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श्रीकृष्णचरितामृतम् – 73

(“श्रीकृष्णचरितामृतम्”- भाग 73)



!! श्यामाश्याम का प्रथम मिलन !!


एक दिन –

श्याम सुन्दर कदम्ब वृक्ष के नीचे खड़े होकर वेणुनाद कर रहे थे ।

अद्भुत , नाद का स्पर्श पाते ही पर्वतश्रेणियों के शिखर समूह द्रवित हो गये……..पक्षी तो आज नाद के कारण मौन व्रती मुनि के समान बस श्याम सुन्दर के रूप में ही त्राटक कर रहे थे ।

उफ़ ! जड़ कैसे चेतन बन, और चेतन में कैसी जड़ता छा रही थी ।

अपनें रस में ही भींग उठे थे श्याम सुन्दर…..”आत्माराम” अपनें इसी नाम को सार्थक बना रहे थे आज ।

तभी एक मोर नाचनें लगा……..उन्मत्त होकर नाचनें लगा ……वो रिझाना चाहता था श्याम सुन्दर को…….अपनें पीछे लगा कर वो कहीं ले जाना चाह रहा था…….उसके नृत्य पर रीझ उठे थे श्याम सुन्दर भी ……..चल पड़े मोर के पीछे पीछे………..

आगे आगे मोर था और पीछे उसके श्याम सुन्दर ।

वो मोर ले गया बरसानें में……..प्रथम बार बरसानें में पधारे थे ……उन्हें बड़ा आनन्द आया …….वहाँ की हवा अलग ही थी ………सुरभित प्रेम पूर्ण हवा………जो श्याम के अंगों को जब छू रही थी …..तब रोमांच हो रहा था उन्हें ।

एक सरोवर है ……..जिसे प्रेम सरोवर के नाम से जाना जाता है ……..वहाँ आईँ हैं श्रीराधा रानी ।

मोर नें अपनें पंख समेट लिए थे……इशारा करके बोला…..वो देखो –

श्याम सुन्दर नें देखा…….सुवर्ण के समान रूप था…….नाक के अग्रभाग पर छोटा काला तिल ………इसको देखकर ही तो आचार्य गर्ग नें कहा था – ये तो जगत की ईश्वरी हैं…….जगत जिसकी आराधना करता है ….वो इसकी आराधना करेगा ……इसलिये इसका नाम है – राधा ।

सिर की माँग अपनें आप निकली हुयी है……..इनकी माँ कीर्तिरानी नें कितना प्रयास किया कि ……इन रेशमी केशों को बिखेरकर इस माँग को छुपाया जाए ……….पर ये सम्भव न हो सका ।

छुपाना इसलिये चाहा था कि ………..माँग में ही लाल बिन्दु ये भी जन्मजात ही था …………दूर से देखो तो लगे माँग भरी हुयी है सिन्दूर से ………आहा ! ये किसी ओर की हो ही नही सकती …….ये तो अनादि दम्पति हैं राधा कृष्ण हाँ, कृष्ण की ही हैं ये श्रीराधा ।

अपलक देखती रहीं अपनें श्याम को………..श्याम तो सबकुछ भूल गए थे ……..सब कुछ……….दोनों के नयन मिले …..जुरे …..।

पास में गए, अपनी प्रिया के पास में…..

…हे गोरी ! तुम कौन हो ?

बड़े प्रेम से पूछा था श्याम नें ।

क्या नाम है तुम्हारा ? किसकी बेटी हो ? हँसते हुए फिर – मैने कभी तुम्हे बृज में देखा नही ………कौन हो तुम ?

मैं राधा !

वो अमृत वाणी श्याम सुन्दर के कानों में घुरी ।

वैसे मैं कहीं आती जाती नही हूँ……….अपनें ही बाबा के आँगन में खेलती हूँ ………पर तुम कौन हो ? बड़े प्रेम से पूछा ।

मैं ? मैं तो कन्हैया………गोकुल का कन्हैया !

मेरा नाम सब जानते हैं ……..बृज का कोई ऐसा व्यक्ति नही होगा जो मेरे नाम को न जानता हो ………मुझे न जानता हो …………तुम तो जानती ही होंगी गोरी ! मैं कन्हैया । …….बड़े ठसक से बोले थे कन्हाई ।

नही ……..मैं नही जानती ,……साफ मना कर दिया श्रीराधा रानी नें …….मैं नही जानती तुम्हे ।

दुःखी हो गए श्याम …….मुँह लटक गया …….उदास हो चले थे ।

सुनो सुनो ………क्या तुम ही हो वो नन्द के ढोटा ? जो चोरी करता फिरता है ! बताओ ? हँसी ये कहते हुये श्रीराधा रानी ।

गम्भीर हो गए श्याम सुन्दर…….हे राधे ! तुम्हारो कहा चुराय लियो हमनें …….हमें चोर मत कहो……सुनो ! चलोगी हमारे साथ हमारे गाँव नन्द गाँव में ? नटखट कन्हाई बोल उठे थे ।

दूर है ? पूछा श्याम से ।

नहीं पास में ही है…….मैं छोड़ दूँगा…….चलो ।

तात ! श्याम सुन्दर के साथ चल दीं श्रीराधा रानी…….और धीरे धीरे बतियाते हुए पहुँची नन्द गाँव ।

भरी दोपहरी का समय हो गया है ………..लाल मुख मण्डल सूर्य के ताप से दोनों का हो चला था …………..देखा बृजरानी नें ………….कन्हाई आज अपनें साथ ये किसे लाया है ………..बाहर आईँ बृजरानी ।

सुन्दर कन्या है …….सुन्दर कहना भी कम है ………..शुक के जैसी नासिका है……..अधर लाल है …….मानों कोई लाली लगाई हो ………….अनार के दानें की तरह दन्तपँक्ति हैं ………..मुस्कुराहट तो ऐसी है मानों फूल झर रहे हों……..हो क्यों नहीं , ये श्रीराधा जो हैं ।

लाली ! तू बरसानें की है ? बृजरानी नें गोद में ले गया श्रीराधा को ।

मैया ! मुझे भी ले अपनी गोद में” ……….कन्हैया भी तो बालक ही हैं …….बृजरानी नें दोनों को गोद में ले लिया ।

कीर्तिरानी की लाली है ना तू ?……….संकोच करते हुए उत्तर दे रही हैं…….”हाँ” मेरी मैया का नाम कीर्ति ही है ।

“राधा नाम है मेरा”…….अपना नाम भी बता दिया श्रीराधा रानी नें ।

बेटी ! कुछ खा ले……….उठकर माखन लेकर आईँ बृजरानी ।

मैया ! मैं भी” …….कन्हाई भी मांग रहे हैं माखन ……और राधा को भी देखते जा रहे हैं ……. बहुत प्रसन्न हैं आज ये ।

बेटी ! दोपहर है ……..अभी कहाँ जाओगी थोडा सो जाओ ………

बृजरानी महल में ले गयीं ………और राधा को सोने के लिए कहनें लगीं थीं ………….मैं भी …………कन्हाई को भी सोना है ।

अच्छा तू भी सो …………हँसते हुए बृजरानी नें दोनों को सुला दिया ।

पर ये क्या तुरन्त ही उठ गयीं राधा ……..और बोलीं ……मैं इसके साथ नही सोऊँगी ………..

पर क्यों ? क्यों बेटी ? बृजरानी ने लाली राधा से पूछा ।

मैं काली हो जाऊँगी ……….क्यों की ये काला है ।

खूब हँसी बृजरानी ………….बेटी ! कसौटी का रंग सोना में नही चढ़ता ……….सोनें का रंग कसौटी पर चढ़ता है ।

मेरी राधा ! तू सोना है …..तेरा रंग चढ़ेगा मेरे लाल पर ……पर मेरा लाल तो कसौटी है ………..ये कहते हुए राधा को चूम लिया था बृजरानी नें ।