौं वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़कें। जल इतना हो की जौ अंकुरित हो सकें। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं। यदि इनमें से किसी अंकुर का रंग सफेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है