
(“श्रीकृष्णचरितामृतम्”- भाग 88)
!! जब ब्रह्मा का मोह भंग हुआ !!
कन्हैया अपनें से भी ज्यादा , प्रिय जनों का ध्यान रखता है ।
वो प्रिय जन, जो सबकुछ मानते हैं कन्हैया को ही ….कैसे ध्यान न रखें उनका अजी ! भक्त प्रिय हैं कन्हैया को ……….तात ! मुझ से स्वयं कन्हैया नें कहा था एक बार ……….मुझे ब्रह्मा इतनें प्रिय नही हैं …..न रूद्र, न मेरी अंगसंगा लक्ष्मी और न स्वयं मैं ……….मुझे तो मेरे प्रेमी जन सबसे ज्यादा प्रिय हैं ………और प्रेमी वह है …..जो स्वर्ग न चाहे ….न वैभव …..यहाँ तक की मुक्ति को भी ठुकरा दे……..वो चाहता है केवल मुझे ।
तात ! ब्रह्मा का अपराध अक्ष्म्य है ………..क्यों की एक वर्ष तक उनके प्रिय ग्वाल सखाओं को ब्रह्मा नें दूर रखा ।
पर आज बुद्धि काम नही कर रही विधाता की ……..उनकी बुद्धि मानों जबाब दे गयी है अब…….गगन से नीचे वृन्दावन की ओर देखा ब्रह्मा नें……….चारों सिर झुकाकर देख रहे थे……….
.ये क्या ?
ग्वाल सखा तो मेरे पास हैं ……..गुफा में छुपाकर आया हूँ उन्हें , फिर यहाँ कैसे ?
ब्रह्मा नें सोचा कहीं ग्वाल बाल गुफा से बाहर तो नही आगये ………..पर ऐसे कैसे आजायेंगे ? हंस को उड़ाया ब्रह्मा नें और गए उसी गुहा में ।
देखा …………पर वहाँ तो सब ग्वाल बाल गहरी नींद में सो रहे हैं …..माया का प्रभाव पूरा है उनके ऊपर ।
ब्रह्मा का चारों मस्तक चकराया ……..यहाँ हैं तो वहाँ कौन है ?
ब्रह्मा फिर चले वृन्दावन की ओर ……..तो मार्ग में क्या देखते हैं …….अनन्त विष्णु चले आरहे हैं सामनें से …………एक दो विष्णु नही हैं अनन्त हैं …….ब्रह्मा के कुछ समझ में नही आरहा ।
तभी सामनें से भगवान रूद्र चले आरहे हैं ……..एक दो रूद्र नही, ब्रह्मा नें देखा अनन्त रूद्र , ब्रह्मा असमंजस में हैं. ………वो सिर पकड़ कर बैठ गए हंस में ही …….पर ये क्या अब सामनें से ब्रह्मा चले आरहे हैं ………..पर ब्रह्मा अब चिंतित होनें लगे थे …..क्यों की ब्रह्मा भी एक नही थे ……अनन्त थे ……….किसी के चार मुख थे तो किसी के आठ …..कोई बत्तीस मुख वाला ब्रह्मा था ……।
ब्रह्माण्ड कितनें ? तात ! ये कोई बता सकता है क्या ?
अनन्त हैं ………कोई संख्या नही है ………..जब ब्रह्माण्ड अनन्त हैं …..तो उन ब्रह्माण्डों के विष्णु भी अनन्त ही होनें चाहियें ……फिर रूद्र भी ….और ब्रह्मा भी ।
उद्धव कहते हैं – घबराहट होनें लगी ब्रह्मा को……ये सब क्या है ?
हंस में फिर उड़े वृन्दावन के लिये ……….वो वृन्दावन में पहुँचे ही थे कि – ग्वाल सखा अब कोई नही दिखाई दे रहा ब्रह्मा को ….सबके सब कन्हैया ही दिखाई दे रहे हैं …..ग्वाल बाल कन्हैया ……..बछड़े कन्हैया ……..सब कन्हैया ।
ब्रह्मा समझ गए कि ये परमसत्ता हैं …..हम ब्रह्मा विष्णु महेश को भी जो उत्पन्न करनें वाले हैं ये वो परम आस्तित्व हैं ………..यही हैं वो ।
नेत्रों से विधाता के झरझर अश्रु बहनें लगे ………….मुझ से अपराध हो गया ……….मैं अनन्त की परीक्षा लेनें चला था ! डर रहे हैं ब्रह्मा उस नन्हे से कन्हैया से ………पर वो मुस्कुरा रहा है …………उफ़ ! उसकी हँसी ………..ब्रह्मा देह सुध भूल गए थे ।
कुछ ही देर में उनको होश आया ……तो वे फिर चले गुफा में ………जहाँ ग्वाल सखाओं और बछड़ों को कैद कर दिया था ब्रह्मा नें ।
उनको लेकर वृन्दावन आये………..वृन्दावन में आते ही ग्वाल बाल सब आनन्द से दौड़ पड़े थे कन्हैया की ओर ……..पर माया के द्वारा इनको पता ही नही चला कि एक वर्ष तक का वियोग इनका हो गया है ।
ये तो दौड़कर अपनें प्राण सखा कन्हैया से मिले ………..पर कन्हैया ज्यादा उत्साह से मिला …..कन्हैया के नेत्रों से तो अश्रु भी गिर रहे थे ।
ये सब देखकर ब्रह्मा कांपनें लगे …..उन्हें डर लगनें लगा …….कहीं कन्हैया मुझे ब्रह्मा के पद से ही न हटा दें………….वो हंस में ही बैठे नीचे वृन्दावन में उतरे………..अपनें हाथों को जोड़ रखा था विधाता नें …………उनके आठों नेत्र बन्द थे ……….वो मुरली मनोहर का ही ध्यान कर रहे थे………आहा !